RTI AMENDMENT BILL
दोस्तो आज कल देश में एक बात चल रही है, जिस पर बहुत बात विवाद हो रहा है, वो है R T I में संशोधन को लेकर, सरकार ने सूचना के अधिकार में संशोधन कर दिया है और इस बदलाव को सही बताते हुए ये कह रही है कि इस संशोधन से सूचना के अधिकार को मजबूती मिलेगी वहीं समाज के बुद्धिजीवी लोग इसको सूचना के अधिकार की हत्या मान रहे है |
सूचना का अधिकार है क्या ?
सीधे सीधे कहे तो ये वो हथियार है जिस का प्रयोग सवाल पूछने के लिए किया जाता है, कोई भी सवाल हो कैसा भी सवाल हो, किसी से भी सवाल हो आप पूछ सकते हो। जैसे आप के गांव के लिए कौन कौन योजन आईं है उस पर कितना खर्च हुआ बाकी का पैसा कहां गया, जिला अस्पताल में इलाज के लिए कितना पैसा आता है कितना दावा आता है कि और दावा का कितना उपयोग होता है बाकी ऐसे ही सब कुछ यहां तक की आप प्रधानमंत्री या फिर उच्च न्यायालय से भी प्रश्न पूछ सकते है, जैसे जिस योजनाओं पर सरकार करोड़ों रुपया लगा चुकी है आखिर वो आप तक पहुंची क्यों नहीं कब तक पहुंचेगी वो पैसा कहां गया ऐसे कई सवाल |
कैसी मिला था सुचना का अधिकार (RTI) ?
इस अधिकार को 15 साल की कोशिश के बाद पाया गया 12 अक्टूबर 2005 को इसे कानूनी जामा पहनाया गया, पर खुश की बात ये है की हर साल 60 से 70 लाख से अधिक लोग इसका उपयोग कर के सवाल पूछते है |
आप को बता दे पिछले कुछ दिनों में विवाद में रहे ऐसे प्रश्न जो RTI Act के अधीन सर्कार से पूछा गया |
ये कुछ ऐसे RTI था जिसका जवाब सरकार नहीं देना चाहती थी, सरकार ने कहा की अगर हमने ये जानकारी दे दी तो इससे देश की सुरक्षा, संप्रभुता, आर्थिक हित, सामाजिक और भारत के दूसरे देशों के संबंधो पर बुरा असर पड़ेगा |
इस कानून से सरकार पर दवाब पडता है जो जवाब वो नहीं देना चाहती वो भी देना पड़ता है इसलिए सूचना आयुक्त के तमाम पदों पर नियुक्ति के लिए जब तक कोट दवाब नहीं डालता तब तक नियुक्ति नहीं होती |
इतनी चिड है कि 45 से ज्यादा लोगो की हत्या हो चुकी है जिन्होंने ये जाकारियां आरटीआई के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाई थी |
अब सरकार उस नियम में परिवर्तन करना चाहती है, 22जुलाई 2019 को सूचना अधिकार संसोधन बिल को 218 पक्ष में 79 विपक्ष में वोट से पास कर लिया गया |
सरकार आरटीआई सेक्सन 13 और 15 में परिवर्तन करना चाहती है क्या परिवर्तन हो रहा है आइए जानते है,
साल 2005 के कानून में जिक्र था कि मुख्य सूचना आयुक्त और सुचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल या 65 साल की उम्र तक या जो भी पहले होगा |
2019 में संशोधन कानून कहता है कि मुख्य आयुक्त और सूचना आयुक्त का कार्यकाल केंद्र सरकार पर निर्भर रहेगा |
साल 2005 के कानून में जिक्र था कि मुख्य सूचना आयुक्त की वेतन मुख्य निर्वाचन आयुत की वेतन के बराबर होगी, और सूचना आयुक्त की वेतन निर्वाचन आयुक्त के वेतन के बराबर होगी |
2019 में संशोधन कानून कहता है कि मुख्य आयुक्त की और सूचना आयुक्त की वेतन केंद्र सरकार तय करेगी |
हम देख सकते है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्त सरकार अपने हाथ में रखा ली है, और अब आयुक्त सरकार के दबाव में काम करने पर मजबूर हो जायेगे सरकार के खिलाफ जानकारी देने पर कार्यकाल में कमी या वेतन में कमी हो सकती है |
ऐसा परिवर्तन होने की वजह से अब सूचना आसानी से मिलना मुश्किल हो जाएगा अभी तक सूचना आयुक्त को फ्री इसलिए ही रख गया था कि उस पर किसी का दवाब ना हो और वो किसी के लिए मांगी गई जानकारी दे सके और अगर संसाथन जानकारी देने से मना करे तो सूचना आयुक्त दबाव बना सकता था लेकिन अब ये सब खतम होने के आसार नजर आ रहे है |