Interesting Facts: नेत्रहीन होकर भी रच डाला इतिहास दुनिया के लिए बने मिसाल

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Interesting Facts: आपने ऐसी बहुत सारी कहानियां पढ़ी होंगी जिसमें कुछ ना कुछ ऐसा दिखाया गया होगा जो असंभव था लेकिन किसी ने उसे कर दिखाया, पर क्या आपने वास्तविक जीवन में कभी ऐसे व्यक्ति को देखा है या क्या आप ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने असंभव को वास्तव में संभव कर दिखाया हो,अगर नहीं तो ,आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताने वाले हैं जिसने नेत्र हीन होकर भी कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और दुनिया के सामने अपनी एक अलग पहचान बना कर एक मिसाल पेश की।

गुजरात के हैं यह शख्स नाम है……..?

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हम जिस व्यक्ति के बारे में बात करने जा रहे हैं वह गुजरात के पाटन जिले के सोजित्रा गांव से संबंधित है और इनका नाम मदन भाई ठाकोर है,आपको बता दें कि मगन भाई ठाकुर को बचपन से ही कम दिखने की समस्या थी लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से यह इलाज नहीं करा सके और कक्षा 6 में ही इनकी आंखों की रोशनी पूरी तरीके से चली गई और इन्हें पाक के दिव्यांगों के एक आश्रय स्थल भेज दिया गया जहां पर इन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की।

नहीं मानी हार आईटीआई का किया कोर्स

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जिसकी आंखों से दिखता ना हो उसके लिए पढ़ाई या कोई अन्य कार्य कर पाना एक चमत्कार से कम नहीं होता है, लेकिन मगन भाई ठाकोर ने कभी भी हार नहीं मानी उन्होंने 1986 में अहमदाबाद से आईटीआई का कोर्स किया, इसके बाद मैकेनिक का काम सीखा फिर कुछ समय तक वह घूम घूम कर मोटर और पाइप रिपेयरिंग का काम करते रहे ,लेकिन जब उन्हें इससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ तो उन्होंने कुछ और करने का सोचा और फिर नए हुनर की तलाश में निकल पड़े।

बुनाई के हुनर से दुनिया में हासिल की पहचान

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मगन भाई ठाकुर का एक दृढ़ संकल्प था, कि वह किसी के सामने हाथ नहीं फैलायेंगे, इसी वजह से वह कुछ ना कुछ ऐसा कर लेना चाहते थे जिससे वह अपने पैरों पर खड़े हो सके इसीलिए जब मोटर और पाइप रिपेयरिंग का काम उनको नहीं जचा तब उन्होंने बुनाई का हुनर सीखा और जीवन के शुरू के 30 वर्षों में पाटन शहर में लकड़ी की कुर्सियों में प्लास्टिक की डोरी से विभिन्न आकृतियां बनाने का काम करने लगे और यहीं थे उन्हें एक अलग पहचान मिलना शुरू हो गई।

कर्ज से शुरू की दुकान

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1990 में मगन भाई ठाकुर ने बैंक से ₹8000 का कर्ज लिया और गांव से 14 किलोमीटर दूर पाटन शहर में एक दुकान खोली प्रतिदिन अकेले बस से शहर जाकर दुकान में पुरानी कुर्सियों में बुनाई कर उन्हें खूबसूरत बनाने का काम करने लगे और धीरे-धीरे उनका काम लोगों को पसंद आने लगा है और उनके ग्राहक बढ़ने लगे इसी के साथ बढ़ने लगी मदन भाई ठाकुर की छाती आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस व्यक्ति को बिल्कुल भी ना दिखता हो उसका प्रतिदिन 14 किलोमीटर का सफर करके जाना और कुर्सियों में बुनाई जैसा गंभीर कार्य करना कितना प्रेरणादाई हो सकता है।

संघर्षों का फिर करना पड़ा सामना

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वर्ष 2004 में मगन भाई ठाकुर के सामने फिर एक मुसीबत खड़ी हुई जब नगर पालिका ने उनकी दुकान को हटा दिया इसके बाद मगन भाई ठाकुर को स्थानीय प्रशासन के ऑफिस के चक्कर लगाने पड़े काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्हें हार नहीं मानी और अंततः सरकार ने उन्हें उसी शहर में दूसरी जगह दुकान चलाने के लिए थे और यहां पर भी मगन भाई ठाकुर ने जल्द ही अपना सिक्का जमा दिया और यहां पर भी उनके ग्राहक बड़ी संख्या में बन गए।

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लॉकडाउन में रुकने लगा काम पर नहीं हुए निराश

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Interesting Facts लॉकडाउन के समय में लगभग सभी कार्य ठप होने की कगार पर थी कुछ तो ठप हो भी गए,इस प्रभाव से मदन भाई ठाकुर भी अछूते नहीं रहे ,जब उनके पास बहुत काम हुआ करता था तब भी वह हिम्मत धैर्य के साथ कार्य करते थे लेकिन lock-down में जब उनके पास कार्य नहीं बचा तभी वह धैर्य से सही समय आने की प्रतीक्षा कर रहे थे एक साक्षात्कार में मगन भाई ठाकुर बताते हैं कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी पहले उन्हें कुर्सी डिजाइन के लिए एक कुर्सी डिजाइन पर ₹75 मिलते थे आज में एक खुशी के डिजाइन करने पर ₹200 मिलते हैं

मगन भाई ठाकुर कहते हैं कि उन्हें बहुत अच्छा लगता है जब लोग उनके नाम की मिसाल देते हैं तो आप देख सकते हैं कि एक व्यक्ति जो नेत्र हीन है नेत्र हीन होने के बावजूद उसने अपनी मेहनत और अपनी कला से दुनिया में एक अलग पहचान बनाई और पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया आधुनिक भारत के लोगों को मगन भाई ठाकुर से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।

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