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Panchayat 2: आखिर क्यों महत्वपूर्ण है इस सीरीज का आखिरी एपिसोड, सभी को देखना चाहिए पिक्चर का अंत

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Panchayat 2: कुछ लोग यह महसूस करते हैं की पंचायत के दूसरे सीजन का आखिरी एपिसोड बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन ऐसा कहने वालो की मंशा अपने मनोरंजन के गमछे के पीछे बलिया की हकीकत को नजरअंदाज कर देना है।

इस सीरीज का सबसे अहम हिस्सा है आठवां एपिसोड

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अभी कुछ दिनों पहले ही ओटीटी प्लेटफार्म अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई Panchayat 2 को देखने के बाद लोग इस सिरीज़ में काम करने वाले कलाकारों की प्रशंसा कर रहे हैं। इस सीरीज के पहले पार्ट ने ही सनसनी मचा दी थी। तभी से दर्शक इस पिक्चर का दूसरा पार्ट देखने के लिए उत्साहित थे।आपको बता दें की वैसे तो पुरी सीरीज ही लाजवाब है किंतु इस सीरीज का आठवां एपिसोड इस सीरीज का सबसे अहम हिस्सा है।

वैसे तो पहले सीजन की तरह ही फुलेरा गांव घूम कर लोग काफी खुश हुए हैं। हालांकि इस दूसरे सीजन में श्रीकांत वर्मा और नीना गुप्ता जैसे किरदार में इजाफा करके नया रंग जोड़ने में निर्देशक असमर्थ रहे हैं। साथ ही जितेंद्र और रघुवीर यादव पहले सीजन के जैसे ही प्रिडिक्टेबल रोल में ही नजर आए हैं। किंतु वनराकस का और विनोद के रोल में दुर्गेश और अशोक पाठक ने कमाल की अदाकारी की है। वहीं पहलाद पांडे की भूमिका में फैसल मलिक की भूमिका हमेशा याद रहेगी।

Panchayat 2 का आठवां एपिसोड देखे बिना नहीं रहा जा सकता

इसी जैन को देखने के बाद कुछ दर्शकों का मंतव्य है की इस सीरीज का आठवां एपिसोड इस पुरी स्टोरी से मेच नहीं कर रहा है। कुछ दर्शकों के अनुसार जबरन देश भक्ति और भावुकता का छौंका लगा दिया है लेकिन सच बात तो यह है की इस सीजन का आखिरी एपिसोड देखे बिना हम रह नहीं सकते हैं। सच बात कही तो ऐसा विचार हमारे मन में तभी आता है जब हम इस पुरी सीरीज को सिर्फ अपने स्वार्थ यानी मनोरंजन की हद तक देखने के लिए ही सीमित रखते हैं। हम लोगों के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझ कर उसे महसूस करना ही नहीं चाहते।

वास्तविक जीवन से बड़ी ही करीब है पंचायत

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इस बात में इनकार नहीं की पंचायत पुरी सीरीज ही मनोरंजन है क्योंकि बहुत ही लंबे समय के बाद इतनी कम लागत और बिना तामझाम के एक सीधी सादी चीज हमें देखने को मिली है जो हमारे वास्तविक बिंबों से बहुत ही करीब है। गांव को यथारूप सहजता से दिखा देना ही पंचायत की सबसे बड़ी ताकत है और गांव न जानने वालों के लिए या गांव से निकल जाने वाले लोगों के लिए गांव को उसके वास्तविक रूप में ददेख लेना ही पंचायत के प्रति लोगों के आकर्षण को बढ़ा देता है।

