Statue of Pandidurai: दुनिया में माता-पिता को अपने बच्चे हर दिल अजीज होते हैं। मातापिता में खास कर मां को अपने बच्चों से अधिक लगाव होता है। अपने बच्चों को छोटा सा खरोंच आने के ख्याल मात्र से भी पेरेंट्स सीहोर जाते हैं। तमिलनाडु के ओड्डमछत्रम की एस. पसुमकिझी को भी अपने बेटे से बहुत ही प्यार था। किंतु, उस महिला ने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि उनके जिगर का टुकड़ा उन्हें हमेशा के लिए बीच मझधार में ही छोड़ कर चला जाएगा। किंतु, अपने बेटे की मौत से टूट चुकी पसुमकिझी बीते रविवार को अपने बेटे को फिर से घर वापस ले आईं।
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दरअसल, सारा मामला कुछ इस प्रकार है कि साल 2020 में तमिलनाडु के ओड्डमछत्रम स्थित विनोभा नगर की रहने वाली 42 वर्षीय एस.पसुमकिझी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । वह इस मानसिक रूप से तुट गई जब उन्होंने अपनी आंखों के सामने ही अपने जवान बेटे का बेजान शरीर पड़ा हुआ देखा। पसुमकिझी से उनका बेटा हमेशा के लिए दूर हुआ वो दिन रविवार का दिन था। तब से ही वो लगातार रोते हुए भगवान से एक ही प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह से उनका जिगर का टुकड़ा वापस आ जाए,
लेकिन ऐसा तो संभव ही नहीं क्योंकि जाने वाले तो कभी भी लौट कर आते हैं। लेकिन इस घटना के दो साल बाद पसुमकिझी अपने बेटे एस. पांडिदुरई को रविवार के ही दिन वापस अपने पास ले आईं।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बेटे के चले जाने के पसुमकिझी लगातार ही अपने बेटे पांडिदुरई को याद करती रहीं थीं। समय बिताता चला गया किंतु वह अपने बेटे के जाने का ग़म हल्का न कर पाईं। उन्होंने कुछ समय बाद अपने स्वर्गस्थ बेटे पांडिदुरई की एक प्रतिमा बनवाने का निश्चय किया। उस बाद बीते रविवार को उनके घर में कान छिदवाने का रस्म था। इसी मौके पर पांडिदुरई की सिलकन की आदमकद प्रतिमा घर लाई गई।
पांडिदुरई की मां पसुमकिझी के मुताबिक उनका बेटा उनके भतीजे मोनेश कुमारन और भतीजी थारिका श्री से बेहद ही प्यार करता था। पांडिदुरई ये सबसे बड़ी इच्छा थी कि इन दोनों के कान छिदवाने की रस्म बड़ी ही धूम-धाम से मनाई जाए। ऐसे में पसुमकिझी के बिना ये रस्म उनके लिए अधूरी थी। परिवार के लोगों ने अपने बेटे की इस अधूरी इच्छा को पूरी करने के लिए उसकी प्रतिमा बनवाने का निर्णय लिया।
पसुमकिझी के कहती हैं कि दो साल पहले भी इसी कान छिदवाने की रस्म की तैयारीयां चल रही थी। तभी परिवार पर दुखों का पहाड़ तूट पड़ा और 28 जून 2020 को अचानक ही एक हादसे में उनके जवान बेटे की मौत हो गई। हर तरफ मातम छा गया लेकिन अपने बेटे की कमी को पूरा करने के लिए परिवार वालों ने उसकी आदमकद प्रतिमा बनाने का फैसला किया। वैसे तो ये प्रतिमा उसकी मृत्यु होने के दो महीने के अंदर ही मंगवा ली गई थी लेकिन इसे पूरी तरह से बन कर तैयार होने में एक साल से अधिक का समय लग गया।
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Statue of Pandidurai पांडिदुरई की यह इच्छा थी कि उसके भतीजा भतीजी की ये रस्म उनके गोद में ही बैठ कर पूरी की जाए। ऐसे में परिवार के लोगों ने बच्चों को मूर्ति की गोद में बिठाकर रस्म को संपन्न करवाया। पांडिदुरई की इस प्रतिमा को रथ से कार्यक्रम स्थल तक लाया गया था, इस दौरान उन्होंने कमीज पहनी हुई थी।
पांडिदुरई की मां कहती है कि ‘उनका बेटा हमेशा से घर के लिविंग रूम में ही टीवी देखता था, इसीलिए उसकी प्रतिमा को भी वहीं हॉल में रखा गया है, जहां परिवार के सभी सदस्य हमेशा आपस में बातचीत व चर्चा करते हैं।