Chhath Puja 2024: छठ पूजा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और भारत के अन्य हिस्सों में हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला पर्व है, जो सूर्य देवता और छठी मइया की पूजा को समर्पित है। इस महापर्व में प्रकृति, सूर्य, और जल के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है, और यह चार दिनों तक चलने वाला तप और अनुशासन का पर्व है। पहले दिन से ही छठ व्रतधारी सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं, जिसमें शुद्ध और प्राकृतिक भोजन का सेवन होता है। इस पवित्रता और अनुशासन का एक अनोखा पहलू “नहाय खाय” है, जो व्रत की शुरुआत का प्रतीक है। आइए जानते हैं क्यों नहाय खाय के दिन सात्विक भोजन का विशेष महत्व होता है और इसके पीछे के धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण।
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Chhath Puja 2024: छठ पूजा के पहले दिन यानी नहाय खाय के दिन, व्रतधारी स्नान करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं और उसके बाद शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन बिना प्याज और लहसुन का भोजन बनता है, जिसमें लौकी और कद्दू की सब्जी विशेष रूप से शामिल होती है। नहाय खाय के भोजन का उद्देश्य शरीर को आवश्यक पोषक तत्व देना और अगले निर्जला उपवास के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करना है। यह भोजन पाचन के लिए हल्का होता है, जिससे पेट में लंबे समय तक आराम बना रहता है, और भूख-प्यास की भावना कम होती है।
धार्मिक कारण: लौकी और कद्दू को छठ में विशेष महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि इसे शुद्ध और पवित्र सब्जियां मानी जाती हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि ये सब्जियां सात्विक ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे पूजा का महत्व और प्रभाव बढ़ता है। नहाय खाय में इस भोजन को ग्रहण करना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति स्वयं को आत्मा और शरीर दोनों ही रूप में पवित्र कर रहा है।
वैज्ञानिक कारण: लौकी और कद्दू के सेवन के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। पटना के ज्योतिषविद् डॉ. श्रीपति त्रिपाठी बताते हैं कि कद्दू में जल की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे शरीर में हाइड्रेशन बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके साथ ही, इसमें फाइबर, पोटैशियम, विटामिन ए, और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को ऊर्जा देते हैं। चूंकि छठ का व्रत 36 घंटे का निर्जला उपवास होता है, ऐसे में कद्दू जैसे हाइड्रेटिंग और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन का सेवन शरीर को तैयारी में सहायक होता है।
लौकी का लाभ: लौकी भी पानी से भरपूर होती है और इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन में सहायक होती है। इसके अलावा, इसमें पाए जाने वाले आवश्यक खनिज और विटामिन शरीर को अंदर से शुद्ध करते हैं। नहाय खाय के दिन लौकी और चना दाल के साथ चावल का संयोजन भी खास है, क्योंकि ये पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखते हैं और शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
छठ पूजा का पर्व चार दिनों का होता है और इसमें कई धार्मिक और वैज्ञानिक विधियां जुड़ी होती हैं:
1. नहाय खाय (पहला दिन) – इस दिन व्रतधारी शुद्धता के प्रतीक स्वरूप स्नान करते हैं और शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
2. खरना (दूसरा दिन) – छठ का दूसरा दिन खरना कहलाता है, जिसमें व्रतधारी पूरे दिन उपवास रखते हैं और संध्या के समय चावल और गुड़ की खीर के साथ भोजन करते हैं। यह विशेष भोजन ऊर्जा प्रदान करने वाला और पौष्टिक होता है, जिससे अगले दिन के निर्जला उपवास में शक्ति मिलती है।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन) – तीसरे दिन व्रतधारी सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह प्रक्रिया सूर्य की किरणों का हमारे शरीर पर पड़ने वाला सकारात्मक प्रभाव दर्शाती है। सूर्यास्त की लालिमा के समय का यह अर्घ्य अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।
4. उषा अर्घ्य और पारण (चौथा दिन) – चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। पारण के साथ ही इस महापर्व का समापन होता है, और व्रतधारी अपने परिवारजनों और प्रियजनों के साथ विशेष भोजन का आनंद लेते हैं।
Chhath Puja 2024: छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। सूर्य की किरणों में पाया जाने वाला अल्ट्रावायलेट और इंफ्रारेड स्पेक्ट्रम हमारे शरीर में विटामिन डी का निर्माण करता है, जो हड्डियों और इम्यून सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण है। सूर्य को जल अर्पित करने का भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण है; जल में सूर्य की किरणें टूटकर पड़ती हैं, जिससे एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह क्रिया न केवल मानसिक शांति प्रदान करती है बल्कि शरीर को नई ऊर्जा से भर देती है।
Chhath Puja 2024: छठ महापर्व का न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है। इस दौरान लोग अपने परिवार और समाज के साथ जुड़ते हैं। पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिससे समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलती है। यह त्योहार समाज में एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है, क्योंकि सभी वर्ग और समुदाय एक साथ आकर छठ पूजा में भाग लेते हैं।
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इस प्रकार, छठ महापर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य, संस्कृति और समाज के प्रति आस्था, सम्मान और जागरूकता का प्रतीक है।