Pm Modi Visit to Kashmir: Pakistan ने बीते दिनों पीएम नरेंद्र मोदी की जम्मू कश्मीर दौरे तथा चिनाब नदी पर रखले एवं क्वार पनबिजली परियोजनाओं निर्माण के लिए आधारशिला रखने पर भी आपत्ति जताई। भारत सरकार ने अब इस पर यह प्रतिक्रिया दी है कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार के दिन यह कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जम्मू कश्मीर के दौरे पर टिप्पणी करने के लिए पाकिस्तान के पास कोई भी हक नहीं है।
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पाकिस्तान को लेकर क्या भारत के रुख में बदलाव हुआ है? इस सवाल पर भी बागची ने यह कहा है कि हमारा रुख बहुत सीधा है। ऐसा एक माहौल हो जिसमें आतंकवाद नहीं हो ऐसे माहौल में ही बातचीत भी हो सकती है। हमारा हमेशा से यही मुद्दा रहा है। यह हमारी जायज मांग है कोई बदलाव नहीं है।
बता दें कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद से पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रविवार के दिन जम्मू कश्मीर गए थे। इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रतले तथा क्वार जलविद्युत परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी। किस्तों वार्ड में चिनाब नदी पर भी करीब 5300 करोड रुपए की लागत से 850 मेगावाट की परियोजनाओं तथा उसी नदी पर 4500 करोड रुपए से ज्यादा की लागत से 540 मेगा वाट की क्वार जल विद्युत परियोजनाओं का भी निर्माण किया जाएगा।
इस पर पाक के विदेश मंत्रालय ने यह कहा है कि भारत द्वारा डिज़ाइनर रतेल पनबिजली संयंत्र के निर्माण पर भी पाकिस्तान को आपत्ति रही है तथा क्वार पन बिजली संयंत्र के लिए भी भारत ने अभी तक पाक के साथ जानकारी भी साझा करने की अपने संधि दायित्व को पूरा नहीं किया है। विदेश कार्यालय ने कहा है कि पाकिस्तान भारत पीएम द्वारा दो परियोजनाओं की आधारशिला रखने को वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) को सीधे उल्लंघन के रूप में भी देखता है।
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आपको बता दें कि विश्व बैंक की मध्यस्थता में साल 1960 की सिंधु जल संधि पर तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। ये संधि दोनों देशों में बहने वाली सिंधु नदी तथा उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग से संबंधित है।
गौरतलब है कि पानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद जब बहुत ज्यादा बढ़ गया तभी 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ तथा टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इसे तकनीकी के रूप में भी हल करने का सुझाव दिया। उनके राय देने के बाद से भी इस विवाद को हल करने के लिए सितंबर 1951 विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करने की बात स्वीकार कर ली। जिसके बाद से 19 सितंबर 1960 को भारत तथा पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ।