केरल इतना ज्यादा खूबसूरत है कि एक बार वहां जाने के बाद लौटने का मन नहीं करता है। केरल को अगर ‘ईश्वर का देश’ कहे तो इसमें बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रकृति ने तो इस प्रदेश पर अपनी पूरी कृपा बरसाई है। मानसून में केरल की हरी-भरी पहाड़ों के ऊपर छाए बादल कभी आप को छूकर गुजर जाएंगे। तो कभी बारिश और ठंडी हवा गालों को सहलाकर जाएगी। अगर आप केरल जाएं और हाउसबोट नहीं देखा तो क्या देखा। पानी के बीच नाव पर बस से घर में रहना और सुबह आंख खुलते ही चारों तरफ पानी तथा हरियाली ही हरियाली।
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केरल देश की खूबसूरत पहाड़ियों, दक्षिण पश्चिम क्षेत्र की सघन हरियाली व घाटियों में बसा एक रमणीय राज्य हैं। पश्चिम में इसकी खूबसूरत रेखा से 200-300 किमी दूर लक्षदीप आईलैंड्स हैं। किरण भारत के दक्षिणी भाग में स्थित एक राज्य है। जिसका गठन त्रावनकोर-कोचीन और मालाबार राज्य को शामिल कर 1 नवंबर 1956 को किया गया था। इसकी राजधानी तिरुवनंतपुरम है। जनसंख्या की दृष्टि से यह भारत का 13वां सबसे बड़ा राज्य है। साक्षरता प्रतिशत, नगरीकरण, लिंगानुपात, पर्यटन आदि की दृष्टि से केरल भारत की शीर्ष राज्यों में से एक है। फिलहाल केरल राज्य को प्राकृतिक सौंदर्य, और भव्य मंदिरों की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण इसे ‘ईश्वर का अपना देश’ कहा जाता है।
केरल का नौका दौड़ भव्यतम जीवन परंपराओं का एक अनूठा नमूना है। नौका दौड़ किरण की पहचान से जुड़ी हुई है। चंपक्कुलम का नाम ‘ईश्वर का अपना देश’ में जोरो से गूंजता है। ये राज्य की सबसे पुरानी सर्प नौका दौड़ है। तथा हर वर्ष इससे ही नौका दौड़ के मौसम की शुरुआत होते हैं। आलप्पुषा जिले के चंपक्कुलम गांव में पंबा नदी पर दौड़ का आयोजन किया जाता है। जून या फिर जुलाई में आयोजित की जाने वाली यह दौड़ असंख्य लोगों की भीड़ जुटाती है। हालांकि प्राचीन नौका गीतों की गूंज के बीच जब विशाल नौकाएं पानी को चीरती हुई आगे बढ़ती है। तो एक रोमांचक अनुभव होता है। ये एक ऐसा कार्यक्रम है। जिससे नौका दौड़ के रोमांच का श्रीगणेश होता है। नौका दौड़ अगले कुछ महीनों तक राज्य में छाया रहता है।
केरल में सालों भर विभिन्न पारंपरिक त्योहार मनाए जाते हैं। यह त्यौहार अनेक क्षेत्रों और समुदायों में मनाए जाते हैं।
ज्यादातर लोग उम्मीद नहीं करते हैं कि उनके शहर की गलियों से होकर इतने विशाल रथ गुजर सकते हैं। लोग आज भी पालक्काड में काल्पात्ती के श्री विश्वनाथ स्वामी मंदिर में वार्षिक रथ उत्सव के दौरान अद्भुत रंग बिरंगेरथो को देख सकते हैं। भगवान शिव या विश्वनाथ को समर्पित 700 साल पुरानी इस मंदिर में ये प्रायः नवंबर महीने में आयोजित किया जाता है। शताब्दियों से इस उत्सव को मनाने की परंपरा रही है। तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु सड़कों पर जुटते हैं। जब रथ गुजरता है तो सारे लोग रास्ते पर नृत्य करते और उत्सव मनाते नजर आते हैं। इस अवसर पर वेद मंत्रों के उच्चारण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। अंतिम के तीन दिन सड़कों पर तीन विशाल रथ लाए जाते हैं। तथा उस दौरान उत्साह अपने चरम पर होता है। ये ईश्वर के अपने देश में प्रस्तुत होने वाले सबसे शानदार दृश्यों में से एक है।
अपने कभी अपना वेश बदलकर एक सुंदर महिला का रूप धारण करने के बारे में सोचा है क्या? ये उतना भी आसान नहीं होता जितना आप सोचते हैं। यहां केरल की इस मंदिर में एक ऐसा त्यौहार होता है। जिसमें पुरुष महिलाओं का वेश धारण करते हैं। आप यदि इस त्यौहार का अनुभव करना चाहते हैं। तो कोट्टनकुलंगरा चमयविलक्क उत्सव में शामिल होने कोट्टनकुलंगरा देवी की मंदिर जरूर पधारें। मंदिर के प्रशन में प्रवेश करते ही सुंदर युवा महिलाओं की एक टोली आपका स्वागत करेगी। उनके रुख पर तो मत जाइएगा। जब पास से देखेंगे तब आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि यह खूबसूरत महिलाएं वास्तव में महिलाओं के वेश में पुरुष है। तथा यह सब का नाम मंदिर के इस समारोह का एक भाग है।