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“Gyanvapi Masjid नहीं बल्कि विशेश्वर मन्दिर था” इस ब्रिटिश लेखक की किताब से हुआ खुलासा

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Gyanvapi Masjid

Gyanvapi Masjid: बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में मिले ‘शिवलिंग’ के बाद बवाल मचा हुआ है । हर कोई अपने अपने दावे कर रहा है । जहां हिन्दू पक्ष इस बात पर अड़ा हुआ है कि जिस जगह पर आज ज्ञानवापी मस्जिद है वह मन्दिर तोड़कर बनाई गई है । वहीं मुस्लिम समुदाय भी अपने दावे कर रहा है । मामला कोर्ट में है। इस बीच 19 वीं शताब्दी में ब्रिटिश लेखक, आर्किटेक्ट और मानचित्रकार जेम्स प्रिंसेप की पुस्तक Benares Illustrated” चर्चा में है।

1831 में लिखी गयी इस किताब में काशी का इतिहास, इस धार्मिक नगरी की संस्कृति, यहां मौजूद घाट, यहां के लोग और ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मन्दिर के बारे में भी जानकारी दी गयी है । ब्रिटिश वास्तुकार और लेखक जेम्स प्रिंसेप ने अपनी इस पुस्तक में ऐसे साक्ष्य दिए हैं जिनसे साबित होता है कि Gyanvapi Masjid परिसर दरअसल विशेश्वर मन्दिर था जिसपर औरंगजेब ने 17 वीं में अतिक्रमण कर यहां मस्जिद बनवा दी थी।

पुस्तक में लिथोग्राफ़ी के जरिये दिए साक्ष्य

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ब्रिटिश इतिहासकार, योजनाकार और मानचित्रकार जेम्स प्रिंसेप ने अपनी इस पुस्तक में उस वक्त की काशी को लिथोग्राफ़ी के जरिये दर्शाया है । बता दें कि औरंगजेब द्वारा निर्मित “ज्ञानवापी मस्जिद” के पुनरुद्धार के लिए जेम्स प्रिंसेप ने 19 वीं सदी में काशी का दौरा किया था । इस दौरान उन्होंने इस शहर का व्यापक सर्वेक्षण किया और प्राप्त साक्ष्यों को लिथो6 के जरिए अपनी पुस्तक में लिपिबद्ध किया है ।

लिथोग्राफ़ी एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जेम्स प्रिंसेप द्वारा की गई लिथोग्राफ़ी बहुत ही उच्च कोटि की है । ब्रिटिश इतिहासकार ने यह लिथोग्राफ़ी मेटल धातु पर स्याही की सहायता से की है ।

विवादित परिसर कभी विशेश्वर मन्दिर था

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ब्रिटिश लेखक जेम्स प्रिंसेप ने अपनी पुस्तक बनारस इलस्ट्रेटेड में विस्तार से “ज्ञानवापी मस्जिद” के बारे में बताते हैं । जेम्स लिखते हैं कि उस वक्त यह मस्जिद शहर की प्रमुख मस्जिद या जुम्मा मस्जिद कही जाती थी । वह आगे कहते हैं कि औरंगजेब ने हिन्दू दीवारों पर गुम्बद और मीनार बनवाई ।

यह सब एक ही समय पर हुआ। ब्रिटिश इतिहासकार आगे लिखते हैं कि 17 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी जीत और सत्ता की खुशी में वर्चस्व कायम करने के लिए किसी भी मूल सरंचना की आधी दीवारों को नष्ट किये बिना उनके ऊपर अपने धर्म सम्बन्धी निर्माण कराया । धर्म की जीत के उत्साह में मुगलों ने ऐसा किया।

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वास्तुकार और मानचित्रकार जेम्स प्रिंसेप आगे लिखते हैं कि गुम्बद का जो पहला हिस्सा बना हुआ है वह हिन्दू है । इस चौकोर बहुभुज को तिरछा काटकर गोलाकार रूप दिया गया । ब्रिटिश लेखक आगे लिखते हैं कि विशेश्वर के जिस मन्दिर में शिवलिंग मौजूद था उसे भगवान शिव या महादेव के रूप में पूजा जाता था। इस इमारत की दीवार पर बहुत से ऐसे सबूत हैं जो हिन्दू संस्क्रति से जुड़े हुए हैं । बता दें कि जेम्स प्रिंसेप ने 10 साल बनारस में बिताए थे ।

वह ब्रिटिश एशियाटिक सोसायटी के सबसे कम उम्र के सदस्य थे । उन्होंने इस दौरान ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर बनारस के तमाम मन्दिर, घाटों के चित्र लिए और उनकी लिथोग्राफ़ी भी की है । उन्होंने करीब आधा दर्जन किताबें लिखीं ।

क्या होती है लिथोग्राफ़ी

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बता दें कि ब्रिटिश इतिहासकार, वास्तुकार और लेखक जेम्स प्रिंसेप ने अपनी पुस्तक बनारस इलस्ट्रेटेड में जिस लिपि का उपयोग तब की स्थिति को समझाने में किया है वह लिथोग्राफ़ी है । लिथोग्राफ़ी शब्द यूनानी भाषा के लिथो( पत्थर) और ग्राफ़ी( लिखना) के शब्दों के मेल से बना है । किसी पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा उस कोई डिजाइन बनाकर उसके छाप उतारने की कला लिथोग्राफ़ी कहलाती है । पत्थर के स्थान पर एल्युमिनियम या धातु की प्लेट पर भी लिथोग्राफ़ी की जाती है ।

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अन्य लेखको ने भी पुस्तकों में किया दावा

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बता दें कि जेम्स प्रिंसेप के अलावा और भी कई लेखकों ने तब की काशी नगरी का न केवल भृमण किया बल्कि उनके बारे में अपनी पुस्तकों में भी लिखा है । इन्हीं लेखकों में से 1884 में आये ब्रिटिश लेखक सैमुअल बील, जान मर्ड्क( पुस्तक- काशी आर बनारस: द होली सिटी ऑफ हिन्दूज), 1868 में सेरिंग मैथयू ( पुस्तक- द सेक्रेड सिटी ऑफ हिन्दूज) नामक तमाम किताबें लिखी हैं । बता दें कि अन्य ब्रिटिश लेखकों ने भी “ज्ञानवापी मस्जिद” को 1669 में औरंगजेब द्वारा विशेश्वर मन्दिर पर अतिक्रमण करके बनाया गया बताया है ।

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