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India: ऐसे स्थान पर कौन नहीं घूमना चाहेगा? जहां पर सबसे रहस्यमयी किलें, जो खतरनाक और खौफनाक कहानियों के लिए जाना जाता हैं.

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भारत में ऐसे कई पर्यटन स्थल है। दुनिया भर के पर्यटक इसको देखने के लिए भारी मात्रा में भारत आते हैं। भारत के कुछ स्थान तो पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। तथा रहस्यों से भरे पड़े हैं। जिसकी वजह से लोग ही नहीं देखने आते हैं। भारत में ऐसे कई रहस्यमई किले तथा बेहद खतरनाक और खौफनाक इनकी कहानियां भी हैं। जिसमें से एक किले में चमत्कारी पारस पत्थर भी छिपा है। जिस के स्पर्श मात्र से ही लोहे की वस्तु क्षण भर में सोने में बदल जाती हैं। मध्य प्रदेश का एक ऐसा किला जहां एक राजा ने अपने प्राणों से प्यारी रानी का गला अपनी तलवार से काट दिया था। ऐसा करने के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य रानी से किसी भी प्रकार का बदला लेना नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा करना था। जी हां ये वही किला है जिसको जीतने के लिए शेरशाह सूरी ने 15वीं सदी में सिक्को को गलवा कर तोप बनवाई थी। सिर्फ इतना ही नहीं मालवा की पूर्वी सीमा पर स्थित इसके लिए को जीतने के लिए शेरशाह तक को भी धोखा लेने की जरूरत पड़ी थी। जिसके बाद से ही वो अपना झंडा इस किले पर लहरा सके। यहां के तत्कालीन राजा पूरनमल इस स्थिति को देखते हुए ही अपनी पत्नी का स्वयं सिर काट दिया था।

इस किले का इतिहास बेहद ही शानदार है.

भोपाल जिले के सीमा के समीप रायसेन में स्थित ये किला रायसेन किले के नाम से जाना जाता है। ये एक ऐसा किला है। जिसका इतिहास न केवल शानदार है। बल्कि यह बेहद ही खूबसूरत भी है। इसके अलावा किले की दीवारों में शिलालेख भी मौजूद हैं। ये किला रायसेन की तरफ जाते समय सड़क के बाएं और दिखाई देता है। हालांकि रास्ते से गुजरते समय हमें इसकी महत्व का अहसास तक नहीं होता। लेकिन इसके करीब जाने पर यह हमें लुभाने लगता है।

पानी एक जगह एकत्र होता है.

करीब 10 वर्ग किलोमीटर में फैला किला पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में एकत्र हो जाता है। कहां से नालियां बनी है, कितनी नालियां है, कहां से उसमें पानी समा रहा है। आज तक यह सब कोई नहीं जान सका। वर्षों पुरानी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों के ज्ञान तथा दूर दृष्टि का अंदाजा लगाया जा सकता है।

मंदिर वर्ष में एक बार खुलता है.

साल में एक बार ही दुर्ग पर स्थित सोमेश्वर महादेव का मंदिर महाशिवरात्रि पर खुलता है। मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन आने पर विभाग ने इसे बंद कर दिया था। यहां के नगर के लोगों ने 1947 में एकजुट होकर मंदिर खोलने तथा यहां स्थित शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा के लिए आंदोलन किया। तब महाशिवरात्रि पर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी ने खुद आकर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई। तब से प्रतीक महाशिवरात्रि पर मंदिर के ताले श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं तथा यहां पर विशाल मेला भी लगता है।

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