UP: मेरठ से 30 किलोमीटर दूर गगोल गांव की अजीब कहानी है, कि यहां दशहरा त्योहार का नाम सुनते ही सबके होश उड़ जाते हैं। लोग इस दिन दुखी हो जाते हैं। भारत एक नई सोच की टीम ने इस गांव का दौरा किया और इस रहस्य को जानना चाहा कि आखिर तकरीबन 18 हजार की आबादी वाला यह गांव दशहरा का त्यौहार क्यों नहीं मनाता है। गांव के लोगों ने जब इस रहस्य से पर्दा उठाया तो हैरान करने वाली सच्चाई निकलकर सामने आई।
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भारत त्योहारों का देश है। लोग, बेसब्री से आने वाले त्योहारों का इंतजार करते हैं। त्योहार वाले दिन काफी खुशियां मनाते हैं, मिठाई खाते और खिलाते हैं, नए-नए ड्रेस पहनते हैं,और प्रचलित प्रथाओं का पालन भी करते हैं। इन्ही त्योहारो में दशहरा हमारे देश का प्रमुख त्योहार है।जो बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन मेरठ का एक ऐसा गांव ऐसा भी है जहां दशहरे के दिन गांव में मातम मनाया जाता है।
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UP इस गांव में दशहरा त्योहार आते ही मातम छा जाता है। इस दिन गांव के लोग घरों में चूल्हे नहीं जलाते है। असत्य पर सत्य के विजय का पर्व दशहरा पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन मेरठ के गगोल नमक गांव में दशहरा का दिन मातम से भरा होता है। इस गांव में सैकड़ों सालों से दशहरा का त्यौहार नहीं मनाया गया हैं। इसके पीछे छुपा कारण भी सैकड़ों साल पुराना इतिहास ही है।
गगोल गांव में दशहरा न मनाने के पीछे ऐसा कारण है कि सुनकर आप दंग रह जाएंगे।यहां के गांवों के लोगों का कहना है कि जब मेरठ में क्रान्ति का आगाज हुआ था,तो इसी गांव के लगभग 9 लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दे दी गई थी। इस गांव में पीपल का वो वृक्ष आज भी उपलब्ध हैं, जहां इस गांव के नौ लोगों को बेरहमी के साथ फांसी दी गई थी।
ये घटना इस गांव के लोगों में इस कदर घर कर गई है, कि बच्चा हो या बड़ा, कोई भी दशहरा का त्यौहार नहीं मनाता है।इस दिन यहां उन 9 लोगों की फांसी को याद करके मातम मनाता है। इस दिन गांव में किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलाया जाता है। यहां लोग इस दिन से शहीदों को याद कर उन्हे नमन करते हैं और भूखे रहकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।