Rajnath Singh: भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह इन दिनों मंगोलिया के दौरे पर हैं । मंगोलियाई रीति रिवाजों के अनुसार राजनाथ सिंह को भी गिफ्ट में मंगोलियाई प्रशासन ने गिफ्ट में घोड़ा दिया है । बता दें कि मंगोलियाई नस्ल का यह घोड़ा जितना खास है उतना ही पुराना इसका इतिहास भी है । आपको बता दें कि मंगोलिया घोड़ों के लिए ही प्रसिद्ध है और यहां के लोगों का जीवन घोड़ो के इर्द-गिर्द ही बीतता है । यही वजह है कि इस देश की संस्कृति में घोड़ा घुला मिला है ।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस नस्ल के घोड़े को रक्षा मंत्री Rajnath Singh को गिफ्ट किया गया है करीब 850 साल पहले उसी नस्ल के घोड़े पर बैठकर चंगेज खान ने करीब एक चौथाई दुनिया जीत ली थी ।
इस पोस्ट में
रक्षा मंत्री Rajnath Singh ने मंगोलियाई राष्ट्रपति से मिले घोड़े रूपी उपहार को बेहद खास बताया । यही नहीं उन्होंने इसके लिए मंगोलियाई प्रशासन को धन्यवाद भी दिया। उन्होंने बुधवार को ट्वीट किया- “मंगोलिया के हमारे विशेष दोस्तों ने मुझे विशेष उपहार दिया है । मैंने इस खूबसूरत उपहार का नाम तेजस रखा है । राष्ट्रपति कुरेलसुख का धन्यवाद। धन्यवाद मंगोलिया।”
बता दें कि रक्षा मंत्री Rajnath Singh को उपहार में मिले गिफ्ट को प्रतीक के रूप में दिया गया है और वह इस घोड़े को भारत नहीं लाएंगे । 2005 में पर्यावरण और वन मंत्रालय के कानून के मुताबिक पशुओं को बतौर गिफ्ट लेने देने पर रोक है। यही वजह है कि रक्षा मंत्री इस घोड़े की फ़ोटो वाला प्रतीक चिन्ह लेकर वापस आएंगे जबकि घोड़ा मंगोलिया स्थित दूतावास में ही रहेगा ।
मंगोलिया के जन जीवन और संस्कृति में घोड़े घुले मिले हैं । यही कारण है कि मंगोलिया आने वाले हर विशेष अतिथि को उपहार रूप में घोड़ा दिया जाता है । 6 साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी मंगोलिया की सरकार ने घोड़ा गिफ्ट किया था । वहीं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 16 दिसम्बर 1958 को जब मंगोलिया दौरे पर गए थे तो उन्हें भी गिफ्ट में मंगोलियाई नस्ल के 3 घोड़े मिले थे ।
रक्षा मंत्री Rajnath Singh को जो घोड़ा मंगोलियाई सरकार ने भेंट किया है वह बेहद खास है । इस नस्ल के घोड़ो की औसत ऊंचाई 4 से साढ़े 4 फीट तक होती है । लंबे चेहरे और छोटे छोटे पैर इनकी पहचान हैं । इनका वजन 225 -275 किलोग्राम तक होता है । मंगोलियाई घोड़ों की यह खासियत होती है कि ये रेगिस्तान और पहाड़ पर भी चढ़ सकते हैं वहीं कम भोजन पर भी ये टिके रहते हैं । बता दें कि इनके रखरखाव में भी काफी कम खर्च आता है ।
ये एक दिन में 128 किलोमीटर तक चल सकते हैं । वहीं ये दुग्ध उत्पादन में भी अव्वल होते हैं । अगर इनकी कीमत की बात करें तो इनकी कीमत 25 हजार- 40 हजार तक होती है ।
अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के अनुसार मंगोलिया में रहने वाले लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किसी भी अन्य देश से अधिक घोड़ो का उपयोग करते हैं । यही वजह है कि इस देश की जितनी जनसंख्या है लगभग उतनी ही यहां घोड़ो की संख्या है । एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में इस देश की जनसंख्या 33 लाख थी तो वहीं यहां घोड़ो की सँख्या करीब 30 लाख थी । और ये आज भी चलता आ रहा है । मंगोलिया के लोगों के जीवन के केंद्रबिंदु में घोड़ा मौजूद हैं । दरअसल इस देश की एक बड़ी आबादी अभी भी खानाबदोश जिंदगी जीती है ।
Science and fun Ashu Sir की Class में क्या है, कैसे एक student ने Hydrogen bomb घर में बना लिया था
यहां के लोग भोजन से लेकर अन्य संसाधनों के लिए घोड़े, याक, मवेशी, भेड़ें, बकरियां आदि रखते हैं । आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां के उन लोगों को अमीर माना जाता है जिनके पास मंगोल नस्ल का घोड़ा होता है । यहां एक कहावत भी प्रचलित है – “घोड़े के बिना मंगोलियाई लोग बिना पंखों वाले पक्षी के समान हैं । ” आपको बता दें कि मंगोल लोग दूसरे देशों में जो चीजें सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट करते हैं उनमें से एक घोड़े के बाल भी हैं । ओईसी डॉट वर्ल्ड के मुताबिक मंगोलिया हर साल करीब 2 हजार करोड़ रुपये के घोड़े के बाल एक्सपोर्ट करता है ।
साल 2020 में मंगोलिया ने 1865 करोड़ रुपये के घोड़े के बाल अन्य देशों में एक्सपोर्ट किये थे । इसके अलावा इस साल मंगोलिया ने 263 करोड़ रुपये का घोड़े का मांस भी एक्सपोर्ट किया है । बता दें कि कम दूरी की यात्रा के लिए भी लोग घोड़े का इस्तेमाल करते हैं जिससे डीजल/ पेट्रोल की खपत भी कम होती है । बता दें कि यहां के लोग घोड़ी का दूध भी पीते हैं ।
बता दें कि मंगोलों का इतिहास घोड़ों के बिना अधूरा है । मंगोलियाई शासक चंगेज खान ने 1175 में इसी नस्ल के घोड़े पर बैठकर एशिया और यूरोप के 90 लाख वर्ग किलोमीटर यानी दुनिया का करीब एक चौथाई( 22% ) हिस्सा जीत लिया था । चंगेज खान इसी घोड़े पर बैठकर हर रोज करीब 128 किलोमीटर का सफर तय करता था । वहीं साल 1223 में 20 हजार मंगोल सैनिको ने घोड़ों के दम पर ही 80 हजार रूसी सैनिकों को खदेड़ दिया था ।
इस जंग का नेतृत्व चंगेज खान के 2 लेफ्टिनेंट कर रहे थे और उन्होंने अपने से 4 गुना बड़ी रूसी सेना को इन्ही घोड़ों पर बैठकर धनुष और भालों के दम पर हरा दिया था । बताया जाता है कि युद्ध के मैदान में मंगोल सैनिक स्वस्थ रहने के लिए इन घोड़ो का दूध और खून भी पीते थे ।