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Tower of Silence: सभी धर्मों में मृतकों का अंतिम संस्कार करने की अलग-अलग परंपराएं प्रचलित है। हिंदू धर्म में मृत शवों को जलाते हैं और बच्चों को दफनाते हैं। मुस्लिम धर्म में मृत शवों को कब्रिस्तान में दफनाते हैं और ईसाई समुदाय के लोग भी बड़े कॉफिंस में शवों को रखकर दफनाते हैं। गोसाईनाथ बैरागी समाज के लोग अपने मृतकों को समाधि देते हैं। इसके अलावा बौद्ध धर्म में भी जलाने व दफनाने दोनों के ही परंपरा है । सिख धर्म में भी मृतकों के अंतिम संस्कार में जलाया जाता है। अलग-अलग धर्म में अंतिम संस्कार करने की अलग-अलग पद्धतियां प्रचलित है लेकिन पारसी समुदाय में ना तो मृतक शवों को जलाते हैं और ना ही दफनाते हैं। वह अपने मृतक शवों को ऊंचे स्थान पर अपनी जगह में छोड़ देते हैं। जिन्हें गिद्ध कौवे आदि सब को खा जाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पारसियों की साइलेंस ऑफ टावर पर रोक लगा दी है।
Tower of Silence को निस्तब्धता का दुर्ग कहते हैं। Tower of Silence पारसियों की कब्रिस्तान को कहते हैं और यह गोलाकार खोखली इमारत जैसा होता है। यहां पारसी लोग अपने मृत जनों का अंतिम संस्कार करते हैं। भारत में मुंबई के मालाबार हिल पर एक Tower of Silence स्थित है। मालाबार हिल्स मुंबई का सबसे पॉश इलाका है। यह चारों ओर से घने जंगल से घिरा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 19वीं सदी में हुआ था। यहां पर पारसियों द्वारा अपने मृत जनों का अंतिम संस्कार किया जाता है यहां कोई घनी आबादी नहीं है। यह इलाका लगभग निर्जन ही है। Tower of Silence में केवल एक ही लोहे का दरवाजा है। जहां शवों को रखा जाता है, पारसी धर्म को भारत के बाहर जोरास्ट्रियन धर्म कहा जाता है। पारसी समुदाय मृत शव को ऊंचे टावर पर खुले में छोड़ देते हैं। जिससे कि सूर्य की रोशनी से शरीर जल्दी विघटन हो जाए और चील, कौवा और गिद्द शव को खाकर खत्म कर दें। शरीर मृत शव के विघटन के लिए पारसी समुदाय पूर्णता सूर्य की रोशनी और गिद्धों पर निर्भर रहते हैं। पारसी समुदाय पृथ्वी, अग्नि और जल को पवित्र मानते हैं। इसलिए वह मृत शव को आकाश के हवाले करते हैं यानि की टावर पर ऊंचे स्थान पर खुले स्थान पर रख देते हैं जिससे चील कौवे शव को खा जाते हैं।
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हाल ही में पारसी तौर तरीके से अंतिम संस्कार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टावर ऑफ़ साइलेंस ( Tower of Silence )पर फिलहाल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पारसी धर्म के रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया है । दरअसल पारसी समुदाय के लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें कोरोना से जान गंवाने वाले परिजनों का अंतिम संस्कार पारसी धर्म के तरीके से किए जाने की छूट दी जाए। दरअसल पारसी रीति रिवाज में शवों को दफनाने दाह संस्कार करने पर रोक है। केंद्र ने अंतिम संस्कार के लिए जारी S.O.P. को बदलने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है कि कोविड-19 होने पर संस्कार का काम प्रोफेशनल द्वारा किया जाता है। मृत शरीर को इस तरह खुला नहीं छोड़ा जा सकता कोरोनावायरस एक बहुत बड़ा संक्रामक रोग है । इस तरीके से पब्लिक हेल्थ को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है। अगर हम धर्म की बात करें तो हमारे धार्मिक अधिकार जो दिए गए हैं, अनुच्छेद 19 के तहत उसमें सदाचार, नैतिकता, अपराध ऐसे कई आधार हैं और उसमें एक अधिकार लोक स्वास्थ्य भी है। यदि पब्लिक हेल्थ को भी नुकसान पहुंचता है तो उस आधार पर धार्मिक अधिकार का विनियम किया जा सकता है या फिर धार्मिक अधिकार पर रोक भी लगाई जा सकती है।
जोरोएस्ट्रियन दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवाद ही धर्मों में से एक है। इसकी स्थापना पैगंबर जराथुस्ट्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी । 1000 सालों तक यह दुनिया के ताकतवर धर्म के रूप में रहा। 600 BC से 650 CE तक ईरान का यह आधिकारिक धर्म रहा। लेकिन आज की तारीख में पारसी धर्म दुनिया का सबसे छोटा धर्म है हालांकि पारसी धर्म के सामने केवल घटती आबादी एक चुनौती नहीं है इसके कई कारण है।