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Origin of Life on Earth: पृथ्वी पर जीवन की कैसे उत्पत्ति हुई, सौर तूफान खोलेंगे राज, शोध में हुआ खुलासा

Origin of Life on Earth

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पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हो पाई, इसे जानने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत शोध किया, जिससे पता चला कि शुरुआत में वायुमंडलीय रसायन विज्ञान(Atmospheric Chemistry) ने जीवन को शुरू करने में किस प्रकार मदद की।

पृथ्वी पर जीवन की उत्पति (Origin of Life on Earth)



पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति (Origin of Life on Earth) का राज वैज्ञानिकों ने खोला
युवा सूरज आज की तुलना में सिर्फ 70 प्रतिशत रेडियशन(Radiation) उत्सर्जित करता था, तब सूरज में सोलर फ्लेयर की संख्या बहुत ही ज्यादा हुआ करती थी।

Origin of Life on Earth

Origin of Life on Earth 70 करोड़ साल पहले बनी थी पृथ्वी


अब से करीब 70 करोड़ साल पहले, हमारी पृथ्वी(Earth) बनी थी। उसकी सतह को ठंडा होने और जमने के बाद, पृथ्वी पर जीवन फलने-फूलने लग गया। सभी तरह के अध्ययनों से पता चलता है कि जीवन की उत्पत्ति के लिए पानी बेहद ज़रूरी है, और हम सब जानते हैं कि पृथ्वी पहले इतनी गर्म थी कि यहां पानी का होना नामुमकिन था, लेकिन इसमें भी एक रहस्य छुपा है।



तब सूरज आज की तुलना में रेडियशन का करीब 70 प्रतिशत ही उत्सर्जित कर पता था। इसका मतलब ये हुआ कि सूरज ने तब पृथ्वी को इतना ही गर्म किया था, जिससे की उसकी सतह पर पानी के रहने की संभावना बनी रहे। लेकिन नेचर जियोसाइंस(Nature Geoscience) में प्रकाशित शोध से पता चला है कि सूरज तब बहुत ही अधिक सक्रिय रहा होगा। इस शोध में पृथ्वी पर और उससे आगे, जीवन के लिए जरूरी सरल अणुओं के बनने के सिद्धांतों के बारे में बताया गया।

Origin of Life on Earth



तो इतनी शुरुआत में पृथ्वी की सतह पर पानी कैसे मौजूद हो सकता है, इस बात पर कई सालों से बहस चल ही रही है। माना जाता है कि प्रारंभिक वातावरण में जरूरी ग्रीनहाउस गैसें(Greenhouse Gases) रही होगी। यह मानते हुए कि वातावरण(Atmosphere) में ये गैसें पहले ही मौजूद थीं, शोधकर्ताओं ने इसके कई कम्प्यूटेशनल मॉडल बनाए, जो यह बताते हैं कि उस समय वायुमंडलीय रसायन विज्ञान(Atmospheric Chemistry) ने जीवन को शुरू करने में किस प्रकार मदद की होगी।

क्या पता चला है शोध में



“युवा सूरज आज की तुलना में सिर्फ 70 प्रतिशत रेडियशन(Radiation) उत्सर्जित करता था।”

Origin of Life on Earth


यह पता लगाने के लिए कि शायद ऐसा नहीं हुआ था, शोध में एक्सोप्लैनेट-हंटिंग मिशन केप्लर(Exoplanet-Hunting Mission Kepler) के डेटा का इस्तेमाल किया गया, जो अलग अलग तरह के सितारों(Stars) की गतिविधि को रिकॉर्ड(Record) करता है।वास्तव में, केप्लर द्वारा देखे गए युवा सूरज जैसे सितारों से निकलने वाले सोलर फ्लेयर(Solar Flares) की संख्या और फ्रीक्वेंसी(Frequency) यह दर्शाती है कि हमारा अब का नया सूरज पहले की तुलना में बहुत ही ज्यादा सक्रिय रहा होगा।



हालांकि, यह अपने वर्तमान स्तर का करीब 70% रेडियशन ही उत्सर्जित किया करता था, लेकिन सूरज में सोलर फ्लेयर या कोरोनल मास इजेक्शन(CME) की संख्या बहुत ही ज्यादा और तेज थी। ऐसी घटनाओं के दौरान, सूरज से ऊर्जावान कणों(Energetic particles) के उत्सर्जित होने की बहुत संभावना होती है, जिन्हें चुंबकीय क्षेत्र(Magnetic Field) से शक्ति मिलती है।

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Origin of Life on Earth


शोधकर्ताओं ने गणना के अनुसार युवा सूरज ने हर दिन कम से कम 1 CME का उत्पादन किया करता रहा होगा जो, पृथ्वी की दिशा में था। यानी इसका मतलब यह हुआ कि पृथ्वी के वायुमंडल में छोड़ी गई ऊर्जा की मात्रा, सभी तरह से रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए काफी थी। पता चला है कि उस समय के वातावरण में नाइट्रोजन(Nitrogen) बहुत ज्यादा थी। सूर्य के ऊर्जावान कणों ने, नाइट्रोजन अणु को 2 बेहद प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन परमाणुओं में बांट दिया होगा। इसके बाद फिर ये प्रारंभिक वातावरण में मौजूद किसी भी अणु के साथ प्रतिक्रिया कर सकते थे। जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड(CO), कार्बन डाइऑक्साइड(CO2), पानी(H2O), मीथेन(CH4), अमोनिया(NH3) इत्यादि।


इनमें से कई रिएक्शंस (Reactions) से अंत में हाइड्रोजन साइकेनाइड(HCN) और नाइट्रस ऑक्साइड(N2O) बनते है। इसे लॉफिंग गैस(Laughing Gas) के रूप में भी जाना जाता है, जो एक काफी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। जिसके होने से पानी की मौजूदगी भी संभव है। लेखकों ने अपने शोध में यह भी सुझाव दिया है कि सतह पर अन्य नाइट्रोजन वाले अणुओं की बारिश ने भी, नए जीवन के लिए फर्टिलाइज़र का काम किया होगा।

CHANDRA PRAKASH YADAV

Why So Serious??

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