India: लाउडस्पीकर 18वीं सदी की एक बेहतरीन खोज. जिसका अविष्कार सन 1876 में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने किया था। परंतु यह कई दिनो से देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। ये किसी ने नहीं सोचा होगा की ग्राहम का यह सरल व अतीउपयोगी साबित होने वाला अविष्कार आधुनिक दुनिया में झगडे व ईर्ष्या का कारण बन सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा की लाउडस्पीकर हमारे आधुनिक जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
लेकिन इसकी तेज आवाज कई लोगों को पीड़ा देती हैं और कई बार झगडे का कारण भी बनती हैं। वहीं पिछले कई दिनों से देश की सियासत में भी यह मुद्दा तूल पकड़ता नजर आ रहा है, क्योंकि देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर है. अप्रैल में बढ़ती गर्मी के साथ-साथ लोंगो का भी पारा चढता देखने को मिल रहा है। चलिए आपको पुरा मामला विस्तार से बताते है।
इस पोस्ट में
कोरोना वेव के साथ देश में एक और वेव चल रही है जिसका नाम है हेट वेव, दोनो में फर्क बस इतना है कि कोरोना वेव में लोग अपना और अपने लोगों का खयाल रखते है और घरों में रहकर देश को इस संकट से निकालने का प्रयास व कामना करते है, लेकिन हेट बेव में लोग मंदिर-मस्जिद के नाम पर घरों से बाहर निकलते है। जुबां से आग ऊगलते है. और थंडे पेय पदार्थ के बजाय एक दुसरे की जान के प्यासे होते है। कोरोना वेव में लोगों की शारीरिक हानि हो सकती है पर बदनामी नहीं होती पर हेट वेव में न सिर्फ एक धर्म या सम्प्रदाय बल्की समुचे मुल्क को बदनाम करता है।
बदनामी की इस लहर से अब देश का कोई भी कोना अछुता नहीं, उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक हर तरफ एक धुआं है, जो दो धर्मो के टकराव से रह-रह कर सुलग रहा है। केरल के पलक्कड़ में RSS और PFI कार्यकरता के बीच हिंसा और फिर हत्या, जिसका जिक्र गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनो देश की संसद में भी किया था, जहां एक तरफ कर्नाटक और महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर से अजान होने पर रस्सा कसी का माहौल है, वहीं दूसरी ओर हिमाचल के उना और उत्तर प्रदेश के सीतापुर में धर्म संकट वर्ता के भड़काने वाला अभद्र भाषण सामने अता है।
देश के अलग-अलग हिस्से जैसे कुरनूल, हुबली, अमरावती, वरोदरा, आणंद, करौली, लोहरदगा, सांबरकांठा, रूड़की, हाबड़ा मे पिछले दिनों सांप्रदायिक हिंसा हुई। इन सब के बीच बिहार के मुजफ्फरपुर में राम नवमी के दिन मस्जिद पर भगवा झंडा फहराया गया, तो उत्तर प्रदेश के कानपुर में 17 अप्रैल को भारत को हिदुं राष्ट्र बनाने की घोषणा भी की गई, फिर क्या था देश भर में लगी हुई ये आग देश की राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच गई।
दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के दिन एक के बाद एक तीन जुलूस निकाले गए, जिसमें अखिरी के तीसरे जुलूस निकलते टाइम भयानक हिंसा और पथराव हुआ। हिसां में तलवार के साथ गोली भी चली और 7 पुलिसकर्मीयों के साथ-साथ कई अन्य लोग घायल भी हुए। फिलहाल दिल्ली पुलिस ने मामले को संभाल लिया है और दोनो पक्षों के दोषी लोगें पर गिरफ्तारी के साथ कार्रवाई भी शुरु कर दी. पुलिस का मानना है कि हिंसा करवाना कुछ कट्टरवादियों की सोची समझी साजिश थी।
2020 में जब दिल्ली में दंगे हुए तब अमेरीकी राष्ट्रपती India दौरे पर थे, और अभी मॉरीशस के प्रधानमंत्री India दौरे पर हैं, तो वहीं यूके के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आने वालें है। जब ये खबरें उनतक पहुंची होगीं तो हमारे देश की क्या छवि बनती होगी, ये सोचने वाली बात है।
