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अब बिना PhD के भी यूनिवर्सिटी-कॉलेज में बन सकेंगे प्रोफेसर, 4 वर्षो के लिए नियुक्ति होगी

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PhD: अलग-अलग फील्ड के एक्सपर्ट्स बिना PhD डिग्री के भी यूनिवर्सिटी-कॉलेज में अब पढ़ा सकेंगे. ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ स्कीम के अंतर्गत इनकी नियुक्ति अब अधिकतम 4 वर्षो के लिए होगी.

4 साल के लिए होगी UGC की प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस स्कीम से एक्सपर्ट्स की नियुक्ति.

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस. ये UGC यानी यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की एक नई स्कीम है. जिसके लिए UGC ने ड्राफ्ट गाइडलाइन भी जारी कर दी है. इस स्कीम के लागू हो जाने के बाद यूनिवर्सिटी-कॉलेज में ऐसे लोग भी अब पढ़ा सकेंगे जिनके पास PhD की डिग्री नहीं होगी. यह सारे लोग अपनी-अपनी फील्ड के एक्सपर्ट्स भी होंगे. जिनके पास कम से कम 15 वर्षों का अनुभव हो और वे किसी सीनियर पोस्ट पर काम भी कर रहे हों. जैसे कोर्ट में 15 वर्ष से प्रैक्टिस कर रहा कोई लॉयर, लॉ स्टूडेंट्स की क्लास अब ले सकेगा या फिर 15 वर्षों से मीडिया में काम कर रहा कोई भी पत्रकार, जर्नलिज्म के स्टूडेंट्स को पढ़ा सकेगा.

यानी इस नई स्कीम से डिग्री की बाध्यता ही खत्म हो जाएगी और इसकी जगह एक्सपीरियंस को तरजीह भी दी जाएगी. ताकि सभी स्टूडेंट्स को भी अपनी फील्ड में थ्योरी के साथ साथ ही एक्सपीरियंस्ड लोगों से पढ़ने का भी मौका मिले.

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क्या होंगे प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस होने के पैमाने?

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के अपॉइंटमेंट के लिए कुछ पैमाने भी तय हैं. प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की ड्राफ्ट गाइडलाइन के अनुसार इंजीनियरिंग, साइंस, सिविल सर्विसिस, लिटरेचर, लॉ, मीडिया,  उद्यम, सोशल साइंस, फाइन आर्ट्स और आर्म्ड फोर्स जैसी कई फील्ड्स के एक्सपर्ट्स भी अब यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए एलिजिबल होंगे. इसके लिए किसी भी इनके एक्सपर्ट को अपनी फील्ड में कम से कम 15 वर्षो का एक्सपीरियंस होना चाहिए. यानी एक्सपर्ट ने अपनी फील्ड में कम से कम 15 वर्ष काम किया हो. एक्सपर्ट के पास अपनी प्रोफेशन से जुड़ी हुई जरूरी जानकारी और स्किल्स होना आवश्यक है.

एक्सपर्ट को निर्धारित फील्ड की ड्यूटी और जिम्मेदारियों की अच्छी समझ भी होनी चाहिए ताकि वो स्टूडेंट्स के साथ इससे जुड़े टिप्स और अपने एक्सपीरियंस और लर्निंग भी साझा कर सकें. इसके लिए यह जरूरी है कि या तो एक्सपर्ट फील्ड में अपनी सेवाएं दे रहे हों या फिल्ड से रिटायर हो चुके हों. इसके अलावा भी यह स्कीम ऐसे लोगों के लिए नहीं है जो पहले से ही टीचिंग पोजिशन में हैं.

इस स्कीम के जरिए 3 कैटगरी में प्रोफेसर्स को अपॉइंट किया जाएगा-

1. ऐसे एक्सपर्ट्स जिनको अपॉइंट करने का खर्च इंडस्ट्रीज उठाएंगी 

2. ऐसे एक्सपर्ट्स जिनको यूनिवर्सिटी-कॉलेज अपने ही खर्च पर अपॉइंट करेंगे

3. ऐसे प्रोफेसर्स जिनको मानद आधार पर स्पेशल फैकल्टी के रूप में भी बुलाया जाएगा

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UGC ने अभी प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के लिए ड्राफ्ट गाइडलाइन भी जारी की है. यानी कि अभी यह स्कीम ‘कार्य प्रगति पर है’ वाले मोड में ही है. UGC ने ड्राफ्ट गाइडलाइन पर लोगों से सुझाव भी मांगे हैं. ताकि इसको और भी बेहतर किया जा सके.

क्या यूनिवर्सिटी की फैकल्टी में होगी कटौती?

PhD, प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के अंतर्गत एक्सपर्ट्स की नियुक्ति एक निर्धारित समय अवधि के लिए ही की जाएगी. इनकी भर्ती यूनिवर्सिटी या हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स के द्वारा से ही की जाएगी. किसी भी संस्थान में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की संख्या वहां के कुल प्रोफेसर्स की सीटों के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी होगी. यह भर्ती, इंस्टीट्यूट्स के एजुकेशनल स्टाफ के लिए निर्धारित सीट्स से अलग ही होंगी. यानी प्रैक्टिस ऑफ प्रोफेसर की नियुक्ति होने से यूनिवर्सिटी की फैकल्टी पोस्ट्स की संख्या में कोई भी कटौती नहीं होगी.

कितने समय अवधि के लिए होगी नियुक्ति?

प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस स्कीम के अंतर्गत शुरुआत में तो एक्सपर्ट्स की नियुक्ति सिर्फ 1 वर्ष के लिए ही होगी. 1 वर्ष के बाद इंस्टीट्यूट, इसका मूल्यांकन भी करेंगे और फिर वह ये तय करेंगे कि एक्सपर्ट को एक्सटेंशन देना है या फिर नहीं. कोई भी एक्सपर्ट, किसी एक संस्थान में अधिकतम 3 वर्ष पढ़ा सकेंगे. हालांकि किसी विशेष स्थिति में इसे 1वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है. मगर यह अपवाद ही होगा.

CHANDRA PRAKASH YADAV

Why So Serious??

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