Tazia of Gold and Silver: पिछले दो सालों से कोरोना की बंदिशों के चलते गोरखपुर का प्रसिद्ध मुहर्रम का जुलूस नहीं निकल रहा था। लेकिन कोरोना संक्रमण के मामलों में राहत को देखते हुए गोरखपुर के ऐतिहासिक जुलूस की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस बार देश-दुनिया के लोग गोरखपुर में अनूठे सोने-चांदी के ताजिया (tazia of gold and silver) का दीदार कर पाएंगे।
इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम गम का महीना कहा जाता है। मोहर्रम के महीने की 10 तारीख को रोज़े-आशूरा कहते हैं। इस दिन इस्लाम धर्म के महान पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों के साथ उन्हें 3 दिन का भूखा प्यासा इराक के करबला में शहीद कर दिया गया था। इन शहिदों में इमामे हुसैन (अस) के सबसे छोटे बेटे अली असग़र भी शामिल थे जिनकी उम्र सिर्फ 6 माह ही थी।
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हजरत सैयदना इमाम हुसैन इंसानियत की सबसे अजीम शक्सियत हैं। वे इस्लाम धर्म के चौथे खलिफा हजरत अली और मां हजरत फातिमा के बेटे थे। इस्लाम के आखिरी और महान पैगंबर हजरत मोहम्मद (SAW) के वे नाती थे।
गोरखपुर में मुहर्रम को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी है। दो सालों के बाद इस साल इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाजार में अकीदतमंद सोने चांदी के बने ताजिया के दीदार कर पाएंगे। ताजियों की मरम्मत और सफाई भी हो चुकी है। इसके साथ ही इमामबाड़ा की रंगाई-पोताई का काम भी हो चुका है। तैयारियों को लेकर इमामबाड़ा के मूल्यांकन की बैठक भी हुई थी उस कमेटी के अध्यक्ष सह मीडिया प्रभारी 31 जुलाई से
इमामबाड़ा इस्टेट और मुहर्रम की तैयारियों को लेकर इमामबाड़ा मुतवल्लियान कमेटी की बैठक हुई थी। इस कमेटी के अध्यक्ष सैयद इरशाद अहमद व इमामबाड़ा इस्टेट के मीडिया प्रभारी मंजूर आलम ने कहा कि चांद दिखने के बाद 31 जुलाई से माह-ए-मुहर्रम का आगाज होते ही इमामबाड़ा में काम का शुरू हो चुका है।
मुहर्रम माह में तो इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाजार की रौनक देखने लायक होती है। यहां मुहर्रम माह में बकायदा 10 दिनों का मेला लगता है। दूर दराज के इलाकों से लोग यहां सोने चांदी की ताजिया का दिदार करने आते हैं।
10 दिनों के लिए इमामबाड़ा में सोने-चांदी के ताजिया की आमजनों के जियारत रखी जाएगी।
Tazia of Gold and Silver, मुहर्रम में यहां ताजिया की काफी वेरायटी देखने को मिलती है। गोरखपुर में इमामबाड़ा में सोने-चांदी की ताजिया के दीदार के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। इसके साथ ही अकीदतमंद मन्नत भी रखते हैं। इसके बनाने का सिलसिला काफी तेजी से शुरू हो चुका है।
रविवार को इमामचौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी की तिवारीपुर के ताज पैलेस में हुई बैठक में तय हुआ कि रवायत के मुताबिक जुलूस निकाले जाएंगे। वहीं रास्ते में आ रही समस्याओं के समाधान के लिए जिला प्रशासन से भी मदद मांगी जाएगी। इस अवसर पर कमेटी के संरक्षक खैरुल बशर, अध्यक्ष अब्दुल्लाह, कोतवाल कल्याण सागर, तिवारीपुर थाना प्रभारी राजेंद्र प्रताप , इकरार अहमद, आसिम खान आदि उपस्थित थे।
सुन्नी समुदाय का सबसे बड़ा इमामबाड़ा गोरखपुर में है। इस इमामबाड़े में आदम कद की सोने-चांदी की ताज़िया है। यहां के मेन गेट पर अवध के राजशाही का चिन्ह बना हुआ है। 1717 ई. में मियां साहब इमामबाड़ा इस्टेट कके संस्थापक हजरत सैयद रौशन अली शाह ने इमामबाड़ा तामीर किया था।
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हजरत सैयद रौशन अली शाह का हुक्का, खड़ाऊ, चिमटा, उनके दांत तथा बर्तन आदि आज भी इमामबाड़े में मौजूद है। हज़रत सैयद रौशन अली शाह ने करीब तीन सौ सालों पहले इमामबाड़े में एक जगह धूनी जलाई थी। वह आज भी सैकड़ों वर्षाें से उसी तरह जल रही है।
Tazia of Gold and Silver, सूफी हज़रत सैयद रौशन अली शाह ही मियां बाजार स्थित इमामबाड़े की देखभाल किया करते रहे। वर्ष 1818 ई. में हज़रत रौशन अली शाह के शिष्य व भतीजे सैयद अहमद अली शाह इस इमामबाड़े के उत्तराधिकारी हुए थे। उन्होंने ही मियां साहब की उपाधि धारण की जो सालों से शिष्य परम्परा से चली आ रही है। सैयद रौशन अली शाह ने सैयद अहमद अली शाह की देखभाल अपने जिम्मे ली थी।
उनके उत्तराधिकारी व इमामबाड़े के सज्जादानशाीन सैयद वाजिद अली शाह वर्ष 1915 ई. तक सज्जादानशीन रहे थे और उनके बाद नौ साल की उम्र में ही सैयद जव्वाद अली शाह सज्जादानशीन बने थे। वह वर्ष 1916 से 1972 ई. तक सज्जादानशीन रहे थे। उस बाद बड़े मियां साहब के नाम से पहेचाने जाने वाले सैयद मजहर अली शाह वर्ष 1973 से 1986 ई. तक सज्जादानशीन रहे और अब वर्तमान में सैयद अदनान फर्रूख शाह वर्ष 1987 ई. से सज्जादानशीन हैं। सैयद अदनान फर्रूख शाह अयोध्या में बन रहे बाबरी मस्जिद ट्रस्ट के उपाध्यक्ष भी हैं।