Ratan Tata: टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की रविवार को सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। वह गुजरात से मुंबई आ रहे थे जब पालघर के निकट उनकी मर्सिडीज कार डिवाइडर से टकरा गई । जहां उद्योगपति घराने से आने वाले साइरस मिस्त्री ने कम समय में बड़ी उपलब्धियां हासिल की थीं वहीं वह कुछ वजहों से विवाद में भी रहें । बता दें कि आयरलैंड में जन्मे प्रसिद्ध उद्योगपति पलोनजी शापूर जी मिस्त्री के छोटे बेटे साइरस मिस्त्री ने 2006 में टाटा समूह में नौकरी करनी शुरू की थी वहीं साल 2012 में उन्हें टाटा समूह की इकाई टाटा सन्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया था ।
टाटा समूह के इतिहास में यह पहला मौका था जब समूह के चेयरमैन का पद टाटा परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति सम्भाल रहा था । हालांकि शुरुआत में Ratan Tata से अच्छे सम्बन्ध होने के बाद साइरस मिस्त्री और रतन टाटा में अनबन हो गयी थी । आइये जानते हैं कि आखिर वो कौन से मुद्दे थे जिनकी वजह से कभी टाटा समूह के चहेते रहे साइरस मिस्त्री को अचानक टाटा समूह से निकालना पड़ा ।
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टाटा समूह के प्रमुख Ratan Tata के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक 2010 मे आयी नैनो लखटकिया भी थी । जहां रतन टाटा हर परिवार को कार देने के सपने को पूरा करने पर जोर दे रहे थे और लखटकिया कार यानी टाटा नैनो के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दे रहे थे वहीं साइरस मिस्त्री इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत आशान्वित नहीं थे । मीडिया रिपोर्ट के अनुसार टाटा मोटर्स के लगातार नुकसान में चलने की वजह से साइरस मिस्त्री टाटा नैनो का प्रोडक्शन बन्द करना चाहते थे । जबकि Ratan Tata इस प्रोजेक्ट को बन्द करने के लिए सहमत नहीं थे ।
हालांकि प्रोडक्शन में लागत अधिक आने और नैनो की प्राइस फिक्स होने के चलते कम्पनी को नुकसान उठाना पड़ रहा था जिसके चलते साइरस मिस्त्री इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से बन्द करवाना चाहते थे ।
जापान की टेलिकॉम कम्पनी एनटीटी डोकोमो और साइरस मिस्त्री की अगुवाई वाली टाटा समूह के बीच पनपे विवाद से भी रतन टाटा खुश नहीं थे । बता दें कि 2009 में जापानी कम्पनी एनटीटी डोकोमो ने टाटा के साथ मिलकर टाटा टेलीसर्विसेज बनाई थी । वहीं जिन लक्ष्यों के साथ भागीदारी की गई थी वो लक्ष्य पूरे नहीं हुए जिसके चलते 2014 में एनटीटी डोकोमो ने टाटा के साथ जॉइंट वेंचर से बाहर निकलने का फैसला किया । डोकोमो चाहती थी कि कम्पनी में 26 % हिस्सेदारी रखने वाली टाटा या तो ये हिस्सेदारी किसी खरीददार को बेच दे या फिर इसे खरीद ले ।
वहीं टाटा को इसके लिए कोई खरीददार नहीं मिला और न ही कम्पनी ने डोकोमो शेयर वापस ही खरीदा । विवाद बढ़ता गया और जनवरी 2015 में डोकोमो ने मध्यस्थता का वाद दायर किया । जून 2016 में लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ने टाटा समूह को डोकोमो को नुकसान की भरपाई हेतु 1.17 बिलियन डॉलर भुगतान करने का आदेश दिया । टाटा समूह ने यह लड़ाई दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर ब्रिटेन और अमेरिका की अदालतों में लड़ने के बाद आखिर डोकोमो को 1.2 अरब डॉलर का भुगतान किया ।
टाटा समूह ने टाटा स्टील के खराब प्रदर्शन के लिए भी साइरस मिस्त्री के खराब मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहराया । बता दें कि समूह की कई कम्पनियों पर कर्ज के बोझ को कम करने के लिए साइरस मिस्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान कई सम्पतियों की बिक्री की थी । 2014 में टाटा समूह ने इंडोनेशिया में अपनी कोयला खदान की 30 फीसदी हिस्सेदारी बेची थी । इसे 3100 करोड़ में बेचा गया था । वहीं अप्रैल 2016 में टाटा केमिकल्स ने यूपी में अपना यूरिया प्लांट नॉर्वे की एक कम्पनी को 2600 करोड़ में बेच दिया था ।
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वहीं जून 2016 में दक्षिण अफ्रीका में अपनी स्वामित्व वाली नियोटेल दूरसंचार कम्पनी को टाटा समूह ने 3000 करोड़ रुपये में बेच दिया था । मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साइरस मिस्त्री द्वारा सिर्फ बिक्री को तवज्जो देने और उनके काम करने के तरीके से नाखुश थे । वहीं मैनेजमेंट में भी साइरस मिस्त्री के व्यवहार को लेकर शिकायतें आने लगी थीं ।
टाटा सन्स के बोर्ड ने पिरामल एंटरप्राइजेज के अजय पिरामल और टीवीएस के वी. श्रीनिवासन को बोर्ड में शामिल किया था । मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये नियुक्तियां साइरस मिस्त्री को बिना बताए की गईं थी। इससे साफ जाहिर होता है कि टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था । रिपोर्ट की मानें तो साइरस मिस्त्री को पद छोड़ने के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने पद नहीं छोड़ा और कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया ।
वह टाटा के बोर्ड का सामना करना चाहते थे । बता दें कि बोर्ड में Ratan Tata और साइरस मिस्त्री सहित 9 सदस्य थे जिनमे से 6 लोगों ने साइरस मिस्त्री को पद से हटाने के लिए मतदान किया जबकि 2 लोगों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया ।