वैज्ञानिकों ने आयोडीनयुक्त नमक के बारे में वैश्विक नीति की समीक्षा का सुझाव दिया है,
आयोडीन की कमी से ग्वाइटर (धेधा), मानसिक विकृति, गर्भपात, शारीरिक कमजोरी, मांसपेशी में शिथिलता जैसे अनेक बीमारी घेर लेती हैं ।ग्लोबल आयोडीन नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में लगभग 200 करोड़ लोग आयोडीन की कमी से जूझ रहे हैं।
मगर केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान ( सीडीआरआई),लखनऊ का शोध बताता है कि आयोडीन की कमी पूरी करने के लिए अपनाए जाने वाला मौजूदा तरीका पुरुष की प्रजनन क्षमता घटा रहा है। सीडीआरआई, सरकार को आयोडीनयुक्त नमक के प्रयोग की वैश्विक नीति की समीक्षा का सुझाव भेजने जा रहा है।
सीडीआरआई के वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह बताते हैं कि आयोडीन शरीर में थायराइड हार्मोन का निर्माण करने के लिए जरूरी है, मगर सूक्ष्म मात्रा में।
एक व्यक्ति के लिए 150 माइक्रोग्राम आयोडीन प्रतिदिन काफी है। यह मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है । जो फल और सब्जियों के जरिए शरीर में पहुंचता है।
आयोडीन ने ऐसे गड़बड़ाया सेहत का गणित
बीएचयू वाराणसी के सहयोग से किए गए इस शोध में देखा गया है कि पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी क्षेत्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश की तराई और पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले लोगों में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा मौजूद है।वहीं केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश और उड़ीसा के ग्रामीण इलाकों के लोगों में इसकी कमी पाई गई। इसके लिए आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग किया जा रहा है। जो कारगार भी साबित हुआ है ।
भारत में 80 फ़ीसदी से अधिक घरों में आयोडीन युक्त नमक पहुंच चुका है। मगर यही भेड़चाल जाने -अनजाने एक बड़े इलाके के पुरुषों को प्रजनन क्षमता को संकट में डाल रहा है ।ऐसे इलाके जहां पहले से आयोडीन की अधिकता है ।नमक में उसके प्रयोग से शरीर में वह ज्यादा पैबस्त होता जा रहा है।
डॉक्टर सिंह बताते हैं कि शोध में साफ हुआ है कि आयोडीन की अधिकता का प्रभाव शुक्राणु बनने पर पड़ता है। शुक्राणु कम बनने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। डॉ सिंह ने सरकार को आयोडीन युक्त नमक की यूनिवर्सल पॉलिसी में बदलाव की जरूरत का सुझाव दिया है।