Tamil Nadu: आज राजनीति की छत्रछाया में देश के लगभग हर कोने से सिर्फ़ नफ़रती तस्वीरें और वीडियोज़ सामने आ रहे हैं। बीते कुछ दिनों से ये सिलसिला लगातार जारी ही है। दो समुदायों के लोग एक-दूसरे पर दोष का ठीकरा फोडने, व ग़लतियां निकालने में लगे हुए हैं। हम सभी यह भी भूलते जा रहे है कि इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं है। मोहब्बत, भाईचारा, एकता और दोस्ती से ही हमारा देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है।
इस पोस्ट में
कुछ लोग अपने फायदे के लिए लोगों के दिलों में जहर घोलने का सफल प्रयास भी कर रहे हैं। जिसका खमियाजा आखिर बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान समय में देश में जो हालात बने हुए हैं, (सोरी यहां तो यह कहना ही सही रहेगा कि जो हालात बनाएं गए हैं) वहीं तमाम नफ़रतों के बावजूद वेल्लोर, Tamil Nadu से बेहतर कल की उम्मीद जगाने वाली तस्वीर सामने आई है।
Tamil Nadu में बीते बुधवार शाम को वेल्लोर के पेरनमबट्टू ज़िले में कुछ मुस्लिम भाइयों ने एक हिन्दू शख़्स का अंतिम संस्कार करने में सहायता की थी।
The New Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक, 30 वर्षीय दिनेश पेरनमबट्टू कुछ दिनों से सरकारी अस्पताल में भर्ती था। मानवता को शर्मसार करने वाली बात तो ये है कि दिनेश ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था। दिनेश के परिवार वालों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि उसका रीति-रिवाज़ के अनुसार अंतिम संस्कार कर पाए। तब Tamil Nadu के मजिथे ट्रस्ट के मुस्लिम सदस्य आगे बढ़े और मुसीबत में फंसे इस परिवार की सहायता की थी। उस बाद पूरे हिन्दू रीति-रिवाज़ के साथ ही दिनेश का अंतिम संस्कार हुआ।
नफ़रत व धर्म की आड में लोगों को बांट रहे कुछ असामाजिक तत्वों के मुंह पर कालिख पोंछते हुए पहले भी हमारे देश के लोगों ने ऐसी ही मिसालें कायम की हैं। जहां कुछ महीनों पहले ही केरल में एक हिन्दू महिला के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिल रही थी। तभी एक चर्च ने महिला के अंतिम संस्कार के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए थे। ऐसा ही दृश्य हमें कोरोना की दूसरी लहर में देखने को मिला था जहां देश के हर राज्य में बहुत से लोगों ने धार्मिक अंतर को तवज्जो न देते हुए इंसानित के धर्म का ही पालन किया था।
बीते कुछ दिनों से देश में जिस तरह का माहौल बनाया गया है, उसे देखते हुए कौमी-एकता की इससे बड़ी मिसाल और कोई नहीं हो सकती है।
गुजरात के दलवाड़ा जिले के बनासकांठा में हदियोल नामक एक छोटा सा गांव है। गांव में 1200 साल पुराना वरदावीर महाराज का मंदिर है जिसके द्वार मुसलमानों के लिए खोल दिए गए थे। इतना ही नहीं, मंदिर के संचालकों ने सौ से अधिक रोजेदारों के लिए खाने-पीने का सारा इंतज़ाम भी अपनी तरफ से ही किया था, जिससे की रोजा खोलने के वक़्त उन्हें किसी भी चीज की कमी महसूस न हो।
मंदिर के संचालकों ने रोजेदारों के लिए पांच से छह प्रकार के फ्रूट्स, खजूर और शरबत का इंतजाम किया था। हदियोल गांव में मुस्लिमानो की आबादी करीब 15 फीसदी है लेकिन 85 फीसदी हिंदुओं के साथ उनका भाईचारा ऐसा है कि नफ़रत की आग भी उन्हें जलाने में कामयाब नहीं हुई है।
18 भाषा में गाना गाता हैं ये बच्चा संस्कृत में कितना अच्छा लग रहा ये गाना
1 ओवर में 6 सिक्स लगाने वाले इस धाकड़ खिलाड़ी ने लिया सन्यास, बल्ले से रन नहीं आग निकलती थी
“कोई पूजे पत्थर, तो कोई सजदे में सर झुकाते है
दोनों है एक ही बस कुछ इसे पूजा, तो कुछ इसे ईमान कहते है
एक ही रस्म न रिवाज, सिर्फ कुछ अंदाज़ ही बदल जाते है
वरना एक ही है जिसे कुछ कहते हैं उपवास, तो कुछ रमज़ान कहते है।”