Maharashtra politics: 2014 से भारत देख रहा है कि मोदी हमेशा अपने फैसलों से चौकाते आए हैं। मोदी जी की राजनीति तन्हाई के नीचे कार्बन पेपर रखकर ऊंची-ऊंची आवाज में बातें करती रहती है। उनके अल्फाज हवा में उड़ने लगते हैं लेकिन आवाज की शक्ल कभी भी कागजों पर उतरतने में कामयाब नहीं होती। कुल मिलाकर बात का निचोड़ यह है कि न उनकी लाठी में आवाज होती और न ही उनके राजनीतिक परोपकार का कोई हाथ होता है! देश भौंचक्का रह जाता है जब यकायक फैसले बता दिए जाते हैं और धारणाएं टूट जाती हैं। इसे ही राजनीति (politics) कहते हैं।
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बात गुरुवार शाम तक की ही है जब देवेंद्र फडणवीस खुद को खुदा मान रहे थे सोशल मीडिया पर उनका शायराना अंदाज भी नजर आ रहा था उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा था कि, ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना… मैं समंदर हूं, लौट कर वापस आऊंगा।’
फडणवीस के शेर पढ़ने के बाद मौजूद भाजपा विधायकों ने मेज थपथपाकर उनका अभिवादन किया था। हालांकि इस दौरान सत्ता पक्ष के कई विधायक हंसते हुए भी नजर आए थे। अब महाराष्ट्र विधानसभा के विशेष सत्र के देवेंद्र फडणवीस को नेता प्रतिपक्ष चुना गया है।
गुरुवार शाम तक देवेंद्र फडणवीस ने खुद को खुदा मान लिया था। इसके पहले बुधवार शाम को भी पूर्व मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने के बाद वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के हाथों इस तरह मिठाई खा रहे थे जैसे ताज सिर पर आ ही गया हो। किंतु, गुरुवार शाम होते होते सभी सपने चकनाचूर हो गए और उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई। यह बात सिर्फ यहीं नहीं थमी। आखिरकार मन मसोसकर ही फडणवीस ने यह घोषणा भी की थी कि, “एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र मुख्यमंत्री होंगे और मैं सरकार से बाहर रहकर सहयोग करूंगा। “
यहां फिर फडणवीस से एक गलती हो गई थी। गलती इस लिए क्योंकि सरकार से बाहर रहकर सहयोग करने का सीधा मतलब राजनीति में रिमोट कंट्रोल होता है।
यह बात तो सब जानते ही हैं कि भाजपा या उसकी सरकार में दूसरा रिमोट कंट्रोल पॉसिबल ही नहीं। तो फिर फडणवीस कैसे हो सकते थे? सिर्फ आधे घंटे में जमीन आसमान एक कर दिए गए। आखिरकार आसमान को जमीन पर लाया गया। जमीन मतलब कि जमीनी नेता एकनाथ शिंदे। जिस बंदे के साथ शिवसेना जैसी परिवार शासित पार्टी के 55 में से 39 विधायक हों, वह तो जमीनी नेता ही हुआ। So, at the end of this political crisis फडणवीस जी आखिर शिंदे सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाए गए।
अब यह भी सवाल है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके फडणवीस की नाराजगी आगे सरकार चलाने में बाधक नहीं होगी? इस सवाल का जवाब बड़ा ही आसान सा है। बिल्कुल ही नहीं, never। Because महाराष्ट्र की सरकार भी अब ठीक उसी तरह ही चलती रहेगी जिस तरह गुजरात की सरकार चलती रही है। किसी भी निर्णय से पहले उसकी जानकारी जिन्हें होनी चाहिए, होती ही रहेगी और सरकार निर्बाध चलती ही रहेगी।
यह सिर्फ आज की बात ही नहीं है बल्कि राजनीति में तो इस तरह के आश्चर्यजनक फैसले पहले भी हुए हैं। वीपी सिंह के नाम पर चंद्रशेखर भी असहमत थे। उस समय देवीलाल ने ही उन्हें मनाया था और कहा कि आप मेरे नाम का अनुमोदन किजिए। उस बाद चंद्रशेखर ने ही देवीलाल को नेता चुनने का प्रस्ताव रखा। वहीं, from back scene देवीलाल ने खड़े होकर खुद में जताए गए विश्वास के बूते वीपी सिंह का नाम आगे किया था। चंद्रशेखर तो भौंचक ही रह गए और वीपी सिंह प्रधानमंत्री चुन लिए गए थे।
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वैसे भाजपा में तो यह कोई नई बात है ही नहीं। उसके सभी फैसलों के बारे में तमाम पूर्वानुमान अब तक सटीक नहीं बैठ पाए हैं। बीजेपी ने हमेशा अपने फैसलों से सभी को चौंकाया दिया है। खैर इस बार तो सबसे ज्यादा अपने ही नेता देवेंद्र फडणवीस को पार्टी ने चौंका दिया है। शायद हो सकता है यह बीजेपी के हित में हो! क्योंकि अब बीजेपी पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि उसने सत्ता की खातिर उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी। वहीं, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा शिवसेना से ठाकरे परिवार के वर्चस्व को भी खत्म कर देना चाहती है, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से मिलकर सरकार बनाई थी।