Ramadan Special
Ramadan Special: 2 अप्रैल शनिवार की शाम को रमजान का चांद नजर आने के बाद पवित्र माह-ए-रमजान की शुरुआत हो गई है। मुसलमानों के धार्मिक पुस्तक कुरआन शरीफ में अल्लाह फरमाता है, हमने तुम पर रोजे फर्ज किए जैसे तुमसे पहली उम्मतों पर फर्ज किए गए थे। रमजान के रोजे फर्ज ( यानी अनिवार्य हर बालिग और तंदरुस्त पर) हैं। सुबह 4:00 बजे सहरी खाना सुन्नत है और रोजे रखना फर्ज। इस महीने में ही पवित्र धर्म ग्रंथ कुरआन शरीफ नाजिल हुआ था।
Ramadan Special इसलिए भी यह पूरा महीना इबादत का ही है। रमजान में इस साल भी रोजेदारों का कड़ा इम्तिहान होगा। लगभग सभी रोजे 15 घंटे से अधिक के होंगे। रमजान का आखिरी शुक्रवार यानी जुमा 27 अप्रैल को होगा और ईद उल फितर 3 मई 2022 को होगी।
रमजानुल मुबारक का चांद नजर आते ही चारों तरफ खुशियां मनाई जाती है। चांदरात से ही तरावीह की एक विशेष नमाज का सिलसिला शुरु हो जाएगा। इस माह में मस्जिदों में नमाजियों की संख्या में भी काफी इजाफा हो जाता है। हर शख्स ज्यादा से ज्यादा समय इबादत में खर्च करना चाहता है। सुबह फज्र, दोपहर जोहर, नाम में अस्त्र, मगरिब, ईशा में मस्जिदें नमाजियों से भरी रहती हैं। इसके अलावा रात को तरावीह की विशेष नमाज में भी काफी भीड़ होती है।
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रमजान सुबह सहरी खा लेने के बाद सूर्यास्त तक कुछ भी खाने-पीने की अनुमति नहीं होती है। यहां तक की इंजेक्शन लगवाना भी मनाई किया है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल ही नहीं है कि रो़जा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का ही नाम है।
दरअसल, रो़जा नाम है त़कवा व पहरे़जगारी अख्तियार करने का यानी इंसान अपने अंदर की छुपी हुई गलत वाहिशात पर काबू पाने की कोशिश करता है। रम़जान के इस पवित्र महीने की मिसाल ठीक उसी तरह है जिस तरह इंसान के आखिरत की जिंदगी (मरने के बाद वाली)की तैयारी के लिए उसे इस दुनिया की जिंदगी दी गयी है, ठीक उसी तरह इस दुनिया में हर साल एक महीना रम़जान का दिया गया है, जिसमें वह साल के बाकी ग्यारह महीनों में नेक काम करने और बुराई से बचने का अभ्यास करता है।
टेक्नोलॉजी के इस आधुनिक युग में सेहत को लेकर रो़जे के महत्व पर कई रिसर्च भी हुए हैं। चिकित्सकों, नेचरथेरेपिस्टों व कई अन्य महान हस्तियों ने रो़जा (उपवास) पर जो प्रयोग किये हैं उनसे जो परिणाम मिला है, उससे साफ जाहिर होता है कि आधुनिक अर्थ में भी रो़जे का काफी महत्व है और रो़जा सेहतमंदी का एक वैज्ञानिक तरीका भी है। यही वजह है कि आज मुसलमानों के साथ अन्य धर्म के लोग भी रो़जा रखते हैं।
Ramadan Special एक मशहूर अमेरिकी नावेल निगार आप्टन सिनवलेयर ने रो़जे को तंदुरुस्ती का दाता कहा है। सेहत की हिफाजत विधि के तौर पर भी रो़जे की अहमियत को बताते हुए कहा है कि रोजे हमें रोगों से बचाते है। प्रो.अरनाल्ड अरहिट एक अमेरिकी नेचुरोथेरोपिस्ट ने रो़जे की अहमियत बताते हुए कहा कि रोजे में जैसे ही खाना बंद किया जाता है तो हमारा शरीर जो नलियों के जाल से बना है सिकुड़कर अपनी कुदरती हालत में आने लगती है।
शरीर में मौजूद खून से बेकार पानी निकलने लगता है और खून गाढ़ा हो जाता है। इससे हमारा जिस्म हलका होता है और रमजान के बीसवें दिन तक रो़जेदार अपने में ताकत और मजबूती का अहसास करने लगता है। एक अन्य डाक्टर ने भी रो़जे को बलगमी बीमारियों का से मुफीद इलाज बताया है। महात्मा गांधी जो उपवास के आचार्य कहे जाते हैं कि जब कभी आप दु:ख या मुसीबत में हों जिसे आप दूर नहीं कर सकते उस वक्त आपको उपवास और इबादत में अपना समय गुजारना चाहिए।
(यंग इंडिया-25 सितम्बर, 1942) तिब्बी माहिरीन का भी यह तजुर्बा है कि रो़जा रखने से शरीर में में ऊर्जा के साथ हृदय को भी आराम मिलता है जिससे ब्लड प्रेशर भी सामान्य बना रहता है।
पहले ही दिन ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है।
दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और ख़ून का दबाव कम हो जाता है। नसें जमाशुदा ग्लाइकोजन को आज़ाद कर देती हैं। जिसकी वजह से जिस्मानी कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है। ज़हरीले माद्दों की सफाई के पहले मरहले के नतीज़े में- सरदर्द सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़ुबान पर मवाद का जमा होता है।
Ramadan Special जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है। कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकना हो जाती है। जिस्म भूख का आदी होना शुरु हो जाता है। और इस तरह साल भर मसरूफ रहने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है। खून के सफ़ेद जरसूमे (white blood cells) और इम्युनिटी में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। हो सकता है रोज़ेदार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ़ हो इसलिए के ज़हरीले माद्दों की सफाई का काम शुरू हो चुका है। आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है। आंतों की दीवारों पर जमा मवाद (कचरा) ढीला होना शुरू हो जाता है।
Ramadan Special आप पहले से चुस्त महसूस करते हैं। दिमाग़ी तौर पर भी चुस्त और हल्का महसूस करते हैं। हो सकता है कोई पुरानी चोट या ज़ख्म महसूस होना शुरू हो जाए। इसलिए कि आपका जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज़्यादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है। जिस्म अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है। जिनको आमतौर से केमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है। इस सिस्टम को साइंस में Autophagy कहते हैं।
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जिस्म पूरी तरह भूक और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करते हैं।
Ramadan Special इन दिनों आप की ज़ुबान बिल्कुल साफ़ और सुर्ख़ हो जाती है। सांस में भी ताज़गी आ जाती है। जिस्म के सारे ज़हरीले माद्दों का ख़ात्मा हो चुका होता है। हाज़मे के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। जिस्म से फालतू चर्बी और ख़राब माद्दे निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने फ़राइज़ अदा करना शुरू कर देता है।
बीस रोज़ों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं। तवज्जो और सोच को मरकूज़ करने की सलाहियत बढ़ जाती है।