GST: गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (Goods and Services Tax) यानी जीएसटी (GST) लागू होने के 5 साल बाद अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के एक फैसले ने इस सिस्टम के मूलाधार को ही हिला दिया है। भारत में जबसे जीएसटी लागू हुआ है तबसे ही इसको लेकर कुछ न कुछ विवाद और आसंकाए सामने आती रही है। पिछले 5 सालों से चली आ रही जीएसटी में फिरसे नया मोड़ ले लिया है। भारत में केंद्र और राज्य दोनों के पास जीएसटी से संबंधित कानून बनाने का अधिकार होता है। लेकिन इनके इस अधिकारों को लेकर फिर कुछ बदलाव सामने आ सकते है।
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दरअसल जस्टिस Dhananjaya Y. Chandrachud (Judge of Supreme Court of India) की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जीएसटी काउंसिल (GST Counsil) के अधिकारों को कमजोर कर दिया है। इस फैसले के मुताबिक जीएसटी परिषद की सिफारिशों को मानने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बाध्य नहीं है।
भारत में सहकारी संघ की व्यवस्था के तहत जीएसटी परिषद की सिफारिशों का महत्व बस प्रेरित करने का है। भारत में केंद्र और राज्य दोनों के पास जीएसटी से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वव्यवहारिक समाधान निकालने के लिए जीएसटी परिषद को सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। जीएसटी काउंसिल में सभी राज्यों के वित्त मंत्री होते हैं, और इसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री (Union Finance Minister) होते हैं।
जीएसटी स्लैब्स (Slabs) और रेट्स (Rates) पर फैसला करने का अधिकार इस अपेक्स बॉडी (Apex body) के पास होता है। इस फैसले का एक मतलब यह भी हो सकता है कि जीएसटी को जिस एक टैक्स एक राष्ट्र के मकसद से लाया गया था उसका वजूद अब खत्म हो जाएगा। इस मकसद की वजह थी, कि केंद्र और राज्यों के ज्यादातर टैक्स जिनमें वैट (Vat) मलतब वैल्यू एडेड टैक्स से लेकर एक्साइज (Excise) तक शामिल थे वह जीएसटी के दायरे में आ गए थे। इससे दावा किया गया था कि कमर्शियल वाहनों (Commercial Vehicles) के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों में आना-जाना आसान हो गया था।
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लेकिन अब इस मकसद पर ग्रहण लगने की आशंका के बीच राज्य अब उत्पादों और सेवाओं (Services) पर अपने हिसाब से जीएसटी स्लैब (GST Slab) और टैक्स तय कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो फिर मुमकिन है कि जिस राज्य की सीमा में सामान की एंट्री (Entry) होगी वहां पर टैक्स का अलग कैलकुलेशन (Calculation) करना पड़े इसे वापस वह दौर लौट सकता है। जब हर एक राज्य की सीमा पर टैक्स के निपटारे के लिए ट्रकों (Trucks) की लंबी कतारें लगी होती थी।
इसके साथ ही राज्य और केंद्र के बीच जीएसटी की रकम के बंटवारे को लेकर भी विवाद पैदा हो सकते हैं। ऐसा होने पर मुकदमों की लंबी लिस्ट तैयार हो सकती है, साथ ही अल्कोहल (Alcohol) और पेट्रोल (Petrol) की जीएसटी में आने की उम्मीद भी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।