Madhya Pradesh: करोड़ों साल पहले ही पृथ्वी पर डायनासोर का बसेरा हुआ करता था। लेकिन उसके बाद से उसका विनाश होता चला गया। लेकिन आए दिन कोई न कोई डायनासोर से जुड़ी खोज आज भी हमारे अंदर दैत्याकार जीव की मौजूदगी दर्ज करा देती है। वैज्ञानिक डायनासोर को लेकर समय-समय पर हैरान करने वाले खुलासे करते रहते हैं। इसी बीच अब Madhya Pradesh में विशालकाय डायनासोर के अस्तित्व से जुड़ी एक और बड़ी दुर्लभ खोज सामने आई है। जिसको लेकर यह दावा किया गया है कि संभवत जीवाश्म इतिहास में पहली बार ऐसी खोज हुई है।
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बता दें कि डायनासोर को पृथ्वी से विलुप्त हुए दशकों बीत चुके हैं। लेकिन आज के समय में भी लोगों के अंदर इस जीव से जुड़ी जानकारी हासिल करने की उत्सुकता रहती हैं। हालांकि कोई ना कोई खोज इस जीव को लेकर लोगों को रोमांचित करती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने Madhya Pradesh के एक ‘एग-इन-एग’ डायनासोर के अंडे की खोज की है। जो शायद ही जीवाश्म इतिहास में पहली बार है। यूनिवर्सिटी ने एक बयान में ये दावा किया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह खोज एक दुर्लभ तथा अहम खोज है, क्योंकि अभी तक सरीसृपों में कोई ‘ओवम-इन-ओवो’ यानी कि अंडे में अंडा नहीं पाया गया था। इसी खोज को जनरल साइंटिफिक रिपोर्ट्स के लेटेस्ट संस्करण में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने यह बताया है कि ऐबनॉर्मल टाइटानोसॉरिड डायनासोर अंडे का अंडा मध्य प्रदेश के धार जिले की बाग क्षेत्र में खोजा गया था।
उन्होंने आगे बताया कि इससे यह अहम जानकारी पता लगाई जा सकती है कि क्या डायनासोर के पास कछुए तथा छिपकलियों या फिर मगरमच्छ एवं पक्षियों के समान प्रजनन जीव विज्ञान था। बता दें कि मध्य भारत अपर लैमेटा फॉर्मेशन लंबे वक्त से डायनासोर के जीवाश्म यानी कि कंकाल और अंडे के ऑफिस दोनों की खोज के लिए जाना जाता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने बाग के पास पडलिया गांव के पास बड़ी संख्या में टाइटानोसॉरिड सॉरोपॉड घोंसलों का पता लगाया।
Madhya Pradesh, इन घोषणाओं का अध्ययन करते वक्त शोधकर्ताओं को एक “असामान्य अंडा” मिला। Research Team ने आज सामान अंडे समेत 10 अंडों का एक सॉरोपॉड डायनासोर का घोंसला भी पाया। जिसमें दो निरंतर तथा गोलाकार अंडे की परते थी। जो एक अंतर से अलग होती हैं। जो डिंब-इन-ओवो यानी कि दूसरे अंडे के अंदर एक अंडा पक्षियों की याद दिलाती है। ऐसे में इनकी पहचान टाइटानोसॉरिड सौरोपोड डायनासोर के के अंडों के तौर पर ही की गई। पहले भी डायनासोर के इस प्रकार अंडे में अंडे नहीं मिले थे।
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बयान में यह कहा गया है कि अतीत में ये सुझाव दिया गया था कि डायनासोर का प्रजनन कार्य कछुआ तथा अन्य सरीसृपों के समान होता है। शोध के मुख्य लेखक तथा डीयू के शोधकर्ता डॉ हर्ष धीमान ने यह कहा कि टाइटानोसॉरिड घोंसले से डिंब-इन-ओवो अंडे अंडे की खोज भी इसी संभावना को खोलती है कि सॉरोपॉड डायनासोर में मगरमच्छ या फिर पक्षियों के समान एक डिंबवाहिनी (ओविडक्ट) थी तथा वह पक्षियों की अंडे देने वाली विशेषता की एक मोड़ के लिए अनुकूलित हो सकते हैं।