Supreme Court: 2016 में हुई नोटबन्दी का जिन्न फिर से बाहर आ निकला है । केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 8 नवम्बर 2016 की रात 8 बजे अचानक 500 और 1000 के नोटों को बन्द कर देने के बाद पूरे देश मे लोगों को भारी समस्याओं से दो चार होना पड़ा था । 6 वर्ष पहले नवम्बर महीने में की गयी नोटबन्दी के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं l
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर पड़ताल करने का फ़ैसला किया है और केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) से स्पष्टीकरण मांगा है । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करते हुए केंद्र एंव RBI से नोटबन्दी को लेकर 9 नवम्बर तक जवाब दाखिल करने को कहा है ।
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Supreme Court की जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ बुधवार को नोटबन्दी की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी । सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा और सुप्रीम कोर्ट की लक्ष्मण रेखा से वाकिफ हैं लेकिन 2016 में की गई नोटबन्दी की पड़ताल जरूरी है । कोर्ट ने कहा कि
“हम हमेशा अपनी लक्ष्मण रेखा से वाकिफ हैं लेकिन 2016 में जिस तरह से इसे(नोटबन्दी) किया गया था उसकी पड़ताल जरूरी है । हम यह जानना चाहते हैं कि मामला सिर्फ ‘अकादमिक’ कवायद भर तो नहीं था । ” सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करते हुए कहा कि हम इसकी पड़ताल करेंगे कि नोटबन्दी का फैसला अकादमिक है या नहीं या ज्यूडिशियल रिव्यू के दायरे से बाहर है या नहीं ।
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील के रूप में पी. चिंदम्बरम ने कहा कि संविधान पीठ में 6 साल से लटका नोटबन्दी का जिन्न फिर से सरकार के कंधे पर आ लटका है जिसका जवाब सरकार को देना है । वहीं अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबन्दी से सम्बंधित अधिनियम को चुनौती नहीं दी जाती तब तक मामला अकादमिक ही रहेगा ।
वहीं केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर बहस करके सुप्रीम कोर्ट को अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए ।
सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल की समय बर्बाद नहीं करने की दलील पर एक याचिकाकर्ता के वकील के रूप में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह इतने महत्वपूर्ण फैसले में समय बर्बाद करने जैसे शब्दों से हैरान हैं जबकि पिछली पीठ ने कहा था कि इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए ।
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सुप्रीमकोर्ट ने नोटबन्दी के बाद दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार और आरबीआई से 9 नवम्बर तक डिटेल्ड एफिडेविट दाखिल करने को कहा है । बता दें कि 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के नोटों को बन्द कर दिया गया था जिसके बाद सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी और 58 याचिकाएं दायर की गई थीं । बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिंदम्बरम के अनुरोध के बाद लंबित पड़ी 58 याचिकाओं पर सुनवाई करने का फैसला किया है ।
इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने केंद्र और केंद्रीय बैंक से अगली सुनवाई की तिथि यानी 9 नवम्बर 2022 तक नोटबन्दी को लेकर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है । बता दें कि तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2016 में नोटबन्दी की वैधता और अन्य मुद्दों पर सुनवाई करते हुए इस मामले को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया था ।
सुप्रीमकोर्ट ने दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक कानून तय कर सकते हैं । कोर्ट ने कहा कि संविधान पीठ का कर्तव्य है कि वह मुकदमे में उठे तमाम सवालों के जवाब तलाशे । पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील पी चिंदम्बरम द्वारा दिये गए तर्कों के बाद कहा कि इस मुद्दे पर गहन जांच की जरूरत है जिसके बाद कोर्ट ने सरकार और आरबीआई से 9 नवम्बर तक जवाब दाखिल करने को कहा है ।