फुलेरा का जीता जागता सच है उत्तर प्रदेश का जिला बलिया

जी हान उत्तर प्रदेश का जिला बलिया एक ऐसा रेलवे स्टेशन है जहां पर आपको हर वक्त आर्मी की वर्दी में काले बक्से लेकर खड़े हुए फौजी नजर आएंगे। भारतीय सेना में बलिया के गांव गांव से लोग भर्ती होते हैं। यह बात हमारे लिए आम नहीं है लेकिन देश की सरहदों पर होने वाली हिंसा या हमलों की चिताएं बलिया की मिट्टी पर अक्सर जलती हुई मिलती है। उत्तर प्रदेश का बलिया एक ऐसा इलाका है जहां फौजियों के शवों का घर पर आना कोई ऐश्वर्या की घटना नहीं होती है। प

Panchayat 2 में एक डायलॉग में कहां गया है की 20 से 30 हजार में देश के लिए मरने वाला जवान और कहां मिलेगा। यही बलिया का सच है और इसलिए फुलेरा भी इस सच का सबसे बड़ा भागीदार है।

फुलेरा को हल्के में लेना सबसे बड़ी गलती

अगर हम Panchayat 2 को हस-हंस कर देखते हैं तो हमें यह बात भी समझ लेनी चाहिए की हंसता हंसाता और छोटी नोंकझोंक में रहने वाला गांव ही अक्सर ऐसा कुछ कर जाता है जो बड़े से बड़े दिग्गज को भी हिलाकर रख देता है। हमारे देश की सेना ही में सिपाहीयों की आमद भारत के गांव से ही होती है और सबसे ज्यादा इन्हीं की जाने भी जाती है। इसलिए अगर यह सोचते हैं की दो कौड़ी के प्रहलाद पांडे का दो कौड़ी का गांव है। लेकिन याद रखे कि यह गांव ही हमारे जवानों की कीमत से देश के लिए कुर्बानी देता है। इसलिए फुलेरा गांव को हल्के में लेना सबसे बड़ी गलती है।

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आंखों को नम कर देता है Panchayat 2 का आठवां एपिसोड

पंचायत देखते समय हमें प्रहलाद पांडे के फौजी बेटे की शव यात्रा अतिरंजीत लगती है। बड़े ही करीने से लहराते हुए तिरंगे और ड्रोन से लिए गए शॉर्ट्स इसे देश भक्ति की अतिरिक्त चाशनी में जरूर लपेट देते हैं लेकिन पुरी कथा के गर्भ में देश नहीं सिर्फ और सिर्फ प्रहलाद पांडे ही मौजूद है, जिसकी बीवी को मारे हुए 12 साल हो चुके हैं और जब भी उसका बेटा घर आता है तो वह आपने हाथों से रोटी सेक कर अपने बेटे को खिलाता है।

Panchayat 2, जिसकी हंसी में भोलापन, सामाजिक जीवन और मिलन सरिता मौजूद है। लेकिन फिर भी उसकी कहानी में तो सिर्फ अकेलापन ही होता है। प्रहलाद पांडे के बेटे का फौज में होना भी एक अकेलापन ही था लेकिन फिर भी उसे एक उम्मीद थी। लेकिन बेटे की शहादत ने बेटे को नहीं किंतु प्रहलाद पांडे की उम्मीद को भी शहिद कर दिया है।

Panchayat 2, पंचायत का दूसरा महत्वपूर्ण सीन है प्रहलाद का विलाप। 3 दिन से अपने घर में कैद रहे प्रहलाद पांडे को जब उसके साथी पंचायत भवन में लाकर खाना खाने बिठाते हैं तो वह फूट-फूट कर रो पड़ता है। प्रहलाद का वह रोना हमें बहुत ही परिचित और सच्चा लगता है। जब भी हम यह सीन देखते हैं तो हमारी आंखों से भी आंसू निकल आते हैं। पंचायत के इस सीन में एक पुरुष को कठोर परिस्थितियों से लड़ता हुआ दिखाया गया है।

रुदाली के ऐसे घोर पुरुषवादी बिंबों में पुरुषों का ऐसा विलाप भी एक अहम दृश्य ही है जिसके लिए भी पंचायत के इस एपिसोड को हमेशा याद किया जाएगा ।

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