यह मामला केरल से निकल कर सामने आया है जिससे आप को बहुत गंभीरता से समझना पड़ेगा क्योंकि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी विचार करने के लिए समय मांगा है बता दे जीवन साथी का मानसिक बीमारी को स्वीकार नहीं करने और इलाज कराने से इनकार करना खोलता है या नहीं सुप्रीम कोर्ट इस पर गहनता से विचार करेगी..
बता दे महिला के पति ने श्री जोगणिया का इलाज न कराने पर महिला यानी पत्नी के खिलाफ केरल हाई कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया था जिस के फैसले को लेकर महिला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है तो चलिए अब हम आपको पूरा मामला बताते हैं..
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बता दे महिला ब्रिटेन में नर्स के तौर पर काम करती है और उसने प्रदेश के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है जिसमें कथित तौर पर पैरानॉइड शिजोफ्रेनिया का इलाज करने से इंकार करने पर उसके पति की तलाक की याचिका को स्वीकार कर लिया था अब मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं।
आपको बता दें महिला की याचिका पर कार्यवाही करते हुए जस्टिस विनीत शरण व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पति को नोटिस जारी किया है व केरल हाई कोर्ट के 2 सितंबर 2021 के आदेश पर रोक लगा दी है
वकील सु विपिन नायर के माध्यम से महिलाओं ने अपनी याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि महिला किसी भी प्रकार से मानसिक विकार से पीड़ित नहीं है और विकृत दिमाग के आधार पर तलाक देने के लिए कोई सामग्री नहीं है जबकि एक स्थान पर हाईकोर्ट ने कहा है कि महिला पैरानॉइड शिजोफ्रेनिया से पीड़ित थी
आपको बता दें कि याचिकाकर्ता ने कोल्लम चंद्रशेखर बनाम कोल्लम पदम लता 2014 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया है जिसमें कहा गया था कि पति या पत्नी की बीमारी तलाक की डिक्री देने का कारण नहीं हो सकती है भले ही इसका परिणाम असामान्य हो।
बता दे हाईकोर्ट की खंडपीठ में दो बेटियों के कस्टडी को अधिकार देने के पति के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि महिला बच्चों की देखभाल करने के लिए मानसिक रूप से फिट है
बता दें दमयंती का विवाह ईसाई रीति रिवाजों से 1 सितंबर 2001 को चार्ज में हुआ था और वर्ष 2002 व 2009 में बेटियों का जन्म हुआ एक दशक के बाद महिला ने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया क्योंकि ससुराल वाले उसे मानसिक विकार से पीड़ित बता रहे थे।