Infosys: आज देश का हर एक Engineer Infosys में नौकरी करने की चाह रखता है। Information Technology में देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी होने के साथ ही साथ यह पूरी दुनिया में मशहूर है। लेकिन इसकी शुरुआत करने के लिए आज से 43 वर्ष पहले देश के 7 युवा इंजीनियर ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर एक रिस्क लिया था। वहीं वर्ष 2021 में इंफोसिस के कुल कर्मचारियों की संख्या 2,76,319 थी। हालांकि इंफोसिस के फाउंडर मेंबर्स में से एक एन. एस. राघवन company के पहले कर्मचारी माने जाते हैं।
1981 को पुणे में Infosys Consultants Private Limited नाम से इस कंपनी की शुरुआत की गई थी। दरअसल इसके संस्थापक एन. आर. नारायण मूर्ति, नंदन नीलेकणी, एस. गोपालकृष्णन, एस. डी. शिबुलाल, के. दिनेश, एन. एस. राघवन और अशोक अरोड़ा हैं। वर्तमान में इसके CEO सलिल पारेख हैं और इसका Head office Bengaluru में है।
इस पोस्ट में
भले ही आज यह कंपनी देश-विदेश की कई कंपनियों को ऐसी सुविधाएं दे रही है। लेकिन एक वक्त था जब खुद नारायण मूर्ति को अपनी कंपनी के लिए कंप्यूटर का लाइसेंस लेने एवं टेलीफोन कनेक्शन के लिए 2 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था।
मैसूर में जन्मे एन. आर. नारायणमूर्ति ने यूनिवर्सिटी आफ मैसूर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में आईआईटी कानपुर से उन्होंने मास्टर डिग्री भी हासिल की। आईआईटी के बाद से उन्होंने अच्छी-अच्छी नौकरिया छोड़ के आईआईएम अहमदाबाद में रिसर्च एसोसिएशन के काम को चुना। इसी दौरान उन्हें देश के पहले टाइम शेयरिंग कंप्यूटर पर भी काम करने का मौका मिला। आईआईएम अहमदाबाद में नौकरी छोड़ने के बाद से उन्होंने दुनिया के कई देश घूमने का फैसला किया। वो कई बार यह कहते कि अगर उस वक्त वह यह सारी जगह नहीं घूमे होते तो शायद ऐसी यात्रा कभी नहीं कर पाते।
सुधा मूर्ति पुणे में नारायण मूर्ति से 1974 में मिली थी। हालांकि वो दोनों कन्नड़ भाषा बोलते थे। इसीलिए यह एक बड़ी वजह थी कि जल्दी ही दोस्त बन गए। उस वक्त सुधा टाटा मोटर कंपनी के साथ काम कर रही थी। उस दौर में वहां वो काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर थी। जब नारायणमूर्ति अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से मिले तब उनके पास कोई भी नौकरी नहीं थी।
उस वक्त उन्होंने “सोफ्ट्राॅनिक” नाम से एक कंपनी की शुरुआत की थी। लेकिन डेढ़ साल में उन्हें यह कंपनी बंद करनी पड़ी। सुधा मूर्ति से शादी करने के लिए उन्होंने पाटनी कंप्यूटर सिस्टम ज्वाइन किया। इस कंपनी में उनकी मुलाकात नंदन नीलेकणी, एस. गोपालकृष्णन, एस. डी. शिबुलाल, के. दिनेश, एन. एस. राघवन और अशोक अरोड़ा से हुई। नारायणमूर्ति ने जब अपनी खुद की कंपनी शुरू करने का विचार अपने मित्रों को बताएं और सभी ने खुशी-खुशी उनका साथ देने का फैसला भी किया।
जब बहन डाकू बन गई तो भाई को क्या क्या झेलना पड़ा सुनिए
इतिहास का सबसे महंगा iPhone होगा Apple iPhone 14 Pro और Pro Max, इतनी होगी कीमत, जानें पूरी डिटेल
बता दें कि जब नारायण मूर्ति ने इंफोसिस की शुरुआत की। तब उन्होंने सुधा मूर्ति को इंफोसिस का हिस्सा बनने को कहा था। सुधा मूर्ति कई बार इस बात का जिक्र करते हुए यह कहती हैं कि वह खुद भी इंजीनियर थी। इसके बावजूद वह नहीं चाहती थी कि यह पति पत्नी की कंपनी बने। सुधा मूर्ति यह जानती थी कि यह रात इतनी आसान नहीं होने वाली है। इसीलिए उस वक्त उन्होंने घर और बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए इंफोसिस का हिस्सा बनने से मना कर दिया। लेकिन वर्ष 1996 में उन्होंने इंफोसिस फाउंडेशन की नींव रखी और सोशल वर्कर से जुड़ गई।
आपको बता दें कि इंफोसस की शुरुआत मात्र 20 हजार रुपए में हुई थी। फाउंडर नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपए उधार लेकर कंपनी की शुरुआत की थी। हालांकि बाकी पैसे अन्य मेंबर्स ने जोड़े थे। 2 वर्ष बाद 1983 में कंपनी का हेड ऑफिस पुणे से बेंगलुरु शिफ्ट कर दिया गया था। अप्रैल 1992 में कंपनी ने इसका नाम बदलकर Infosys Technology Private Limited कर दिया। जबकि जून 2011 में फिर से इसका नाम बदलकर Infosys Limited कर दिया गया।
वर्ष 1999 में इंफोसस के शेयर अमेरिकी शेयर बाजार के NASDAQ में रजिस्टर होने के बाद से कंपनी पूरी दुनिया में मशहूर होने लगी। अमेरिकी शेयर बाजार में शेयर रजिस्टर करने वाली Infosys पहली Indian company थी।