आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं ,फिर आत्महत्या क्यों

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कोविड काल में आत्महत्या के केस में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। कोरोना काल में बेरोजगारी, घरेलू हिंसा ,बेघर हो जाने और अकेलेपन के कारण बहुत से लोगों ने आत्म हत्याएं की हैं।

लेकिन तब भी किसी समस्या का हल आत्महत्या नहीं है फिर आत्महत्या क्यों? कैसे मनुष्य के दिमाग में आ जाता है आत्महत्या का विचार ? ये सारे सवाल सभी के मन में उठते होंगे। जब कोई व्यक्ति  खुद को चारों तरफ से घिरा हुआ और चिंताओं में जकड़ा हुआ मान लेता है और अपने मन में यह विचार रख लेता है कि अब कुछ नहीं हो सकता और जिंदगी से निराश हो जाता है तो वह आत्महत्या का रास्ता चुन लेता है।

भारत में आत्महत्या के मामलों में भारतीय पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आत्महत्या की दर वैश्विक स्थर पर क्रमश 1.5 और 2 गुना ज्यादा है। केवल हमारे देश में ही हर साल 1 लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर लेते हैं। वर्ष 2018 के 13 लाख 4 हजार 516 के मुकाबले ,

वर्ष 2019में लगभग 13लाख 9 हजार 123 आत्महत्या हो गए हैं।जिनमें 9 लाख 7 हजार 613 पुरुष की आत्महत्या हैं और सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामलों में दिहाड़ी मजदूर और नियोजित व्यक्ति और बेरोजगार व्यक्ति शामिल हैं।

वर्ष 2019 में आत्महत्या करने वाली कुल 41हजार से ज्यादा महिलाओं में आधी से अधिक घरेलू कामकाज में महिलाएं थी। जो घरेलू हिंसा से तंग आकर,बीमारियों से तंग आकर ,गरीबी से तंग आकर, अपनी पसंद की शादी ना होने पर अपने जीवन लीला समाप्त कर ली।

कहीं-कहीं सामूहिक और पारिवारिक आत्महत्याओं के मामले भी सामने आते हैं।सामूहिक और पारिवारिक आत्महत्या के अधिकतम मामले क्रमशः तमिलनाडु ,आंध्रप्रदेश ,केरल ,पंजाब और राजस्थान में दर्ज किए गए हैं।जब एक समूह होता है जिसमें अवसाद में ग्रस्त होने की वजह एक ही होती है उसमें यदि कोई एक आत्महत्या करता है तो सहारा समूह आत्महत्या करने के लिए प्रेरित हो जाता है।

कुछ ऐसे भी केस मिले हैं जहां परिवारों में पहले भी किसी ने आत्महत्या की हो उन परिवारों के बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका ज्यादा रहती है। ऐसे ही परिवार में एक के बाद एक सदस्य आत्महत्या करता जाता है। कोरोना काल में जो जहां थे वहीं रह गए और लॉकडाउन में अपने दोस्तों से और परिवार से दूर रहे जिससे उनके विचार विमर्श नहीं हो सके और अवसाद ग्रस्त होकर अकेलेपन में आत्महत्या की ओर उन्मुख हो गए। पुरुषों में आत्महत्या करने के मामले में महिलाओं से 4 गुना अधिक होते हैं क्योंकि महिलाएं अपने घर के सदस्यों और मित्रों से बातें शेयर कर लेती हैं यदि कोई चिंताजनक बात हो तो रोकर मन हल्का कर लेते हैं लेकिन खास तौर पर भारत में पुरुषों के रोने पर पुरुषार्थ के खिलाफ माना जाता है जिससे पुरुष अपनी चिंता मन के विचार किसी से शेयर नहीं करता इसलिए मन ही मन कोई बात पुरुष को कचोटती रहती है और सिर्फ अंत में आत्महत्या का रास्ता चुन लिया जाता है।

आत्महत्या किसी एक व्यक्ति को प्रभावित नहीं करती है। आत्महत्या से समाज, रिश्ते ,भावनाएं और परिवार भी प्रभावित होता है। और आत्महत्या के पीछे छूटे कई सवाल दफन हो जाते हैं। यदि जीना है तो जीने के कई रास्ते हैं लेकिन कोई एक चीज ना मिल पाने पर जीना छोड़ देना कहीं की बहादुरी नहीं है।

आत्महत्या का केवल आर्थिक कारण ही नहीं है पारिवारिक के स्तर पर होने वाले दुर्व्यवहार, क्लास में टॉप करने का दबाव, उच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश का दबाव, किसी प्रतिष्ठित पद की परीक्षा पास करने का दबाव, और पढ़ाई करने पर भी अच्छी सरकारी नौकरी ना मिलने पर अवसाद ग्रस्त हो जाना भी आत्महत्या का कारण है।देश में विद्यार्थियों की आत्महत्याओं के आंकड़े हर साल बढ़ते ही जा रहे है।

2019 में विद्यार्थियों की आत्महत्या का आंकड़ा पिछले 25 साल में सर्वाधिक रहा 2019 में 10335 विद्यार्थियों ने अपनी जान ले ली। कोटा राजस्थान जहां देश के हर राज्य से विद्यार्थी पढ़ने आते हैं।कोटा राजस्थान में यह बात सिद्ध हुई कि आत्महत्या का कारण पारिवारिक दबाव और पढ़ाई का दबाव भी है।विद्यार्थी कोटा में पढ़ने आते हैं और सफलता न मिलने पर और पढ़ाई के दबाव के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं।

प्रति वर्ष किसानों की आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे है। भारतीय कृषि मानसून का जुआ है कभी पानी इतना बरस जाता है कि फसलें सड़ जाती हैं और कभी सूखा पड़ जाता है कि फसलों को पानी न मिलने के कारण फसल सूख जाते हैं। और जब फसल अच्छी हो जाती है तो किसानों को उसका सही मूल्य नहीं मिल पाता है। जितना किसान मेहनत मजदूरी करके फसल में लागत लगाता है वह भी नहीं निकल पाती है। ऊपर से सरकार की खून चूसने वाली नीतियां किसानों को अवसाद में धकेल देती हैं और किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है।

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