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चिपको आंदोलन के प्रणेता वृक्ष मित्र सुंदरलाल बहुगुणा की कोरोना से मौत

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चिपको आंदोलन के आंदोलनकारियों में से एक आंदोलनकारी सुंदरलाल बहुगुणा का निधन 21 मई शुक्रवार को 12:05 को हो गया. सुंदरलाल बहुगुणा को 8 मई से कोरोना की शिकायत हुई और वह उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया. अस्पताल में ही सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली. यह हमारे देश के लिए एक पूरी ना कर सकने वाली क्षति हो गई है.

सुंदरलाल बहुगुणा

सुंदरलाल बहुगुणा प्रकृति प्रेमी पर्यावरण विद थे. जिन्होंने प्रकृति के दर्द को समझा. उन्होंने चिपको आंदोलन में पेड़ों की कटाई पर विरोध किया इसलिए उन्हें वृक्ष मित्र नाम दिया गया.

1962 में भारत चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने तिब्बत सीमा पर अपने पैर मजबूत करने की तैयारी कर ली थी कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक बॉर्डर के इलाकों में सड़क बनाने का काम किया जाने लगा उस समय उत्तर प्रदेश जो अभी उत्तराखंड है, का चमोली जिला सड़क निर्माण प्रक्रिया शुरू हो गई सड़क बनाने के लिए पेड़ों की कटाई जरूरी थी इसलिए बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई का भारत सरकार द्वारा ठेका भी दे दिया गया. 1972 आते-आते पेड़ों की कटाई और तेज हो गई. 1973 में यह तय किया गया कि रैणी गांव में ढाई हजार पेड़ काटे जाने हैं इसके विरोध में पूरा गांव खड़ा हो गया.

चिपको आंदोलन में पेड़ों से चिपकी हुई स्थानीय महिलाएं

पेड़ों की कटाई के विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट विरोध में सामने आ गए और इस आंदोलन की खास बातें थी कि इस आंदोलन में महिलाओं की प्रमुखता थी. इस आंदोलन के लिए एक कमेटी बनाई गई जिसे महिला मंगल दल नाम दिया गया इस कमेटी मैं गौरा देवी को इसका अध्यक्ष बनाया गया. गोरा देवी के नेतृत्व में गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपक गई उनका कहना था पहले हमें काटो फिर पेड़ों को काटना. महिला मंगल दल की महिलाएं गांव गांव जाकर पेड़ों की  महत्त्व को  समझाती थी और लोगों को जागरूक  करती थी.

चिपको आंदोलन में महिला मंगल दल के अध्यक्ष गौरा देवी

इस आंदोलन की हवा आसपास के क्षेत्रों में भी फैल गई जिससे सभी जागरूक हुए और पेड़ काटे जाने का पुरजोर विरोध किया. सुंदरलाल बहुगुणा के प्रकृति प्रेम और उनकी प्रकृति  और मानवता के प्रति अच्छे विचारों को  दुनिया ने समझा और वह विश्वव्यापी विचारक के रूप में सराहे गए लेकिन दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी के चलते देश के कितने सूर्य अस्त हो गए. और यह सूरज भी अपनी प्रखर रश्मियों को समेटकर सदैव के लिए अस्त हो गया.

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