Inspire News: क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपके घर का कचरा, दूसरे जीव जंतुओं के घरों को बर्बाद कर रहा है। आप देश में कहीं पर भी चले जाएं। आपको हर शहर में बड़े-बड़े कचरे के ढेर दिखाई देंगे। इन कचरे की पहाड़ों के पास से गुजरते वक्त हम सिर्फ सरकार और प्रशासन को ही दोष देते हैं। लेकिन खुद कभी यह नहीं सोचते हैं कि हम अपने स्तर पर इस समस्या को कैसे सुलझा सकते हैं। आज के समय की जरूरत आम नागरिक की समस्या नहीं है। बल्कि समाधान का हिस्सा बने जैसे कि भरूच में रहने वाली अंजली एवं उनका परिवार कर रहा है।
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Gujarat के ऐतिहासिक शहर, भरूच में रहने वाली 29 साल की अंजलि और उनका पूरा परिवार, अपनी जीवनशैली को पर्यावरण के अनुकूल रखने के लिए प्रयासरत हैं। ये सच है कि आज के जमाने में किसी न किसी रूप में प्लास्टिक आपके घर में आएगा ही। लेकिन फर्क तो इस बात से आएगा कि आप इस प्लास्टिक के कचरे का प्रबंधन कैसे करते हैं। IIM Ahmedabad में बताओ रिसर्च असिस्टेंट कार्यरत, अंजलि ने यह बताया कि शहर में लगे कचड़ी के पहाड़ को देखकर उन्हें यह लगा कि उन्हें अपने स्तर पर भी कुछ करना चाहिए।
अंजली यह कहती है कि सबसे पहले उन्होंने अपने रसोई से निकलने वाले कचरे का प्रबंधन किया। उन्होंने घर पर ही फल सब्जियों के छिलके, पेड़ के सूखे पत्तों एवं अन्य जैविक कचरे से खाद बनाने की शुरुआत की। उन्होंने यह कहा कि शुरू में थोड़ी परेशानी हुई। लेकिन अब यह प्रक्रिया आदत सी बन गई है। पहले पहले घर वालों को यह लगता है कि ऐसे क्या फल सब्जियों के छिलके इकट्ठा करना सही है? लेकिन जब पहली बार खाद बनाकर तैयार हुआ। तो उन्हें भी बहुत खुशी हुई। मेरे परिवार में सब लोग पहले से ही प्रकृति के प्रति संवेदनशील है। इसीलिए ही हमें अपनी जीवनशैली में यह छोटे-छोटे बदलाव करने में ज्यादा समस्या नहीं आई।
उन्होंने अपने घर आंगन में एक छोटा सा किचन गार्डन भी लगाया है। इस बगीचे में तुलसी, एलोवेरा एवं अन्य कुछ फूलों के पौधों के साथ ही साथ वे कुंदरू, मिर्च, लौकी, टमाटर, तोरई जैसे सब्जियां भी उगा रही हैं। अंजलि बताती है कि उनके बगीचे में सब कुछ जैविक तरीके से उठता है। उनके घर में बनने वाली खाद का इस्तेमाल साग सब्जियां उगाने के लिए ही होता है। इसके अलावा 1 साल में एक बार गोबर की खाद भी खरीदते हैं। इसके साथ ही अंजलि और उनकी सास, रसोई में फल सब्जियों एवं दाल चावल को धोने के बाद से उस पानी को फेकती नहीं है। बल्कि एक कंटेनर में इकट्ठा करके बगीचे में डाल देती हैं।
उन्होंने बताया कि कई बार सब्जियों को पानी में धोते वक्त, उनके कुछ बीच पानी में ही रह जाते हैं। इस पानी को हम बगीचे में डालते हैं और इसके साथ ही बगीचे में गए सब्जियों के बीच अपने आप अंकुरित होने लगते हैं। इसी प्रकार खाद बनाते वक्त कई फलों के बीज गलते नहीं है और जब इस खाद का इस्तेमाल हम बगीचे में करते हैं तो वह बीज भी मिट्टी में जाते हैं। हमारे बगीचे में पपीते के पौधे इसी तरह लगे हैं। अंजलि का कहना है कि हर हफ्ते करीब 3 दिन की सब्जियां उन्हें अपने बगीचे से ही मिल जाती हैं।
Inspire News, खुद ही जैविक सब्जियां उगाने के साथ ही साथ वह खाना पकाने के लिए हफ्ते में चार पांच बार सौर कुकर का इस्तेमाल करते हैं। पिछले वर्ष से ही उन्होंने सौर कुकर का इस्तेमाल करना शुरू किया है। उनके घर में दाल, चावल, केक, खंडवा जैसे पकवान सौर कुकर में ही बनते हैं। अंजली यह कहती है कि गर्मियों में हम सौर कुकर का खूब उपयोग करते हैं। इसमें खाना पकाने में देर लगती है। लेकिन सौर कुकर में पके हुए खाने में ज्यादा स्वार्थ और पोषण होता है।
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Inspire News, अंजली के पति महर्षि दवे सौर ऊर्जा को लेकर बेहद गंभीर है। उन्होंने बताया कि हमने 3 से 4 साल पहले अपने घर के लिए 1.92 किलो वाट की क्षमता वाले सोलर सिस्टम लगवाया था। पिछले कुछ समय से गुजरात सरकार “रूफटॉप सोलर” पर जोर दे रही है और ये बहुत ही अच्छी योजना है। सोलर पैनल की कीमत भी कम हुई है और सौर से ऊर्जा मिलने की वजह से आपकी जेब पर भी ज्यादा बोझ नहीं पड़ता है। हमने “ऑन ग्रिड” सोलर सिस्टम लगवाया है एवं इसकी वजह से अब हमारा बिजली बिल एकदम जीरो है। महर्षि दवे पैट्रोलियम इंजीनियर है। लेकिन पिछले कई वर्षों से वह अपना उद्यम “फार्मब्रिज सोशल सपोर्ट फाउंडेशन” चला रहे हैं।