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Gama Pehalwan Birthday Today: एक ऐसे पहलवान जो कभी नहीं हारे, गूगल ने भी डूडल बनाकर दिया सम्मान..

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Gama Pehalwan

Gama Pehalwan Birthday Today: आज जाने माने पहलवान गामा का जन्मदिन है। 22 मई सन 1878 को अमृतसर में जन्मे गामा का नाम गुलाम मुहम्मद बख्श दत्त था। गामा पहलवान को पहलवानी विरासत में मिली थी।

Gama Pehalwan हमारे देश की एक ऐसी हस्ती थे जिसका जन्मदिन गूगल ने आज अपने खास डूडल के जरिये मनाया है, गामा पहलवान ने दुनियाभर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया था। 144 साल पहले आज ही के दिन भारतीय पहलवान गुलाम मुहम्मद बख्श दत्त का जन्म हुआ था, जिन्हें आज दुनिया रुस्तम-ए-हिंद, द ग्रेट गामा, और गामा पहलवान के रूप में याद करती है।

Gama Pehalwan कुश्ती की रिंग में कभी नहीं हारे

Gama Pehalwan

सन 1878 में अमृतसर अमृतसर जिले के जब्बोवाल गांव में जन्मे रुस्तम-ए-हिंद का नाम गुलाम मुहम्मद बख्श दत्त रखा गया था। पहलवानों के परिवार में जन्म लेने वाले गामा को पहलवानी भी विरासत में ही मिली थी। साल 1910 में गामा को वर्ल्ड हेवीवेट टाइटल दिया गया था। आजादी से पहले गामा पहलवान की गिनती कुश्ती की दुनिया में भारत के सबसे प्रसिद्ध पहलवानों में होती थी।

वैसे तो उनके बारे में कई किस्से मशहूर हैं लेकिन सबसे बढ़कर बात यह है कि कुश्ती की रिंग में उन्हें कभी कोई भी नहीं हरा पाया। गुजरात के बड़ौदा संग्रहालय में 1200 किलो का एक वजनदार पत्थर रखा हुआ है। 23 दिसंबर 1902 में गामा ने इस पत्थर को भी कागज़ के जैसे उठा लिया था।

Gama Pehalwan ने सिर्फ 15 साल की उम्र से करने लगे थे कुश्ती

गामा जब सिर्फ 10 साल के थे, तब ही से उनके वर्कआउट रूटीन में 500 दंड बैठक शामिल थे। साल 1888 में उन्होंने देश भर के 400 से अधिक पहलवानों के साथ एक दंड बैठक की प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर जित हासिल की थी। इस प्रतियोगिता में गामा की अभूतपूर्व सफलता ने ही उन्हें भारत के शाही राज्यों में प्रसिद्धि दिलायी थी। द ग्रेट गामा की उपाधि पाने वाले गामा ने सिर्फ 15 साल की उम्र में ही कुश्ती लडना शुरू कर दिया थी।

Gama Pehalwan को उस बाद 1910 तक पहचान मिली और उन्होंने अपने करियर में बहुत ही नाम कमाया और कई सारे खिताब भी अपने नाम किए। इसी में 1910 में विश्व हेवीवेट चैंपियनशिप के भारतीय संस्करण और 1927 में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप भी शामिल है। कुछ ही समय में गामा की छवि राष्ट्रीय नायक की बन चुकी थी।

हर रोज 10 लीटर दूध, 6 देसी मुर्गा हर रोज

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20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही गामा पहलवान को रुस्तम-ए-हिंद कहा जाने लगा था। वे खाने-पीने के भी बड़े ही शौकीन थे। गांव के रहन-सहन के कारण देशी खाना ही उनकी पहली पसंद था। गामा पहलवान से जुड़ी हुई कहानियां और रिपोर्ट के अनुसार वे रोजाना 10 लीटर दूध पीते थे, और प्रति दिन 6 देसी मुर्गा खाते थे। इसके साथ ही 200 ग्राम बादाम डालकर हर दिन अपने लिए एक पेय बनाते थे। गामा अपने 40 साथियों के साथ हर रोज कुश्ती करते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वे हर रोज ही 5 हजार बैठक और 3 हजार दंड लगाना उनका रुटिन था। कुश्ती करनेवाले लोग आज भी उन्हें ही फॉलो करते हैं।

मिली थी टाइगर की उपाधि

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विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के जितने के बाद द ग्रेट गामा को टाइगर की उपाधि से सम्मानित किया गया। इतना ही गुलाम मुहम्मद बख्श दत्त के तो विदेशी भ दिवानें थे क्योंकि प्रिंस ऑफ वेल्स ने अपनी भारत यात्रा के दौरान महान गामा पहलवान को सम्मानित करने के लिए चांदी की गदा भेंट की थी। गामा पहलवान ने एक बार मार्शल आर्ट के मास्टर ब्रूस ली को भी चैलेंज कर दिया था।

जब ब्रूस ली को यह मालूम हुआ कि गामा पहलवान ने उन्हें चुनौती दी है, तो वे गामा से मिलने पहुंचे थे लेकिन दोनों की यह मुलाकात दोस्ती में बदल गई थी। उस बाद ब्रूस ली ने गामा को एक पुश-अप करने का तरीका सिखाया, जिसे ‘द कैट स्ट्रेच’ कहा जाता हैं। वहीं, ब्रूस ली ने भी गामा को बॉडी बनाने का तरीका सीखाया था। दरअसल, ब्रूस ली की बॉडी गामा पहलवान की ही देन थी।

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Gama Pehalwan को बेचना पड़ा था अपना मेडल

कहा जाता हैं कि Gama Pehalwan का अंतिम समय बड़े ही परेशानियों में बीता। भारत के विभाजन से पहले रुस्तम ए हिंद गामा पंजाब के अमृतसर में रहते थे, लेकिन उस बाद वे लाहौर चले गए। साल 1927 में उन्होंने जेस पीटरसन के साथ अपनी आखिरी कुस्ती लड़ी थी। कुश्ती छोड़ने के बाद उन्हें हृदय रोग की समस्या हो गई और धीरे-धीरे उनकी हालत बिगडती गई। ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय बाद उनके पास इतने रुपये तक नहीं बचे थे कि वे अपना सही इलाज करा पाते। आखिर कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने अपना मेडल बेच दिया था। आखिरकार, लंबी बीमारी के बाद साल 1960 में 82 वर्ष की उम्र में वे इस दुनिया को छोड़ गए।

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