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ICC World Cup 2011: रोमांच.. उत्तेजना.. आंसू… खुशियां, 2011 में आज ही के दिन भारत ने जीता था वर्ल्डकप

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ICC World Cup 2011

ICC World Cup 2011: 2 अप्रैल 2011…आज की ही तरह वह शनिवार का दिन था जब 33000 दर्शक क्षमता वाले वानखेड़े स्टेडियम, मुंबई में भारतीय दर्शक अपनी ‘टीम इंडिया’को चीयर करने पहुंचे थे जबकि उससे कई गुना अधिक क्रिकेट प्रेमी घरों,दुकानों,होटल,रेस्तरांओं में टेलीविजन सेटों से चिपके बैठे थे।वजह थी वर्ल्डकप का फाइनल जिसमे टीम इंडिया को डार्क हॉर्स श्रीलंका से दो-दो हाथ करने थे।

1983 के बाद यह पहला मौका था जब देश 50 ओवरों का वर्ल्डकप उठाने से बस एक कदम दूर था।हर कोई बस टीम इंडिया के लिए जीत की दुआएं मांग रहा था, पूजन, हवन,अखंड पाठ, शक्ति पाठ घर और मंदिरों में चल रहे थे, मस्जिदों से दुआएं पढ़ी जा रहीं थीं।क्या हिन्दू क्या मुस्लिम हर भारतवासी की ख्वाहिश बस एक ही थी-टीम इंडिया की विजय।

जयवर्धने का शतक और टूटने लगी थीं उम्मीदें

ICC World Cup 2011

श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगकारा ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी के अनुकूल पिच में बैटिंग करने का फैसला लेने में जरा भी देर नहीं लगाई। जहीर खान और श्रीसंथ की जोड़ी से लोगों को उम्मीदें थीं।जहीर तो एक छोर से अच्छी गेंदबाजी कर रहे थे पर श्रीसंत आज लय में नजर नहीं आ रहे थे।थरंगा को पवेलियन लौटाने के सिवा पावरप्ले में भारतीयों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ।कप्तान संगकारा और दिलशान बिना संयम खोए पारी को सजाने में लगे थे और यही चिंता का विषय था।ड्रिंक्स के बाद खेल शुरू हुआ। कप्तान धोनी ने हरभजन को गेंद थमाई।

भज्जी ने कप्तान की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए खतरनाक दिख रहे दिलशान की गिल्लियां बिखेर कर साझेदारी तोड़ी तो दर्शकों ने राहत की सांस ली।स्कोर 60-2 हो गया था पर श्रीलंकाई टीम की रीढ़ महेला जयवर्धने के एक छोर संभालने के बाद मानो उम्मीदें ध्वस्त सी होने लगीं।जयवर्धने शैली और उम्मीदों से विपरीत बिना दबाव आक्रामक तेवर अख्तियार किये हुए थे।संगकारा के साथ उन्होंने टीम को 100 के पार पहुंचा दिया था।टीम इंडिया को वर्ल्डकप उठाने के लिए इस साझेदारी को तोड़ना जरूरी हो गया था।ऐसे में कप्तान धोनी को दोस्त युवी की याद आई।

पूरे टूर्नामेंट में युवराज ने हरफनमौला खेल दिखाया था और संकट की इस घड़ी में भी युवी ने भारतीयों को निराश नहीं किया जब उन्होंने कप्तान संगकारा को विकेट के पीछे धोनी के हाथों कैच करवाकर पवेलियन लौटा दिया।पर जयवर्धने अब भी बाकी थे।दूसरे छोर से विकेट भले ही गिरते रहे पर उन्होंने एक छोर मजबूती से न सिर्फ सम्भाले रखा बल्कि स्कोरकार्ड भी चलायेमान रखा।वह 88 गेंदों में 13 चौकों की मदद से 103 रन बनाकर नाबाद लौटे।टीम का फाइनल स्कोर 6 विकेट पर 274 था।

दूसरी ही गेंद पर सहवाग का आउट हो जाना.. दिल का धक्क से रह जाना.. पर सचिन है न!

भारत को चेज करने के लिए टारगेट मिला 275 का।अपनी पिचों पर,अपने दर्शकों के सामने वैसे तो कोई दिक्कत नहीं थी पर अनहोनी की एक अनचाही परत सबके दिलोदिमाग में न चाहते हुए भी बसी हुई थी और यह तब तक बसी रहनी थी जब तक कि टीम इंडिया अंतिम रन नहीं बना लेती।खैर,पारी शुरू हुई। सहवाग और सचिन की जोड़ी जब मैदान में आई तो दर्शकों के चीयर अप से मैदान गूंज उठा। पर ये क्या! पारी की मलिंगा की दूसरी ही गेंद पर सहवाग पगबाधा हुए तो क्या मैदानी दर्शकों और क्या tv से चिपके दर्शकों की ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गयी।

अभी टीम का खाता भी न खुला था और वीरू पाजी पवेलियन लौट चुके थे।पर सबकी उम्मीदें दूसरे छोर पर खड़े सचिन से लगीं थीं।हर कोई एक दूसरे से यही कह रहा था- Don’t worry! सचिन है न!

सचिन का आउट होना, उम्मीदें टूटना और आंखों में आंसू आ जाना ICC World Cup 2011

31 के स्कोर पर जब खतरनाक मलिंगा ने भारतीय उम्मीदों के सबसे बड़े स्तम्भ और अपना अंतिम वर्ल्डकप खेल रहे सचिन को विकेट के पीछे कैच करवाया तब न जाने कितने ही लोगों की उम्मीदें भी धराशायी हो गई थीं।लगने लगा था कि वर्ल्डकप हाथ से जा रहा है पर उम्मीदें तो उम्मीदें ही ठहरी न!दूसरा छोर सम्भाले गौतम गम्भीर बिना विचलित हुए बल्लेबाजी कर रहे थे और कोहली के साथ मिलकर टीम को 100 के पार पहुंचा दिया था।

ICC World Cup 2011 गम्भीर और धोनी की साझेदारी रही “टर्निंग प्वाइंट”

ICC World Cup 2011

युवा विराट कोहली के आउट होने के बाद जिम्मेदारी अपने हाथों में लेते हुए ऊपरी क्रम पर बल्लेबाजी करने आये कप्तान धोनी ने गम्भीर के साथ पारी को बढ़ाना शुरू किया।दोनों ने मौके की नजाकत को समझते हुए जैसा खेला वह आज इतिहास बन चुका है।गम्भीर 42वें ओवर में आउट होकर शतक से भले ही चूक गए पर टीम को उस स्थिति तक पहुंचा दिया था जहां से जीत करीब और हार दूर नजर आने लगी थी।

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ICC World Cup 2011 और धोनी का वो विनिंग सिक्स और सबका खुशी से होश खो बैठना

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ICC World Cup 2011 49 वें ओवर की दूसरी गेंद।कुलशेखरा की ओवर पिच गेंद को लॉन्ग ऑफ के ऊपर से दर्शक दीर्घा में पहुंचाने से पहले लग रहा था कि मैच अंतिम ओवर तक जाएगा पर धोनी तो धोनी ही थे।उन्होंने इस शॉट के साथ ही वह कारनामा कर दिखाया जो कोई भी भारतीय आज तक न कर सका था।पहले 2007 का T20 वर्ल्डकप जीतना और उसके बाद 50 ओवरों का वर्ल्डकप।मैन ऑफ द मैच धोनी ने भले ही भारतीयों को खुशी से झूमने,रोने,खुशियां मनाने का मौका दिया हो पर इस टूर्नामेंट के असली हीरो तो युवराज ही थे।

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