India जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश मे हजारों गांव ऐसे हैं जहां धार्मिक मान्यताएं आज भी सदियों पुरानी मानी जाती हैं । लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं को पूरी आस्था के साथ मानते हैं क्योंकि उन्हें अपने पूर्वजों से यह चीजें विरासत में मिली होती हैं । इनके पीछे का लॉजिक यह होता है कि ये मान्यताएं मानने से उनपर कोई विपत्ति और बाधा नहीं आएगी और वह खुद के साथ ही साथ अपने परिवार को भी तमाम बाधाओं से दूर रख सकेंगे ।
ऐसे ही एक गांव के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जहां पर आज भी गांव के भीतर कोई भी व्यक्ति जूता- चप्पल पहने हुए नजर नहीं आता । गांव से बाहर जाने पर लोग जूते चप्पल हाथ मे लेकर चलते हैं और गांव की सीमा रेखा के बाहर जाकर ही पहनते हैं वहीं जब गांव में किसी को आना होता है तो गांव की सीमारेखा पर ही जूते चप्पल उतारकर हाथ मे ले लिए जाते हैं ।
इस पोस्ट में
दरअसल हम जिस गांव के बारे में आपको बता रहे हैं वह दक्षिण भारत मे स्थित है । चेन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर अंडमान में यह गांव स्थित है जहां पर गांव के भीतर जूते चप्पल पहनने की मनाही है । ऐसा नहीं है कि किसी ने इस पर प्रतिबंध लगाया हुआ है दरअसल इस गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है । मदुरई से 20 किलोमीटर दूर कलिमायन नामक गाँव मे यह प्रथा आज भी है ।
यहां लोग सर्दी हो, भीषण गर्मी हो या फिर बरसात हो गांव के भीतर न तो जूते पहनते हैं न ही चप्पल । ऐसे में जब चिलचिलाती धूप में कोई भी व्यक्ति बाहर निकलते समय बिना जूते या चप्पल के जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता तब मदुरई के पास स्थित इस गांव में यह परम्परा आज भी जीवित है । हालांकि गांव के कुछ वृद्ध लोगों को गांव के भीतर जूते या चप्पल पहनने की छूट मिली हुई है ।
मदुरई के पास कलिमायन नामक गांव में लोगों को आज भी लगता है कि यदि वह इस परंपरा को तोड़ेंगे तो उन्हें या उनके परिवार में कोई विपदा आ जायेगी । लोग सोचते हैं कि यदि गांव के भीतर जूते चप्पल उन्होंने पहना तो कोई लाइलाज बीमारी या भुखमरी या कोई भी बड़ी आपदा उन्हें और उनके परिवार को परेशान करेगी । कहा जाता है कि कलिमायन गांव में लोग अपाच्छी नामक देवता को कई पीढ़ियों से पूजते आ रहे हैं ।
देवता के प्रति गांव के लोगों की श्रद्धा इतनी अगाध है कि लोग गांव के भीतर जूते या चप्पल नहीं पहनते । लोगों का मानना है कि ये देवता उनकी और पूरे गांव की रक्षा करते हैं । देवता के प्रति दिखाने के लिए गांव के बाहर एक विशाल पेड़ है जहां पर लोग पूजा करते हैं । गांव की सीमा पर स्थित इस पेड़ के बाद गांव की सीमा शुरू हो जाती है जिससे गांव आने वाले लोग यहां आकर जूते चप्पल उतारकर हाथ मे ले लेते हैं और तब ही गांव में घुसते हैं ।
India में जहां कहीं भी मन्दिर या धार्मिक स्थल हैं वहां अंदर घुसने से पहले जूते या चप्पल नहीं पहने जाते । लोग धार्मिक स्थलों में प्रवेश से पहले ही जूते और चप्पल बाहर उतार देते हैं । कुछ ही ऐसी ही मान्यता कलिमायन गांव के लोगों की भी है । इस गांव में रहने वाले लोग गांव को मन्दिर जैसा पवित्र मानते हैं और चूंकि मन्दिर के भीतर जूते या चप्पल पहनकर नहीं जाया जाता इसलिए यह लोग भी गांव में प्रवेश से पहले जूते और चप्पल उतारकर हाथ मे ले लेते हैं ।
ये बच्चा अपनी तोतली आवाज में बता रहा कराटे सिख कर मैं पापा को मरूंगा, सब हंसने लगे
चाहे जितनी गर्मी हो या चाहे जितनी बारिश हो रही हो इस गांव के भीतर जो भी आदमी दिखेंगे सब नंगे पांव ही दिखते हैं । पुरूष हो या महिलाएं या फिर बच्चे ही क्यों न हों गांव के भीतर किसी को भी जूते चप्पल पहनने की इजाजत नहीं है । यह उनकी खुद की मान्यता है । यह पंरपरा सदियों से चली आ रही है ।