Maharashtra: मेरे सगे भाई ने ही मेरा यौन शोषण किया। इस हरकत से तंग आकर मैंने तीन बार आत्महत्या की कोशिश की। घर में काफी मार-पीट भी हुई। प्यार भी हुआ, लेकिन वफा के नाम पर मुझे सिर्फ धोखा मिला, वो भी चार बार। फिर मोह माया छोड़कर मैं निकल पड़ी अपनी नई दुनिया बनाने। जूना अखाड़े के हरिगिरी महाराज से दीक्षा ली और वहीं संन्यासी बन गई। अब मैं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी हूं, मेरा नाम है पवित्रानंद नीलगिरी।
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मेरा जन्म Maharashtra के विदर्भ के अमरावती जिले में एक लड़के के रूप में हुआ। जब मैं तीन साल का था तब पिता घर से चले गए। वे आज तक लौट कर वापस नहीं आए। हम लोग आठ भाई-बहन थे। पांच भाई और तीन बहनें।मैं परिवार में सबसे छोटा था। शुरुआत में सबका प्यार भी नसीब हुआ, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझमें लड़कियों के हावभाव दिखने लगे। इस बात को लेकर मेरे भाई लोग मुझे मारते भी थे। बात-बात पर कहते कि अबे क्या लड़की जैसे बातें करता है,
लड़की जैसे हाथ हिलाता है।इतना ही नहीं, घर के बाहर गावँ में भी अब लोग मेरा मजाक उड़ाने लगे। आसपास के लोग घर आकर मेरी मां से कहने लगे कि तुम्हारा बेटा तो लड़कियों जैसी हरकत करता है। एक मराठी ब्राह्मण परिवार में किन्नर पैदा हो, यह कोई सोच भी नहीं सकता था। लिहाजा मेरी पिटाई भी होने लगी। चौथी क्लास में था तो पांच भाइयों ने मुझे जमीन पर लिटाकर फुटबॉल की तरह लातों से पीटा था। मां ने घर से बाहर जाने तक पाबंदी लगा दी।
Maharashtra इसके बाद भी जब गांव वालों के ताने कम नहीं हुए तो मां ने इज्जत बचाने के नाम पर मुझे मौसी के यहां भेज दिया, लेकिन वहां भी मैं नहीं रह पाया और कुछ ही महीनों में वापस घर आ गया। घर आने के बाद फिर से भाइयों के गुस्से का शिकार होने लगा। जिसका जी करता, दमभर मेरी कुटाई कर देता। मां को तकलीफ जरूर होती, लेकिन वो कुछ कह नहीं पाती। इसी तरह स्कूल में भी टीचर के हाथों भी मेरी खूब पिटाई हुआ करती थी।
टीचर बोलते थे कि तुम लड़कियों के साथ क्यों रहते हो। मुझे आज भी याद है। तब मैं 9वीं क्लास में था। भैया ने मेरे ऊपर कुल्हाड़ी फेंक दिया था।nजिसकी वजह से मेरे पांव की पूरी उंगलियां कट गईं। एक बार की बात है भाइयों की मार से तंग आकर मैंने खुद को खत्म करने का मन बना लिया और गांव के एक कुंए में छलांग लगा दी, लेकिन मेरे कजिन भी कुंए में कूद गए और मुझे उस कुंए से बाहर निकाल लिया। इसके बाद एक दिन मैं अपने स्कूल की तीसरी मंजिल से नीचे कूद गई। काफी चोट लगी, लेकिन बच गई। एक दफा तो जहर भी पी लिया था, फिर भी मरी नहीं।
एक दिन की बात है की परिवार में एक शादी थी। रात में मेरा एक कजिन भाई मेरे साथ आकर सो गया। मुझे लगा कि भाई है अगर मेरे साथ सोया भी है तो कोई दिक्कत की बात नहीं, लेकिन उसने मुझे सेक्शुअली परेशान किया। एक बार नहीं वो भी कई बार। जब भी उसका मन करता मुझे अपना शिकार बना लेता। दसवीं करने के बाद मुझे लगा कि अब बहुत हो गया।
मेरा यहां रहना बिल्कुल ठीक नहीं है। घर में भजनों की एक कैसेट पड़ी हुई थी, जिसमें नागपुर के एक मंदिर का पता लिखा हुआ था। मैंने तय किया कि उसी मंदिर में चला जाए। घर से मैंने पांच किलो तुअर की दाल ली और उस लिखे हुए पते पर निकल पड़ा।
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मैंने तय किया कि जो मेरा असली रूप है, उसी में मुझे सबके सामने आना चाहिए। मैंने खुद से मर्द का झूठा तमगा हटा लिया और साल 2013 में किन्नर बन गई। यहां से मैं अपने असली रूप में काम करने शुरू कर दिए। साड़ी पहनना, मेकअप करना सारे काम शुरू कर दिया। इसी बीच साल 2014 में सरकार ने थर्ड जेंडर बिल पास कर दिया जो हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन अभी तो हमें बहुत कुछ हासिल करना था।
हमने परिवार, समाज और सरकार से तो अपना हक ले लिया था, लेकिन धर्म से अपना हक लेना बाकी थी। धर्म के ठेकेदारों ने हमें हमारे हक से वंचित रखा हुआ था। हमें धर्म से बिल्कुल गायब कर दिया था जबकि शिवपुराण, महाभारत, रामायण सब जगह किन्नरों का बखान मौजूद है।