देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और काशी के लाल आज भी सादगी की मिसाल है। जय जवान जय किसान, का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री के पद पर मात्र 18 महीने के कार्यकाल में ही नैतिक राजनीति को स्थापित किया था। संघर्षों से भरा लाल बहादुर शास्त्री का जीवन तथा उनकी रहस्यमई मृत्यु का राज आज तक सभी भारतीयों को अंदर से झकझोर देता है। शास्त्री जी ने देश की सुरक्षा और संप्रभुता से कभी समझौता नहीं किया। शास्त्री जी का व्यक्तित्व भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय 1965 में भी देखने को मिला। भारत पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया। उस समय शास्त्री जी ने भारतीय सेना को जवाब देने के लिए खुली छूट दे रखी थी। तथा भारतीय सेना ने हमेशा की तरह पाकिस्तान को बुरी तरह से परास्त कर दिया था।
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बचपन में ही लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता का देहांत हो गया था। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां बच्चों को लेकर अपने पिता के घर यानि अपने माईके मिर्जापुर चली गई थी। उनका पालन पोषण मिर्जापुर में ही हुआ। तथा मिर्जापुर में ही उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई। कहा तो यह भी जाता है कि शास्त्री जी ने बेहद विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल किया था। वहां पर वो रोजना नदी में तैर कर स्कूल जाया करते थे।
लाल बहादुर शास्त्री ने सन् 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इस दौरान देश भुखमरी की स्थिति से अन्य कि संकट के कारण गुजर रहा था। वहीं भारत पाकिस्तान के युद्ध सन् 1965 में देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों को जवानों और सेना का महत्व बताने के लिए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था। शास्त्री जी ने इस संकट काल में अपनी तनख्वाह लेना भी बंद कर दिया था। देश के सभी लोगों से यह अपील की थी कि वह हफ्ते में एक दिन व्रत रहे।
साल 1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने थे। देश तब खाने की चीजें आयात करता था। देश उस समय उत्तरी अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था। पाकिस्तान से जंग के दौरान सन् 1965 में देश में भयंकर सूखा पड़ा। शास्त्री जी ने अपनी प्रथम संवाददाता सम्मेलन में बताया था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान मूल्यों को बढ़ने से रोकना है। उस समय के हालात को देखते हुए शास्त्री जी ने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। तथा इसी हलात में ही उन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया था।