हिसां की पहल कौन करता है, इससे पहले ये जानना बहुत जरूरी है की हिंसा क्यों हुई, अखिर क्यों कोई समप्रदाय मारपीट व आगजनी करने पर उतर जाता है. क्रिया और प्रतिक्रिया को नजर अदांज नहीं किया जा सकता लेकिन ये कहा तक जायज है की किसी समप्रदाय को नीचा दिखाने की कोशिस की जाए या धर्म के नाम पर पथ्थर चलाए जाए।
India के अलग-अलग जगाहों पर हुई घटनाओं से कानून व्यवसथा बनाए रखने में पुलिस की नाकामी तो सामने आती ही है, परंतु यह इंसानों, सम्प्रदायों और दो धर्मों के बीच बढ़ती ईर्ष्या को भी दर्शाता है। यह सवाल हमारे विवेक का है की हम इस हेट वेव को कैसे रोके।
India में दंगों का इतिहास बहुत पुराना है ये केवल बीजेपी सरकार के आने से शुरु नही हुआ। कितुं ये एक आम नागरिक के लिए बहुत ही कष्ट व चिंता का विषय बना हुआ है। और अगर ऐसा नहीं लगता, तो नए सिरे से हमें और आपको चिंतन की जरुरत है। जरुरत है की शिकागो में दिए स्वामी विवेकानंद के भाषण को याद किया जाए जिसमे वो कहते है की “मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं, इसी ने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढाया है। हम सार्वभौमिक सहिष्णुताल पर ही सिर्फ विश्वास नहीं करना चाहिए बल्कि, हम सभी को धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि मैं इस देश का हूं जहां सभी धर्मों और सभी देशों के सताए लोगों को अपने यहां शरण दी है. सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। इसने धरती को हिंसा से भर दिया है और पता नहीं क कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है। न जाने कितनी सभ्यताएं तबाह हो चुकी हैं और कितने देश मिटा दिए गए। अगर यह ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कई ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है”
1893 में जिस मंच पर खड़े होकर स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को India का परिचय देते है, वहीं पर वो सांप्रदायिकता पर चोट भी करते हैं. एडिट फोटो और वायरल वीडियो से उक्सा जाना और हिंसा करना ये कहीं से भी जायज नहीं है, पुराने जमाने में दुसरे के धर्म स्थल पर मांस फेंक कर दंगा भड़काया जाता था, नए जमाने ने उसकी जगह एडिट फोटो और वाइरल वीडियो ने ले ली है। ये घटनाएं न सिर्फ समाज को खोखला कर रही है.
पहले तुम लोग पत्थर चला रहे थे अब बुलडोजर चल रहा तो क्या हुवा सुदर्शन न्यूज़ की पत्रकार ने जब ये बोला
बल्की India की अर्थवव्सथा को छती पहुंचाने के साथ ही छवी को धुलित कर रही हैं। दगें न सिर्फ सामाजिक संपति को नुकसान पहुंचाते है बल्की निवेशकों के मन में भय भी पैदा करते हैं। भारत अपनी अखंडता और सम्प्रभुता के लिए विश्व विख्यात है। कितना अजीब है हमारे इतने सुंदर और ऐतिहासिक शहरों के यूं सुर्खियों में आना…
गृह राज्य मंत्री नित्यानदं राय के 30 अप्रैल 2021 को संसद में दिए बयान के मुताबिक साल 2016 से 2020 तक 3400 छोटे-बडे दंगे इन चार सालों के दरमियान हो चुके है. इस हेट वेव को रोकने का एक कारगर तरीका ये भी है की चाहे कोई भी समाज हो अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक हो, कानून हाथ में लेने की जरूरत कोई ना कर पाए। कानून का राज हो…ताकी कोई भी दंगा फसाद करने से पहले सौ बार सोचे, अपराधियों में कानून का खौफ हो। ये बहुत ही जरुरी है देश की शांति व समृद्धि के लिए.
आपके बच्चों को हिंसक कौन बना रहा है, उनके हाथ में हथियार कौन थमा रहा है। वक्त रहते इन सवलों का जबाव ढूंढ लेने मे ही अकलमदीं है। कट्टरता किसी भी धर्म की भी हो उससे कालिक देश पर ही लगती है। फैसला आपको करना है की आपको कैसे माहौल में रहना है और आने बाली पीढ़ी के हाथों में हमें कैसा भारत सौंपना है।