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आजादी के दीवाने वह चंद्रशेखर आजाद जी ने बहरूपिया तक कहा जाता था। जिनकी फोटो हासिल करने में अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे, ऐसे आजाद अपने ही साथी की गद्दारी को नहीं पकड़ पाए, आजाद के पुराने साथी रहे वीरभद्र तिवारी ने उनके बारे में मुखबिरी की। और आजाद के पार्क में होने की खबर जाकर पुलिस विभाग के एक अफसर शंभूनाथ तक पहुंचा दी।
जब तक आजाद कुछ समझ पाते या संभलने की कोशिश करते 80 हथियारबंद पुलिस वालों ने अल्फ्रेड पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। लेकिन चंद्रशेखर आजाद डरे नहीं ,और वे डटे रहे उन्हें 5 गोलियां भी लगी और वे बुरी तरह से घायल हो गए। जब उनके पिस्टल में सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने उस गोली से खुद को शहीद कर लिया, लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे चंद्रशेखर आज़ाद आज़ादी के दीवाने थे और आजाद ही मरे।
आजाद अक्सर एक गीत गुनगुनाते थे- ‘दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद हैं, आजाद ही मरेंगे।’ उन्होंने अपने गाए हुए गीत को सच करके दिखाया
पार्क में जहां चंद्रशेखर आजाद मरे थे वह एक पेड़ के नीचे की जगह थी वह जामुन का पेड़ था ।अंग्रेजी हुकूमत आजाद से इतनी घबराई हुई थी उनके शहीद होने के बाद उसने इस पेड़ को कटवा दिया।
जामुन के इस वृक्ष के पास Chandra Shekhar Azad की प्रतिमा बनवाई गई है, जिसमें वे अपने जाने-पहचाने अंदाज में मूंछों पर ताव देते दिख रहे हैं। इसी पार्क के अंदर इलाहाबाद संग्रहालय भी है। जहां आजाद की वो पिस्टल रखी है। जिससे उन्होंने अंतिम गोली अपनी कनपटी पर दागी थी।
चंद्रशेखर आजाद की मुखबिरी किसने की, ये मुद्दा कई सालों तक बना रहा। इस मामले में वीरभद्र तिवारी और यशपाल हमेशा सवालों के घेरे में रहे। हालांकि आजाद को इलाहाबाद के अलफ्रेंड पार्क में घेरने वाली 40 लोगों की फोर्स का हिस्सा रहे अफसर, की पर्सनल डायरी में वीरभद्र तिवारी के ही गद्दार होने का दावा किया गया है ।
वीरभद्र तिवारी ने आजाद और सुखदेव राज को पार्क में देख लिया था। वह तुरंत पुलिस अधिकारी शंभूनाथ को बताया कि आजाद पार्क में है , शंभू नाथ ने अंग्रेज officer को आजाद के पार्क में होने की सूचना दी।
पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने आर्म्ड फोर्स के 80 जवानों को आधे मिनट में अल्फ्रेड पार्क मूव होने का आदेश दिया। 40 जवान हथियारों से लैस थे, तो 40 जवान डंडा रखे थे। सभी अल्फ्रेड पार्क की ओर भागे। डिप्टी सुपरिन्टेंडेंट विश्वेश्वर सिंह के साथ सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस (स्पेशल ब्रांच) नॉट बावर भी थोड़ी ही देर में अपनी सफेद एम्बेसडर कार से अल्फ्रेड पार्क पहुंच गया वहां पुलिस बल के जवानों ने पार्क को तीन तरफ से घेर लिया था और फायरिंग करने लगे।
आजाद को इस बात का एहसास हो गया था कि शायद अब वे यहां से बचकर नहीं निकल पाएंगे। उन्होंने सुखदेव को वहां से जाने को कह दिया और अपने जेब से pistol निकालने लगे। इसी दौरान विश्वेश्वर सिंह जो की पुलिस कर्मचारी थे दूसरी गोली चला दी जो आजाद के दाहिने हाथ को चीरती हुई, उनके फेफड़े में जा घुसी। आजाद ने भी जवाबी फायर किए और नॉट बावर अंग्रजी अफसर की कार को पंक्चर कर दिया।
इसके बाद आजाद के पास जो पिस्टल थी जिसे वे ‘बमतुल बुखारा’ भी कहते थे, गरजी और नॉट बावर की कलाई मैं जाकर गोली लगी और को तोड़ती हुई एक निकल गई। एक डायरी के मुताबिक आजाद 10 राउंड फायर कर चुके थे। दूसरी मैगजीन लोड करने के बाद आजाद गरजे- ‘अरे ओ ब्रिटिश सरकार के गुलाम। मर्द की तरह सामने क्यों नहीं आते मेरे , छिप क्यूं रहे हो गीदड़ को तरह!
