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N Raghuraman: बान्केई योताकु का जन्म एक समुराई फैमिली में हुआ। लेकिन वे जापान के बड़े ही अच्छे दार्शनिक बने। जापान के अलग-अलग क्षेत्र के विद्यार्थी उनके क्लास में मेडिटेशन सीखने के लिए आते थे। मेडिटेशन के कोर्स के दौरान एक छात्र चोरी करते पकड़ा गया। बान्केई को इस चोरी से अवगत कराया गया। लोगों ने कहा कि चोरी करने वाले विद्यार्थी को घर भेज दिया जाए। लेकिन उन्होंने चोर के इस हरकत को नजरअंदाज किया।
कुछ दिन बाद वह विद्यार्थी फिर चोरी करते हुए पकड़ा गया बान्केई ने इस घटना को फिर इग्नोर किया। जिसकी वजह से दूसरे छात्र नाराज हो गए और एक पिटीशन साइन करते हुए चोर को क्लास से बाहर निकालने की मांग की।
जब बान्केई ने यह पढ़ा तो सभी विद्यार्थियों को बुलाया और उनसे कहा कि तुम सब बुद्धिमान हो तुम्हें पता है कि गलत और सही क्या है। तुम चाहो तो किसी दूसरे जगह जाकर पढ़ सकते हो। लेकिन यह चोरी करने वाला विद्यार्थी सही गलत का अंतर नहीं जानता है।
मैं अगर इसे नहीं सिखाऊंगा तो कौन सिखाएगा मैं इसको इस विद्यालय से नहीं निकालूंगा यह यही रहेगा चाहे कोई दूसरा यहां रहे या चला जाए। यह बात सुनकर चोरी करने वाले विद्यार्थी के आंख में आंसू आ गए और उसने दोबारा चोरी नहीं की क्योंकि उसके अंदर से चोरी करने की इच्छा खत्म हो गई थी।
मुझको यह कहानी उस वक्त याद आई जब मैं 80 वर्ष के एक शिक्षक के नारायण नाइक के बारे में सुना साउथ कन्नड़ के एक तालुके के गांव से है। और विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप दिलवाने के कार्य में जुटे हुए हैं। एक टीचर के रूप में 38 साल तक सेवा देने के बाद उन्होंने देखा कि ग्रामीण विद्यार्थियों को अगर जीवन में सफल होना है तो एजुकेशन ही इसका एक सबसे सफल माध्यम है।
फीस न भर पाने के कारण ज्यादातर बच्चे शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते हैं। स्वयं इनके पिता ने पांचवी और आठवीं कक्षा की पढ़ाई के लिए उन्हें स्कूल नहीं भेजा क्योंकि उनके पास फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन इनके अंदर पढ़ने का ऐसा जुनून था कि उन्होंने भूख हड़ताल कर दी जिसकी वजह से इनके पिता को विवश होकर फीस देना पड़ा। वे रोज 16 किलोमीटर नंगे पैर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। उन्होंने B.Ed की डिग्री हासिल की कन्नड़ और हिंदी भाषा में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिर प्राइमरी स्कूल में वे अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। बाद में ये स्कूल के निरीक्षक भी बने।
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उस समय उनको यह अनुभव हुआ कि अनेक बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि उनके पास फीस देने के लिए पैसे नहीं होते हैं। तब उन्होंने स्कॉलरशिप देने वाली योजनाओं की तलाश की और स्कॉलरशिप के द्वारा गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए मदद करने लगे। स्कॉलरशिप कुछ सरकारी और कुछ ट्रस्ट और फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा जाति धर्म और मेरिट के आधार पर दी जाती थी।
नाइक अपने एप्लीकेशन को तब तक फॉलोअप करते रहते जब तक की उससे संबंधित अधिकारी के द्वारा उसको सहमति नहीं दे दिया जाता । वर्ष 2001 में रिटायर होने के बाद नायक ने इस स्कॉलरशिप को अपना लक्ष्य बना लिया और अपने छोटे से क्षेत्र में समाज सेवा करने लगे
वे रोज सुबह 8:00 बजे से घर से निकल जाते है और मोटर बाइक से विद्यालय कॉलेज और सरकारी दफ्तरों तथा निजी संस्थाओं की ऑफिस की खाक छानने लगते हैं। और शाम को 6:00 बजे लौटते हैं यह स्कॉलरशिप मास्टर के रूप में जाने जाते हैं। ये लगभग दो दशक से एक लाख से अधिक विद्यार्थियों को करोड़ों की स्कॉलरशिप दिलवा कर उनके शैक्षिक जीवन को प्रभावित कर चुके हैं।
सारांश यह है कि अगर आप पैसा खर्च करना चाहते हैं। या दिल से किसी की मदद करना चाहते हैं। तो आप इसको ऐसे जगह करिए जहां आपके पैसे और आपके भावनाओं की सही उपयोगिता हो। अर्थात ऐसे जगह नहीं जहां सब लोग जाते हैं।