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दुनिया का सबसे ऊंचा पहला मूवी सिनेमा थिएटर लद्दाख में बना, लोग देख सकेंगे बड़े पर्दे पर फिल्म लद्दाख में भी

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Ladakh: हिमालय के उच्च पर्वतीय प्रदेश लद्दाख में पहला सिनेमा थिएटर खुल गया है। इसकी खास बात यह है कि यह सिनेमा थिएटर समुद्र तल से 11,562 फुट की ऊंचाई पर स्थापित किया गया है। तथा इस दुनिया का सबसे ऊंचा सिनेमा थिएटर बताया जा रहा है। मोबाइल डिजिटल मूवी थिएटर कंपनी “पिक्चर टाइम डिजिपलेक्स” ने लेह लद्दाख में दुनिया का सबसे ऊंचा पहला मूविंग सिनेमा थिएटर बनाया है।इसका सबसे बड़ा मुख्य उद्देश्य भारत के हर क्षेत्र के लोगों को डिजिटल सिनेमा का अनुभव देना है। रविवार को लद्दाख के एनएसडी ग्राउंड में इसे लगाया गया। जहां पर स्पेशल गेस्ट के रुप में लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष थुपस्तान चेवांग और एक्टर पंकज त्रिपाठी पहुंचे।

खूबसूरत पहल ऐसा पंकज त्रिपाठी ने कहा

एक्टर पंकज त्रिपाठी ने बताया कि क्या खूबसूरत पहल है. इस देश के अंदरूनी हिस्सों में लोगों तक सिनेमा पहुंच रहा है। फिल्मों की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले मेरे जैसे ही व्यक्ति के लिए यह प्रदर्शनी का एक अलग और अनूठा माध्यम है। जैसे भव्य अस्थान पर कुछ ऐसा होना बिल्कुल अविश्वसनीय है। लद्दाख मीटिंग कर रहा हूं तथा मुझे यहां अद्भुत प्रतिभा देखने को मिली है।

150 लोगों के बैठने की व्यवस्था तथा अंदर है अत्याधुनिक सुविधाएं.

लगभग 150 लोगों के बैठने की व्यवस्था इस इन्फ्लेटेबल क्षेत्र में है। डाॅल्वी 5.1 साउंड के साथ बड़ी स्क्रीन पर डिजिटल मूवी की स्क्रीनिंग की गई है। वर्तमान समय में कोविड प्रोटोकॉल को देखते हुए थिएटर में लगभग अभी 75 सीटें होंगी।तथा इसमें अत्याधुनिक हीटिंग सुविधा का उपयोग करते हुए एक एम्बिएंट कंट्रोल थिएटर भी होगा। ऐसे मौके पर पिक्चर टाइम डिजीप्लेक्स के संस्थापक और सीईओ सुशील चौधरी ने बताया, लेह काफी लंबे समय से बड़ी पर्दे वाली सिनेमा से गायब था। तथा मैं हमेशा से यहां के लोगों को मल्टीप्लेक्स सिनेमा देखने का अनुभव देना चाहता था। उन्होंने बताया कि हमारा लक्ष्य अगले 30 दिनों में लद्दाख में दो फिक्स्ड सिनेमा स्क्रीन व एक चलती सिनेमा स्क्रीन स्थापित करना है।

लद्दाख इस तरह देश का हिस्सा बना था.

दक्षिण में हिमालय पर्वत की चोटियों और उत्तर में काराकोरम से घिरा खूबसूरत लद्दाख अपने आप में ही एक अनोखा राज्य हैं। तथा इसके पूर्व में तिब्बत और उत्तर में चीन की सीमा है। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहां खेती योग्य जमीन बहुत ही कम है। 2000 साल का अपना इतिहास समेटे हुए इस राज्य की भारत से जुड़ने की कहानी काफी ही रोचक है। 17वीं शताब्दी के अंत में तिब्बत के साथ विवाद के चलते लेह ने खुद को भूटान के साथ जुड़ा था। तथा मैं आपको बता दूं कि कश्मीर के डोगरा वंश के शासकों ने लेह को 19वीं शताब्दी में हासिल किया था। इसके बाद तिब्बत, चीन, भूटान के संघर्ष के बावजूद ये कश्मीर का हिस्सा रहा।
सन् 1834 में कश्मीर के महाराजा रणजीत सिंह की सेना कि अभिन्न अंग रहे जोरावर सिंह ने लेह को जीता था। इसके बाद सन् 1842 मि तमाम अलग विद्रोह को दबाकर लेह को डोगरा वंश से जोड़ा गया। अंग्रेजी हुकूमत और यूरोप ने 1850 के बाद लद्दाख में अपनी रुचि दिखाई। फिर सन् 1885 तक लेह को मोरावियन चर्च के मिशन का एक वाटर बनाया गया था। देश को आजादी मिलने के बाद 1947 में कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने हिंदुस्तान के साथ विलय का फैसला लिया था। इसी तरह लद्दाख भी जम्मू कश्मीर राज्य के हिस्से के बतौर भारत का अभिन्न अंग बना। यहां दूसरे मुल्कों से सैकड़ों ऊंट, रेशम, घोड़े, कालीन और खच्चर लाए जाते थे। वहीं पर हिंदुस्तान में रंग, मसाले आदि बेचे जाते थे। तिब्बत से पहाड़ी बैल पर लादकर उन, पश्मीना वगैरह लद्दाख लाया जाता था। उसके बाद कश्मीर में इसे साल में बनती थी

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