Chandra Shekhar Azad को कई गोलियां लग चुकी थीं, लेकिन वे पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे। इसी दौरान कई भारतीय सिपाहियों ने आदेश के बावजूद आजाद पर गोलियां नहीं चलाईं और हवाई फायर करते रहे इनको बाद में बर्खास्त भी कर दिया गया। उधर विश्वेश्वर सिंह ने आजाद को ललकारा, लेकिन तभी आजाद की एक गोली उसका जबड़ा तोड़ दिया।
आजाद के शहीद होने के बाद पुलिस को इतना डर था पहले उन्होंने आजाद के शव पर कई गोलियां दागीं, उसके बाद वे उनके पास गए।
वीरभद्र तिवारी भी आजाद के संगठन (HSRA) का सेंट्रल कमेटी मेंबर था। जब संगठन के क्रांतिकारी रमेश चंद्र गुप्ता को उसकी इस मुखबिरी का पता चला तो उन्होंने उरई जाकर तिवारी पर गोली भी चलाई थी। हालांकि वो बच गया और गुप्ता गिरफ्तार हो गए और 10 साल के लिए जेल गए।
आजाद का मूंछ पे ताव देता ये फोटो उनके क्रांतिकारी साथी मास्टर रुद्र नारायण ने झांसी में ली थी।आजाद ने इस तस्वीर को नष्ट करने के लिए कहा था। रुद्र नारायण ने इसके नेगेटिव छुपा लिए। जिसके कारण यह तस्वीर आज हमारे सामने उपलब्ध है।
इलाहाबाद संग्रहालय के सेंट्रल हॉल में आजाद की पिस्टल रखी है जो इस का मुख्य आकर्षण है।संग्रहालय में रखी इस पिस्टल को कोल्ट कंपनी ने 1903 में बनाया था। इस पिस्टल के भी भारत लौटने की कहानी है। नॉट बावर के रिटायरी पर, सरकार ने आजाद की ये पिस्टल उन्हें गिफ्ट में दी ,और वो उसे अपने साथ इग्लैंड ले गए। लेकिन बाद में भारतीय उच्चायोग की कोशिश के बाद बावर उस पिस्टल को कुछ लिखित शर्तो के, आधार पर लौटाने को तैयार हो गया और वह पिस्टल 1972 में भारत वापस आ गई।
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आजाद के शहीद होने के काफी समय बाद उनके मां जगरानी देवी को पता चला था कि, अब वो नहीं रहे। उस समय आजाद की मां का बहिष्कार हुआ था और उन्हें डकैत की मां कहकर बुलाया जाता था। उनकी ये हालत देख कर आजाद के एक साथी उनको अपने पास झांसी लेकर और
वहां 1951 में आजाद की मां का देहांत हुआ।
आजाद के शहीद होने के बाद कहां गई उनकी साइकिल ? यह भी प्रश्न उठता है क्योंकि आजाद के शहीद होने के बाद साइकिल पेड़ के पास खड़ी थी लेकिन बाद में नही मिली।