मेघालय में खासी की पहाड़ियों के बीच बसा एक छोटा-सा सुंदर-सा गांव। ऐसे में चेरापूंजी हिल स्टेशन की इंद्रधनुषी सुंदरता का कोई जोड़ नहीं। मेघालय के उत्तरी पूर्वी इलाका का ये हिल स्टेशन अपनी सुरम्यता के साथ अपनी भव्यता-दिव्यता के लिए भी जाना जाता है। चेरापूंजी हमेशा बादलों की धुंध में लिपटा हुआ रहता है। लिहाजा शांत और शीतल परिवेश रहता है। चेरापूंजी ने अपनी सुंदरता की वजह से इसने दुनिया में अपने विशेष जगह बनाई है।लेकिन चेरापूंजी इसे धरती पर सबसे नम स्थान कभी कहां जाता था। फिर बादल तो जैसे धीरे-धीरे रुठने लगे। बारिश भी कम होती गई व आज इसकी पहचान बन गई है गिले रेगिस्तान के रूप में। समुद्र तल से करीब 1484 मीटर ऊंचाई पर स्थित ये स्टेशन खासतौर से मानसून के लिए अपनी विलक्षणता के लिए जाना जाता है।
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मानसून के साथ ही बादलों का खिलवाड़ भी चेरापूंजी को सबसे खास बनाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि चेरापूंजी में बारिश रात में होती है। चेरापूंजी को सोहरा भी कहा जाता है। पूंजी से शिलांग की दूरी 53 किमी है। अगर बात करें शिलांग से चेरापूंजी आने की तो यह रास्ता बहुत ही प्यारा है। इसके आसपास सुंदर पहाड़ और घाटियां हैं। यहां पर अनेक तरह की फर्न, सुंदर पत्तियों वाले पौधे हैं। यहां का जो पहाड़ है केदारनाथ और बद्रीनाथ के पहाड़ों जैसा ऊंचा तो नहीं है। पहाड़ों के बीच से गिरता झरना वाकई में बहुत ही खूबसूरत नजारा लगता है। इसको देखने के बाद यह लगता है कि प्राकृतिक वाकई आश्चर्य से भरी हुई है। चेरापूंजी से शिलांग की दूरी बहुत कम है। लेकिन वहां पहुंचने में काफी वक्त लगता है। इसकी वजह यह है कि वहां तक पहुंचने का रास्ता बेहद ही खूबसूरत है। इस इलाके में बहुत बारिश भी होते हैं और उसका अंदाजा हम यहां की हरियाली को देखकर लगा सकते हैं।
चेरापूंजी की सबसे फेमस गुफा मस्मसा है। प्रकृति की अपनी विशिष्ट और अनोखी रचनाएं है यह गुफाएं। पत्थरों ने तो गुफा के अंदर कई आकार लिए हैं। कहीं हिरण, हाथी, घोड़ा तो कहीं फूल और बच्ची कुछ इस तरह से बने हुए हैं। जिसे आप देखे बिना आगे बढ़ ही नहीं सकते। इस गुफा पर एक मूर्ति है। जिसमें हजारों फन का सांप बना हुआ है और पास ही में एक शिवलिंग बनी हुई है। इस गुफा में अंदर जाने पर घुटनों तक पानी मिलता है। जो इस गुफा को ठंडा भी बनाए हुए रखता है। पत्थरों की ऊंची नीची, चिकनी तो कहीं सकरी और चौड़ी आकृतियों पर चलना अर्चना तुम मुश्किल होता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले यहां अंधेरा रहता था लेकिन अब सरकार ने यहां लाइट की व्यवस्था कर दी है। चेरापूंजी घूंगराली पर्वत श्रृंखला और बादलों की धमचैकड़ी के लिए खास तौर से फेमस है। घुमावदार बादलों से घिरा चेरापूंजी सुंदरता के अलग ही रंग बिखेरता है। जिसे कोई भी देखकर मोहित हो जाएगा।
मेघालय के शानदार झरनों में से माॅस्मई झरना एक है।ये माॅस्मई गांव के बहुत ही पास में स्थित है। वो चेरापूंजी के रास्ते में ही पड़ता है। माॅस्मई झरने को स्थानीय रूप से नोहस्न्गिथियाॅग झड़ने के रूप में भी जाना जाता है। तथा पानी के 315 मीटर की ऊंचाई से गिरने के साथ ये भारत की सबसे ऊंची चरणों में से चौथे स्थान पर है।
इसकी सबसे खास बात यह है कि इस झरने को लोकप्रिय रूप से सात बहनों वाले झरने की रूप में जाना जाता है। क्योंकि यह खतरनाक खड़ी चट्टान से गिरते समय सात अलग झरनों में बैठ जाता है। एक तेज धूप वाले चमकीले दिन में ये झरना अत्यंत ही सूरम्य होता है। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणों को परिवर्तित करने के साथ-साथ अलग-अलग दिशाओं में चटकीले रंगों को भी बिखेरता है। चूंकि होली के दिनों में भी झरना के आसपास अपने पैरों तले बादलों के टुकड़े को गुजरते हुए महसूस कर सकते हैं। जो अपने आप में ही एक चमत्कार से कम नहीं है।