Transgender लीला 150 बेटियों की मां है। सुन कर बड़ा ही ताज्जुब हुआ होगा लेकिन यही सच है। भगवान निभाने की लीला बाई को किसी किसी बेटी को जन्म नहीं दिया हो। लेकिन वर्तमान में 150 से ज्यादा बेटियां ऐसी है। जिनके लिए किन्नर लीला सगी मां से भी अधिक प्यार करती हैं।
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गरीबी और मुफलिसी में पाली इन बेटियों को विदा करने के लिए मां-बाप के पास जब कुछ नहीं होता था। तो किन्नर लीला बाई आगे आकर एक मां का फर्ज अदा किया। बेटियों को गोद लेने के साथ ही बेटी को दहेज में दिए जाने वाले घर बिक्री के लिए सामान सहित उसके ब्याह का पूरा खर्च उठाया।
लगभग 3 वर्ष पहले से अपने पास की ही बस्ती में रहने वाली एक गरीब परिवार की बेटी को गोद लेकर उसकी शादी करवाई तो बाद में जैसे इस कार्य में उन्हें सुकून मिलने लगा। इसके बाद से बाड़मेर जिले की बालोतरा शहर सहित जिले भर में जहां कहीं भी गरीबी की बेटी के बारे में सुनते हैं तो उनसे मिलकर बेटी की सारी जिम्मेदारी लेकर उनके साथ वहां का भी मैक्सिमम खर्चा स्वयं करती हैं।
किन्नर लीला ने बेटियों के लिए मां का फर्ज भी अदा किया था बेटियां आज भी उनके जन्म के बाद से पालनहार के रूप में देखती हैं। यही कारण है कि ब्याही गई बेटियां आज भी पीहर आती हैं तो घर जाने से पहले किन्नर लीला के घर पहुंचकर आशीर्वाद जरूर लेती है। लीलाबाई के 30 वर्ष पहले शुरू हुए इस सफर में अभी तक 150 से ज्यादा बेटियों को गोद लेकर उनकी जरूरत के हिसाब से खर्च उठा कर शादी विवाह करवाया। सिर्फ इतना ही नहीं लीलाबाई ने यह बताया कि भविष्य में जब तक वह जिंदा है इसी तरह की मदद करती रहेंगी।
इसके साथ ही लीला का बड़ा सपना है कि गाय माता का संरक्षण करना। यजमानो से नीली वाली राशि का एक फिक्स हिस्सा वह गौ सेवा के लिए निकालती हैं। वहीं पर कच्ची बस्ती में रहने वाली लीलाबाई के आस पड़ोस में रहने वाले गरीब परिवारों के बच्चे के लिए भी पाठ्य सामग्री और पोशाक तथा शिक्षण का जिम्मा भी लेती है।
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हालांकि स्कूल में बच्चों की जरूरत की सामग्री तो गायों के लिए हरा चारा तथा पानी की जिम्मेदारी संभाल रही है। बालोतरा किन्नर समाज के अध्यक्ष लीला बाई के घर में आधा दर्जन शिष्य रहते हैं। जिनको लीलाबाई आमजन से जुड़ पर उनके सुख दुख में भागीदार बनाने की सीख भी देती है।
बता दें कि Transgender लीला गरीब बेटियों के साथ ही जरूरतमंदों की सेवा के लिए हर दम आगे रहती हैं। बेटियों की शादी के अलावा भी वह अपनी कमाई का चौथा हिस्सा गौ सेवा तथा शिक्षा पर खर्च करती हैं। कच्ची बस्ती में ही रहने वाले लीलाबाई के आस पड़ोस मैक्सिमम दिहाड़ी मजदूर तथा आर्थिक हालात से कमजोर परिवार रहते हैं। जिनके बच्चों के लिए स्कूल की फीस किताबें पोशाक और जूते आदि खरीदने बूते से बाहर की बात है।