fatima sheikh: गूगल ने देश की पहेली शिक्षिका और फैमिनिस्ट को डूडल के जरिए किया सम्मानितटेक्नोलॉजी सर्च इंजन कंपनी गूगल (Google) ने हमारे देश की सबसे पहेली शिक्षिका और फैमिनिस्ट फातिमा शेख (Fatima Sheikh) के 191वें जन्मदिन के मौके पर एक खास डूडल बना कर उन्हें याद किया है। फातिमा शेख ऐसी महिला थी जिन्हें हमारे देश भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका होने का सम्मान मिला है। fatima sheikh ने हमारे देश की दलित और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए कि सराहनीय काम किए था। यह उस दौर की बात है जब महिलाओं को पढ़ाई लिखाई तो दुर लेकिन घर से बाहर निकलने तक की इजाजत नहीं थी। लेकिन उस दौर में भी यानी 1848 में fatima sheikh ने समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई फुले के सहयोग से स्वदेशी पुस्तकालय की शुरुआत की थी। यह सिर्फ एक पुस्तकालय ही नहीं था मगर हकीकत में तो यह एक ऐसा स्कूल था जो हमारे देश में लड़कियों का सबसे पहला स्कूल कहा गया है।
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कौमी एकता की एक उमदा मिशाल और देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका की उपाधि पाने वाली फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन सन 1831 में महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थी। उन्हें और उनके भाई को निचली जातियों के लोगों को शिक्षित हो जाने की वजह से समाज से बेदखल कर दिया था। इसके बाद उन दोनों भाई बहन का सफर शुरू हुआ और वह सावित्रीबाई फुले से मिले और उनके के साथ और सहयोग से उन तीनों ने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था।
fatima sheikh ने अपनी सहयोगी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर ही दलित, मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के उन सभी समुदायों को शिक्षित किया हैं , जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। यही सबसे बड़ी वजह है की फातिमा शेख को आधुनिक इंडिया की प्रथम महिला मुस्लिम शिक्षिका कहा जाता है। अमेरिकी मिसनरी के द्वारा चलाई गई टीचर ट्रैनिंग संस्थान में देश की महिलाओं को शिक्षित बनाने में योगदान देने वाली इन दोनों महान हस्तियों का यानी फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले दोनों का नामांकित किया गया था वही से दोनों करीबी मित्र बन गए थे।
fatima sheikh ने कोई गली, कोई कोना नहीं छोड़ा और वह हर घर घर जाकर महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित करती ही रहती थी। किंतु, उनके इस सत्कार्य में भी उन्हें प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा था। इन सभी बातों ने भी उन के जज्बो को डगमगाने नहीं दिया और फातिमा शेख ,सावित्रीबाई फुले और उनके सहयोगियों ने हिम्मत नही हारी और अपना शिक्षा आंदोलन जारी ही रखा। फातिमा शेख की इस उपलब्धियों को भारत सरकार ने साल 2014 में याद किया। फातिमा शेख के अलावा अन्य अग्रणी शिक्षकों के प्रोफाइल को उर्दू पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिया गया, ताकि देश का हर एक बच्चा शिक्षा जगत में उनके दिए गए योगदान के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जान पाए।
हमारे देश की महिलाओं की आइकॉन के समान fatima sheikh को देश की पहली शिक्षिका मानने के साथ ही उन्हें उनके समाज सुधारक कार्यों के लिए भी पूरी दुनियाभर में जाना जाता है।
fatima sheikh ने अन्य दो समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले को उस वक्त में साथ दिया था, जब कुछ कट्टरपंथियों को महिलाओं को शिक्षित करने की इनकी मुहिम से नफ़रत थी इन दोनों को महिलाओं को घर से निकाल दिया गया था। उस वक्त fatima sheikh ही वह हस्ति थी जिन्होंने ही इन दोनों को अपने घर में रहने के लिए जगह दी, इतना ही नहीं उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए पुणे में स्कूल खोलने के लिए भी जगह भी मुहैया करवाई थी।
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भारत की पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख के संघर्ष की कहानी को देश के इतिहासकारों ने अनदेखा कर दिया है। महिलाओ की शिक्षा और दूसरे सामाजिक कार्यो को लेकर सभी संघर्ष में अग्रणी भूमिका के लिए प्रसिद्ध समाज-सुधारक fatima sheikh के 191वें जन्मदिन पर आज गूगल ने उनके चित्र के साथ डूडल बनाया है। भारत में स्त्री शिक्षा और ख़ासकर आधुनिक शिक्षा के लिए अभूतपूर्व मुहिम में फुले ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई के साथ fatima sheikh का नाम दुनिया में हमेशा ही अमर रहेगा।