बेटी की हर ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होती,
फिर भी बेटियां कभी भी अधूरी नहीं होती…
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता:,
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्त्राफला: क्रिया:।।
अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। जहां नारियों की पूजा नहीं होती, उनका सम्मान नहीं होता, उस जगह पर किए गए समस्त अध्यात्म तथा अच्छे काम सफल नहीं होते। लोग वर्तमान समय में बेटियों को बोझ समझते हैं। वहीं पर समाज में मानसिक संकीर्णता के चलते बेटियों को दहेज व दुराचार का शिकार होना पड़ता है। बेटियां कितनी अनमोल है यह एहसास दिलाने के लिए हर साल सितंबर महीने में बेटी दिवस मनाया जाता है।
बेटियां कुदरत का दिया हुआ एक अनमोल तोहफा होती हैं। जो खुशियों से हमारे घर आंगन को भर देती हैं। इनकी मासूम शकील कार्यों से पूरा घर रोशन हो जाता है। जन्म लेते ही तो मां-बाप का घर रोशन करती हैं। लेकिन जब दूसरे घर जाती हैं तो पति की जिंदगी में खुशियों की फूल बिखेर देती हैं। वैसे तो मां बाप से ज्यादा बेटी की अहमियत कोई समझ नहीं सकता। बेटी का चंचल मन और मासूम सा चेहरा जिस पर हर कोई फिदा रहता है। बचपन से लेकर बड़े होने तक बेटी अपने मां-बाप के सिर आंखों पर रहती है। फिलहाल बेटी के त्याग, समर्पण और प्यार को देखते हुए दुनिया में प्रत्येक वर्ष डॉटर्स डे मनाया जाता है। बेटियों को ये दिन पूरी तरह से समर्पित है। राष्ट्रीय डॉटर्स डे प्रत्येक वर्ष सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है। आज बेटी दिवस है। चूंकि इसे कुछ देशों में अलग-अलग दिन में भी मनाया जाता है।
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आज भी पुत्र प्रधान समाज में बेटियों की जगह बेटी को ही महत्व दिया जाता है। चूंकि अगर देखा जाए तो बड़े शहर यह मामल कम है। लेकिन कई देशों में अभी भी इस तरह के मामलों में कमी नहीं आई है। परिवार को बढ़ाने के लिए कुछ लोग सिर्फ बेटी की ही चाह रखते हैं। जो भ्रूणहत्या या फिर शिशु हत्या का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि लोगों की मानसिकता तो इस हद तक गिर जाती है कि घर में बेटी होने पर वह मां को प्रताड़ित करने से बाज भी नहीं आते।
संयुक्त राष्ट्र ने समाज में लड़के और लड़कियों के बीच की गहरी खाई को पाटने के लिए एक पहल शुरू की। संयुक्त राष्ट्र ने लड़कियों के महत्व को समझाते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए पहली बार 11 अक्टूबर 2012 को एक दिन बेटियों को समर्पित किया। दुनिया भर के देशों ने संयुक्त राष्ट्र के इस पहल का स्वागत किया। इसके बाद से ही प्रत्येक देश में बेटियों के लिए एक दिन को समर्पित किया गया है। हालांकि हर देश में डॉटर्स डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है।
भारत में तो बेटियों को एक अलग ही महत्व दिया जाता है। बीते समय में बेटियों को बचपन में ही उनकी शादी कर दी जाती थी। तब उनकी भूमिका सिर्फ रसोई घर तक ही सीमित रह जाती थी। आज भी देश में कई स्थानों पर आंशिक रूप से ये कुप्रथा जारी है। लेकिन कहीं न कहीं एक बड़े तबके की सोच बदल चुकी है। लेकिन आज भी उन लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। जो बेटियों के महत्व को नहीं समझते।