PM Rajiv Gandhi की हत्या के मामले में दोषी तथा उम्र कैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन की रिहाई का Supreme Court ने आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल ने दोषी की दया याचिका के निपटारे में ज्यादा समय लिया। पेरारिवलन ने यह कहा था कि तमिलनाडु सरकार ने उसे रिहा करने का फैसला लिया। लेकिन राज्यपाल ने ही फाइल को काफी वक्त तक अपने पास रखने के बाद से राष्ट्रपति को भेज दिया। ये संविधान विरुद्ध है।
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इससे पहले भी 11 मई को हुई सुनवाई में केंद्र ने एजी पेरारिवलन की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने के तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले का Supreme Court में बचाव किया था। एएसजी (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) के एम नटराज ने जस्टिस एल नागेश्वर राय, जस्टिस बी आर गवई तथा जस्टिस ए एस बोपन्न की बेटी को यहां बताया था कि केंद्रीय कानून के अंतर्गत दोषी ठहराया गए शख्स की सजा में छूट, माफी तथा दया याचिका के संबंध में याचिका पर केवल राष्ट्रपति फैसला कर सकते हैं।
हालांकि बेंच ने केंद्र से यह सवाल किया था कि अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया जाता है। तो राज्यपालों की तरफ से दी गई अभी तक की छूट असामान्य हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहां था कि अगर राज्यपाल पेरारिवलन के मुद्दे पर राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को मानने को तैयार नहीं है। तो उन्हें फाइल को पुनर्विचार करने के लिए वापस मंत्रिमंडल में भेज देना चाहिए था।
Supreme Court ने मामले की 2 घंटे तक सुनवाई की तथा पेरारिवलन की तरफ से दायर याचिका पर एएसजी, तमिलनाडु सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी तथा याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण की दलील सुनने के बाद से अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। लिखित दलीले दो दिनों में दाखिल करने को भी कहा गया था।
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Supreme Court ने इससे पहले यह कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल पेरारिवलन की रिहाई पर राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से बंधे हैं तथा राष्ट्रपति को दया याचिका भेजनी कि उनकी कार्यवाही को ये कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वो संविधान के खिलाफ किसी चीज से आंखें बंद नहीं कर सकते। Supreme Court ने नौ मार्च को पेरारिवलन को जमानत दे दी थी।
दरअसल उस याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। जिसमें से एक में पेरारिवलन में मल्टी डिसीप्लिनरी मॉनिटर एजेंसी (MDMA) जांच पूरी होने तक मामले से अपनी उम्र कैद की सजा को स्थगित करने का भी अनुरोध किया था।