Sleep Experiment: दुनियाभर के देश कुछ न कुछ एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं । इन देशों के वैज्ञानिक अलग अलग विषयों पर कई तरह के प्रयोग करते हैं । जिनमें से कुछ प्रयोग सबसे पहले जानवरों या अन्य जीव जंतुओं पर किये जाते हैं तो वहीं बाद में प्रयोग सफल होने पर उन्हें इंसानों में आजमाया जाता है पर कुछ प्रयोग ऐसे भी हुए हैं जो सीधे इंसानों पर ही प्रयोग किये गए ।
रूस का स्लीप एक्सपेरिमेंट भी उन्ही में से एक है हालांकि इस प्रयोग को कर रहे वैज्ञानिक इस बात से अनजान थे कि इसके परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं ।
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दरअसल ये कहानी रूस की है । अब ये कहानी सच कितनी है और झूठ कितनी इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे । बात तब की है जब दूसरा विश्वयुद्ध लड़ा जा रहा था और दुनियाभर के देश अपने दुश्मन देशों को नेस्तनाबूद करने में लगे हुए थे । इसी बीच रूस के वैज्ञानिकों को एक सनक चढ़ी । सनक इस बात की कि अगर 30 दिन तक किसी इंसान को सोने न दिया जाए तो उसकी हालत कैसी होगी, वो कैसे व्यवहार करेगा और कैसे जियेगा ।
दरअसल विश्वयुद्ध के दौरान वैज्ञानिक और कमांडर अपने देश के सैनिकों के लिए ये प्रयोग कर रहे थे ताकि सकारात्मक परिणाम निकलने पर सैनिकों के लिए नींद आवश्यक न रह जाये । इसी एक्सपेरिमेंट को करने के लिए वैज्ञानिकों ने जेल में सजा काट रहे कैदियों से सम्पर्क किया । कैदियों के सामने ये शर्त रखी गयी कि यदि वह 30 दिनों तक बिना सोए रह लेंगे तो उनकी सजा माफ कर दी जाएगी । इस शर्त के साथ उनमें से 5 कैदी तैयार हो गए ।
कैदियों द्वारा हामी भर जाने के बाद वैज्ञानिकों और कमांडर ने उन कैदियों को एक विशेष एयर टाइट चेम्बर में ले जाकर बन्द कर दिया । इस चेम्बर में कैदियों के लिए सब कुछ था खाने पीने का सामान सहित जरूरत का हर सामान यहां उनके लिए उपलब्ध था । इस चेम्बर में कांच के ऐसे शीशे भी लगवाए गए जिनसे बाहर बैठे वैज्ञानिक अंदर कैदियों को देख सकते थे लेकिन कैदी बाहर का नजारा नहीं देख सकते थे । यही नहीं इस चेम्बर में एक विशेष गैस भी भर दी गयी जिससे कैदियों को नींद न आने पाए।
इसके अलावा कैदियों की बातचीत सुनने के लिए माइक्रोफोन भी कमरे में फिट करवा दिए गए । कैदी जहां पहले दिन बिल्कुल सामान्य रहे वहीं दूसरे दिन भी पांचों कैदियों में कोई विशेष दिक्कत बाहर बैठे वैज्ञानिकों को नहीं महसूस हुई । सब आपस मे सामान्य तरीके से बातें करते और व्यवहार करते रहे ।
जैसे जैसे बिना सोए कैदियों के दिन गुजरते जा रहे थे वैसे उनमें परिवर्तन आने लगा जो कि उनके व्यवहार में भी झलकने लगा । एक हफ्ता बीतते बीतते कैदी अजीब व्यवहार करने लगे और आपस मे बात करना बंद कर दिया । वह अपने आप से बात करते हुए बुदबुदाने लगे । वहीं 11 वें दिन तो हद ही हो गयी जब उनमे से एक कैदी इतनी जोर जोर से चिल्लाते हुए पूरे चेम्बर में दौड़ने लगा । ऐसा वह 3 घण्टे तक करता रहा ।
वह इतनी जोर से चिल्ला रहा था कि उसकी वोकल कॉर्ड फटने वाली थी । वहीं सबसे अधिक चौंकाने वाली बात ये थी कि उस कैदी की हरकत से अन्य चारों कैदियों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ।
जिस वेबसाइट में सबसे पहले इस एक्सपेरिमेंट के बारे में खुलासा किया गया था उसके अनुसार कैदियों की हालत और अजीबोगरीब हरकतें देखते हुए वैज्ञानिकों ने Sleep Experiment को बीच मे ही रोकने का फैसला कर लिया था लेकिन कमांडर ने एक्सपेरिमेंट जारी रखने का आदेश दिया । वहीं एक्सपेरिमेंट के 15 वें दिन वैज्ञानिकों ने नींद न आने देने के लिए चेम्बर में छोड़ी गई गैस को रोकने का फैसला किया ।
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लेकिन इससे वैज्ञानिकों को और अचरज हुआ क्योंकि कैदी चेम्बर से बाहर आना ही नहीं चाहते थे। वह चिल्लाने लगे कि हमें आजाद मत करो, यहीं रहने दो । वहीं वैज्ञानिकों ने जैसे ही चेम्बर की नींद न आने वाली गैस बंद की वहां मौजूद एक कैदी की मौत हो गयी ।
वहीं चेम्बर खुलते ही वैज्ञानिक तब दंग रह गए जब उन्होंने कैदियों के शरीरों को देखा । कैदियों के शरीर में मांस नहीं बचा था और उनके शरीर मे हड्डियां ही दिख रही थीं । ऐसा लग रहा था जैसे कैदी अपना ही मांस नोचकर खाने लगे थे । ऐसी हालत देखकर वैज्ञानिकों ने एक्सपेरिमेंट रोक देने का फैसला किया । हालांकि कमांडर ने फिर भी प्रयोग जारी रखने का आदेश दिया इसके अलावा कमांडर ने ये भी कहा कि वैज्ञानिकों को एक्सपेरिमेंट को अच्छे से करने के लिए कैदियों के साथ ही चेम्बर में रहना चाहिए ।
जिसे वैज्ञानिकों ने नहीं माना और कमांडर को ही गोली मार दी । कैदियों की हालत बिल्कुल खराब हो चुकी थी और वह राक्षसों की तरह व्यवहार कर रहे थे । यही नहीं वैज्ञानिकों के कहने के बाद भी चारों कैदी चेम्बर से बाहर निकलने को तैयार नहीं हुए जिसके बाद वैज्ञानिकों ने उन कैदियों को गोली मार दी और सारे सबूत मिटा दिए ।
वैसे तो ये कहानी काल्पनिक बताई जाती है और रूस भी इस तरह के किसी एक्सपेरिमेंट को करने से इनकार करता है । पर 1940 के इस कथित स्लीप एक्सपेरिमेंट की पहली बार खबर 69 साल बाद 2009 में एक वेबसाइट creepypasta.wikia.com पर एक ऑरेंज सोडा नामक यूजर ने पोस्ट की थी । इसी के बाद इस एक्सपेरिमेंट की चर्चा पूरी दुनिया मे होने लगी ।