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world war की धमकियों के बीच India ने कहा, कच्चा तेल वहीं से खरीदा जाएगा, जहां से मिलेगा

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world war: मंदी की आशंका एवं world war की धमकियों के बीच पश्चिमी देश कच्चा तेल खरीदने के लिए नए विकल्प की अब तलाश कर रहे हैं। Rasiya के Ukraine पर हमले के बाद से यूरोपीय संघ ने इस देश से तेल खरीदना कम कर दिया है, ताकि आर्थिक रूप से झटका दिया जा सके।

वहीं पर तेल उत्पादक देश America सहित कई अन्य देश रूस के अच्छा खासा राजस्व देने वाले कच्चे तेल पर भी नजर गड़ाए बैठे हैं। इस सेक्टर में Rasiya को असहाय करने की कवायद में Rasiya कच्चे तेल के आयात में कमी लाना ही पश्चिमी देशों का सबसे बड़ा मकसद है।

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इसके लिए वह world war के अन्य देशों को भी Rasiya से कच्चा तेल न खरीदने की नसीहत दे चुके हैं। पश्चिमी देशों ने Rasiya के साथ ही दोस्ताना संबंध रखने वाले भारत को भी चेताया था कि वो Rasiya से तेल न खरीदें, लेकिन इसके बाद भी एक बात है जो नहीं बदली वो यह है कि यूरोपीय देश Rasiya से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर हैं। दिसंबर में Rasiya पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहा Ukraine संघ भी इस मामले में अपना कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है।

भारत अपनी मर्जी से खरीदेगा तेल

एक हफ्ते पहले ही भारत के केंद्रीय तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार (8 अक्टूबर) को यह साफ किया था कि अपने नागिरकों के ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए उसे जहां से कच्चा तेल मिलेगा वह वहां से खरीदेगा। मंत्री पुरी का यह बयान ऐसी खबरों के बीच आया था जब यह कहा जा रहा था कि भारत पर Rasiya से कच्चा तेल न खरीदने का दवाब है।

गौरतलब है कि पश्चिमी देशों ने Rasiya के यूक्रेन पर हमले के बाद उससे तेल खरीदना बंद कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि Rasiya कच्चे तेल के दाम गिर गए। इन सबके बीच Rasiya के तेल से आने वाले राजस्व चीन एवं भारत के भरोसे आता रहा। इन दोनों देशों ने Rasiya से कम दामों पर कच्चा तेल खरीदना जारी रखा।

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अब जब तेल निर्यातक 13 देशों तथा प्लस समूह के 10 देशों से मिले ओपेक प्लस ने अपना तेल उत्पादन घटाने का फैसला लिया तो इससे कच्चे तेल के बाजार में अब हलचल मच गई। ओपेक प्लस ने इस माह के पहले हफ्ते में नवंबर से रोजाना 20 लाख बैरल तेल का उत्पादन घटाने का फ़ैसला किया है। गौरतलब है कि ओपेक प्लस देशों की अगुवाई Rasiya करता है। उन्होंने इस संगठन पर Rasiya का साथ देने का आरोप लगाया है।

ओपेक प्लस समूह में सऊदी अरब को बढ़त हासिल है। इस देश के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान Rasiya राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के संग हैं। इसे लेकर पश्चिमी देशों में हलचल भी मची हुई है, वह लाख कोशिशों के बाद भी Rasiya से कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम नहीं कर पाएं हैं। यही कारण है कि यह देश तेजी से Rasiya का विकल्प खोजने की कवायद में हैंं।

तेल के जरिए Rasiya को तोड़ने की कवायद

पश्चिमी देश Rasiya को कच्चे तेल के मामले में घेरने की पूरी तैयारी में है। दरअसल इसका सबूत वर्ष 2022 के 8 माह में ही सामने आ गया। Rasiya के यूक्रेन पर हमले के पहले जहां जनवरी में ईयू व यूके में Rasiya से आयात किया जाने वाला कच्चा तेल 2.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) था तो वहीं यह फरवरी में हमले के बाद अगस्त तक घटकर 1.7 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) तक पहुंच गया है।

पश्चिमी देशों ने 8 महीने के इस समय में Rasiya से तेल का आयात 35 प्रतिशत कम कर डाला है। International Energy Agency (अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी-आईईए) के अनुसार इसके बावजूद यूरोपीय संघ अभी भी Rasiya कच्चे तेल का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है।

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क्या हैं अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी-आईईए कच्चे तेल के विकल्प?

IEA ने कहा है कि दिसंबर से Rasiya पर प्रतिबंधों के मंडराते खतरों के मद्देनजर Europe संघ को अतिरिक्त 1.4 मिलियन बैरल Rasiya कच्चे तेल का विकल्प तलाशने की जरूरत होगी। ऐसे में यूरोप Rasiya के तेल एवं गैस को न कहने की जल्दबाजी नहीं करेगा। Europe इस सप्लाई के लिए विकल्पों की खोज में है। इन विकल्पों में सबसे पहला नंबर पर America तो दूसरा कजाकिस्तान का है। जिसमें करीब 300,000 बीपीडी संभावित तौर पर संयुक्त राज्य America से एवं 400,000 बीपीडी कजाकिस्तान से आने की संभावना है। मौजूदा समय में Europe मध्य पूर्व एवं अन्य जगहों से बहुत ज्यादा तेल खरीद रहा है।

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Europe देशों के Rasiya से तेल आयात की कमी को लपकने के लिए Norway भी तैयार बैठा है। नॉर्वे (Norway) का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र जोहान सेवरड्रुप है। जो Rasiya के यूराल जैसे ही मध्यम-भारी कच्चे तेल का उत्पादन करता है। Norway ने संभावित तौर पर चौथी तिमाही में इस क्षेत्र में कच्चे तेल के उत्पादन में तेजी लाने की भी योजना बनाई है। माना यह जा रहा है कि यहांं पर कच्चे तेल का उत्पादन 2 लाख 20 हजार बीपीडी तक बढ़ाया जा सकेगा।

IEA का कहना है कि Europe संघ की तेल की मांग को पूरी तरह से पूरा करने के लिए मध्य पूर्व एवं लैटिन अमेरिका जैसे अन्य देशों से भी आयात की जरूरत होगी। गौरतलब है कि 6 मार्च 2022 को ही मशहूर तेल कंपनी शेल ने यह कहा था कि Europe में तेल आपूर्ति को लगातार जारी रखने के लिए उसे Rasiya से मजबूरी में तेल खरीदना पड़ रहा है।

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