भारत में प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी 25 सितंबर को अंत्योदय दिवस मनाया जाएगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के रूप में अंत्योदय दिवस मनाया जाता है। देश में आज गरीबों के उत्थान में तमाम अंत्योदय योजनाएं चल रही हैं। 25 सितंबर 2014 को भारत सरकार द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 98वीं जयंती के अवसर पर अंत्योदय दिवस की घोषणा की गई थी। अंत्योदय का नारा पंडित दीनदयाल ने ही दिया था। अंत्योदय का अर्थ होता है उत्थान। मतलब की समाज के अंतिम छोर तक आर्थिक रूप से कमजोर तथा पिछड़े वर्ग के लोगों का उदय या फिर विकास करना होता है। एक राष्ट्रवादी नेता के तौर पर दीनदयाल उपाध्याय को याद किया जाता है। जो हमेशा से गरीबों और दलितों के हक के लिए आवाज उठाते थे।
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साल 2017 में इस दिन को मनाने की शुरुआत की गई थी। वर्ष 2017 में स्टार्ट हुआ अंत्योदय दिवस के उत्सव का यह पांचवां वर्ष है। भाजपा की सरकार के सत्ता में आने के बाद 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों को याद करने तथा उसे बढ़ावा देने के लिए उनकी जयंती पर अंत्योदय दिवस मनाया जाता है। सरकार ने समाज के कमजोर वर्ग के लोगों की मदद करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय की याद में कई योजनाएं शुरू की है। ऐसे कामों पर एक अंत्योदय दिवस के दिनों पर जोर दिया जाता है। जिससे युवा कौशल विकास कार्यक्रमों तथा कार्यविधि कार्यक्रमों को बेहतर बनाया जा सके।
दीनदयाल उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के फरार शहर के पास नगला चंद्रभान गांव में 1916 को जिसे अब दीनदयाल धाम भी कहा जाता है, में इनका जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय जो एक ज्योतिषी थे तथा उनकी मां एक गृहणी थी। कम ही उम्र में दीनदयाल उपाध्याय ने अपने माता पिता को खो दिया था। तथा उनका पालन पोषण उनके मामा ने किया था। सीकर में उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई की। एक मेधावी छात्र माने जाने की वजह से सीकर के महाराजा ने उपाध्याय को एक स्वर्ण पदक तथा पुस्तकों के लिए 250 रुपए व 10 रुपए की मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की। अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में उत्तीर्ण करने के बाद उपाध्याय कला स्नातक करने के लिए कानपुर चले गए। फिर सनातन धर्म कॉलेज में शामिल हो गए। उसके बाद उन्होंने 1939 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद से अंग्रेजी में मास्टर कोर्स करने के लिए आगरा में सेंट जॉन्स कॉलेज में प्रवेश ले लिया। लेकिन किसी कारणवश वह परीक्षा में उपस्थित नहीं हो सके।
साल 1978 में जब वो अध्यक्ष थे तो 10 फरवरी को दीनदयाल लखनऊ से पटना जा रहे थे। यही वजह थी कि वे सियालदह एक्सप्रेस में बैठे। लेकिन जब ट्रेन रात 2 बजे के करीब मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची तो वह ट्रेन में नहीं थी। स्टेशन के नजदीक ही उनका शव पड़ी मिली थी। लेकिन अभी तक पता लगाया नहीं जा सका कि उनकी मौत का क्या कारण था। आज भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मौत एक बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ है।