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गांव का हाल शहर से आई युवा सरपंच ने बदला, मुख्यमंत्री पुरस्कार के अंतर्गत Panchayat को मिले 9 लाख रुपये

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Panchayat: Rajasthan में जन्मी और Delhi की रहने वाली प्रियंका तिवारी की शादी वर्ष 2019 में हुई थी। शादी के बाद से वह उत्तर प्रदेश की 1 गांव राजपुर में रहने लगी। शुरुआत में उन्हें गांव में रहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। गांव में एक ठीक-ठाक मैनेजमेंट सिस्टम तथा व्यवहारिकता की कमी की वजह से उन्हें वहां रहने में परेशानी हो रही थी। वेस्ट मैनेजमेंट की कमी, श्मशान घाटों की कमी, नाले निकासी की परेशानी कुछ ऐसे मुद्दे थे। जिन पर किसी का भी ध्यान नहीं था।

मास कम्युनिकेशन से ग्रेजुएट किया प्रियंका ने

बता दें कि प्रियंका ने मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएट किया था तथा सामाजिक रुप से हमेशा से जागरूक थी। वो चाहती थी कि क्षेत्र में बदलाव हो तथा वह अक्सर अपने ससुराल वालों से इस बारे में बात करती थी। जब वर्ष 2021 में पंचायत चुनाव की घोषणा की गई। तो प्रियंका के ससुर को यह लगा कि यह एक अच्छा मौका है जहां प्रियंका अपना जुनून तथा कौशल दिखा सकती है।

प्रियंका ने चुनाव लड़ा, जीत भी हासिल की

हालांकि प्रियंका की ससुर ने यह कहा कि अगर वह इस गांव में सच में बदलाव लाना चाहती हैं। तो उनके लिए यह एक मौका है। अपने ससुर की बात मानते हुए प्रियंका ने चुनाव लड़ा तथा जीत भी हासिल की। चूंकि प्रियंका के शपथ ग्रहण समारोह के अगले ही दिन राजपुर Panchayat में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गांव की सरपंच प्रियंका यह कहती है कि प्लास्टिक का उपयोग 1 दिन में बंद नहीं किया जा सकता। मुझे यकीन है कि यह एक लंबी प्रक्रिया होगी।

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Plastic से लेकर chocolate रैपर तक के लिए चलाई क्लास

प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगाने के लिए Panchayat में कई महत्वपूर्ण कदम उठाएं। सबसे पहला कदम दुकानदारों, सड़क किनारे रेड़ी लगाने वालों, घरों में कपड़े की थैली बांटना था। हालांकि दूसरा कदम प्लास्टिक का इस्तेमाल करने पर जुर्माना लगाना था। प्लास्टिक का उपयोग करने पर पहली बार के लिए ₹500 का जुर्माना वहीं पर दोबारा करने पर ₹1000 तथा अगली बार फिर से करने पर उस पर दुकान का लाइसेंस रद्द करने का नियम बनाया गया। ‌

इसके साथ ही कई क्लासेज भी आयोजित की गई। जिसमें कि प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया। इन तरीकों से गांव में प्लास्टिक का उपयोग 30 से 35 फ़ीसदी कम किया गया। दूसरी बात उन्होंने यह महसूस किया कि बच्चे अक्सर किसने किया फिर चॉकलेट खाते हैं। इनके रैपर का प्लास्टिक कचरे में काफी योगदान होता है। उन्होंने प्लास्टिक को इकट्ठा कर प्रति किलो दो रुपए कमाने के लिए भी लोगों को प्रोत्साहित किया। हालांकि इसके साथ ही साथ स्कूल तथा कॉलेजों में भी जागरूकता क्लास भी लगाई गई। इसी प्रकार से गांव में प्लास्टिक का उपयोग 70 से 75 फ़ीसदी तक कम हुआ।

प्रियंका यह कहती हैं कि उनका सपना आने वाले 2 सालों में इस संख्या को 95 फ़ीसदी तक करना है। वहीं पर वह कहती हैं कि मुझे उम्मीद है कि सरपंच के रूप में मेरे कार्यकाल के बाद से भी बुजुर्गों तथा बच्चों दोनों के लिए जागरूकता कार्यक्रम इन प्रक्रियाओं को जारी रखने में मदद करेंगे।

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मुख्यमंत्री पुरस्कार के अंतर्गत Panchayat को मिले 9 लाख रुपए

पंचायत की 24 साल की वर्षा सिंह याद आती है कि शमशान घाट की तत्काल जरूरत थी। किसी भी बंजर जमीन पर यह सारी प्रक्रियाएं करना काफी मुश्किल है। मुझे उम्मीद है कि निर्माण कार्य जल्द ही पूरा हो जाएगा तथा यहां काम करना भी शुरू कर देगा।

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श्मशान के काम की योजना बनाई गई

हालांकि शमशान के काम की योजना बनाई गई है। ताकि कोई भी व्यक्ति, जाति या फिर वर्ग की परवाह किए बिना, सुविधा का यूज कर सके। इन कामों के अलावा भी सरपंच चुने जाने के 1 साल बाद से ही प्रियंका ने Panchayat में एक लाइब्रेरी की शुरुआत की है। वो यह कहती हैं कि हम नहीं किताबें खरीदने में सक्षम नहीं है क्योंकि एक साथ कई सारी चीजें चल रही है। इसीलिए हम पैसे तथा किताबों के रूप में कुछ का इंतजार कर रहे हैं ताकि इस तरफ काम चलता रहे।

बता दें कि अपनी जोस तथा जुनून के जरिए ही प्रियंका ने चुनाव जीतने के 1 साल के अंदर ही Panchayat का चेहरा बदलने के लिए अहम कदम उठाए हैं। उनकी पंचायत को अभी हाल ही में मुख्यमंत्री पुरस्कार के अंतर्गत 9 लाख रुपए मिले हैं तथा वह इस राशि का इस्तेमाल करके एक रिवर्स ऑस्मोसिस वॉटर प्लांट स्थापित करने की योजना भी बना रही हैं।



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