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sima kushwaha: यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने अपने जोश और जुनून से अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। यह लड़की उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा की रहने वाली है। उस गांव में लड़कियों को पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं था क्योंकि उस गांव में आठवीं तक लड़कियां पढ़ पाती थी क्योंकि 8वीं तक विद्यालय था इसके बाद की शिक्षा के लिए लड़कियों को बाहर जाने के लिए कई गांवों को पार करते हुए ढाई 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था । sima kushwaha के पिता sima kushwaha को आगे बढ़ाना चाहते था। उस गांव से उस समय सीमा पहली लड़की थी जो आठवीं से नबी की कक्षा में एडमिशन लेने जा रही थी लेकिन उनके माता-पिता को उनकी सुरक्षा का ध्यान था कि बिटिया विद्यालय जाने के लिए सुरक्षित है या नहीं। यह डर लगा रहता था सीमा को विद्यालय जाते समय थोड़ा सा डर तो था लेकिन उनके अंदर शिक्षा के लिए जोश और जुनून था।
sima kushwaha 5:00 बजे कभी बिना कुछ खाए पीए निकल जाती थी। इनके लिए sima kushwaha के पिता ने सेकंड हैंड साइकिल खरीदी। साइकिल चलाकर विद्यालय जाने में कई बार चैन उतरती थी रास्ते में रुक रुक कर साइकिल की चैन चढ़ानी होती थी और फिर आगे का रास्ता तय करना होता था। और इस प्रकार यहां की पढ़ाई के बाद सीमा को ग्रेजुएशन करना था और ग्रेजुएशन के लिए पैसे नहीं थे। पिता बीमार रहने लगे थे। सीमा की बुआ ने उन्हें चांदी की पायल और सोने की बाली बनवाई थी जिसको बेचकर इन्होंने ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया । सीमा मानती थी कि लड़कियों की सुंदरता जैवरों से नहीं होती उसकी पहचान जागरूकता और शिक्षा से होती है। फिर इन्हें 35 किलोमीटर दूर पढ़ने जाना था जिसमें ढाई किलोमीटर सीमा अपने साइकिल से जाती थी। और फिर वह बस, इसके बाद 25 किलोमीटर की दूरी पर दूसरी बस को बदलती थी तभी विद्यालय जा पाती थी । जब एक साइकिल से ढाई किलो मीटर जाती थी तब इन्हें नुक्कड़ों पर पांच छ: लड़के मिलते थे । एक दिन एक लड़के ने उन्हें छेड़ा तब उन्होंने सीमा कुशवाहा ने उस लड़के की पिटाई कर डाली। सभी लोग इकट्ठे हो गए तब सीमा ने उस लड़के को चेतावनी दी कि अगर तुमने मुझे छेड़ने की कोशिश की तो मैं तुम्हें फिर मारूंगी। सन् 2002 में इनके पिता की मौत हो गई जो इनके सुपर हीरो थे। इन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से सपोर्ट इन्हीं से मिलता था। अपने पिता के सपोर्ट के कारण सीमा आगे बढ़ी और वह वकालत कराना चाहते थे। अधिक बोलने के कारण सीमा को मां डांट कर कहती थी कि कम बोला करो और भाई कहता था बहस मत किया करो।
निर्भया केस के दोषियों को फांसी दिलाने की लड़ाई बहुत मुश्किल थी । 4 लोगों को फांसी दिलाने थी लेकिन सीमा ने हार नहीं मानी लड़ाई लड़ती रही और इस लड़ाई में सीमा ने ₹1 भी निर्भया के माता-पिता से नहीं लिया और फिर 20 मार्च सन 2020 को उन चार दरिंदों को फांसी दी गई। हमारे देश में पहली बार अत्याचारी दरिंदों को फांसी दी गई। यह संभव हुआ सीमा के कारण यदि सभी वकील सीमा की तरह सच्चाई और न्याय के लिए पुरजोर लड़ाई लड़ें तो इस देश में अन्याय को सजा और न्याय को प्रोत्साहन मिलेगा। निर्भया हमारे बीच नहीं है लेकिन इस लड़ाई में उनके माता-पिता को न्याय मिला। सीमा कुशवाहा जी कहती हैं कि निर्भया के दरिंदों को भले ही फांसी हो गई है लेकिन निर्भया को पूर्ण न्याय नहीं मिला क्योंकि जिस प्रकार न्याय के लिए देरी की गई यह भी एक प्रकार का अन्याय है । अगर न्याय करने में इतना विलंब हो तो कोई भी न्याय पर भरोसा नहीं करेगा।
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sima kushwaha के पास पैसे नहीं थे और इनके पापा भी गुजर चुके थे। जब सीमा L.L.B. में एडमिशन लेने जा रही थी तब यह पहली बार ट्रेन में बैठने जा रही थी और कानपुर में एलएलबी की डिग्री के लिए जा रही थी इनके साथ इनके बहन का बेटा था। ट्रेन में चढ़ते समय एक लड़के ने इनकी कमर पर हाथ रख दिया तब sima kushwaha ने उसका चश्मा निकाल फेंका और उसके बाल नोंच डाले, उस व्यक्ति को सबक मिला । फिर इन्होंने L.L.B. में एडमिशन ले लिया था। एलएलबी की पढ़ाई इस दौरान कई लड़कों से इनकी लड़ाई हुई। और आगे बढ़ती गई सन 2006 में यह रजिस्टर्ड एडवोकेट बन चुकी थी। इनका रजिस्ट्रेशन होने के बाद यह दिल्ली आ गई। 16 दिसंबर 2020 की सुबह दिल्ली में देश की बेटी के साथ दरिंदगी की खबर को न्यूज़पेपर में पढ़ा। जिस ने इन्हें बहुत झकझोर कर रख दिया। इनका सपना आईएएस बनना भी था लेकिन इन्होंने सोचा कि यदि मैं आईएस बन गई तो मैं कानून के दायरे में कितने लड़कियों को न्याय दिला पाऊंगी। तभी इन्होंने अपने वकालत के पेशे से न्याय दिलाने के लिए यह निर्भया के माता-पिता से मिले बिना ही मन ही मन यह ठान चुकी थी कि निर्भया को न्याय दिलाकर रहूंगी। जब निर्भया के माता-पिता से मिलने गई तब इन्होंने निर्भया के माता-पिता से विनती की कि मुझे निर्भया की फोटो को दिखा दे । सीमा निर्भया के कमरे में गई और निर्भया से वादा किया कि मैं तुम्हें न्याय दिलाऊंगी।