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Cheetah: नामीबिया से लाये गए चीतों की कालर आईडी से हो रही चेकिंग; जानिए कैसे काम करती है सैटेलाइट कॉलर आईडी

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Cheetah: हाल ही में नामीबिया से 8 चीते भारत लाये गए हैं । पीएम मोदी के जन्मदिवस के दिन भारत आये इन 8 चीतों में 3 नर जबकि 5 मादा चीते हैं । नामीबिया से लाये गए इन चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में रखा गया है और फिलहाल अभी इनकी देखरेख की जा रही है । करीब 1 महीने तक इन Cheetah पर नजर रखने के बाद इन्हें कूनो नेशनल पार्क के जंगल मे छोड़ दिया जाएगा ।

बता दें कि भारत के इतिहास में करीब 70 साल बाद चीते भारत लाये गए हैं इससे पहले अंतिम बार 1947 मे Cheetah को भारत मे देखा गया था । सन 1952 में इन्हें विलुप्त घोषित कर दिया गया था । बता दें कि नामीबिया से आये इन चीतों को अभी विशेष निगरानी में रखा गया है वहीं इनके गले मे एक कॉलर आईडी भी लगाई गई है जो कि कई खूबियों से लैस है । आज के इस आर्टिकल में हम आपको Cheetah के गले मे लगी कॉलर आईडी के बारे में बताने जा रहे हैं साथ ही सैटेलाइट कॉलर आईडी के उपयोग के बारे में भी हम आपको जानकारी देंगे ।

क्या है सैटेलाइट कॉलर आईडी

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सैटेलाइट कॉलर आईडी का उपयोग जंगली जानवरों जैसे शेर,चीता, तेंदुआ आदि की ट्रेकिंग करने के लिए किया जाता है । इसके लिए सैटेलाइट और तमाम सेंसर्स से युक्त इस कालर आईडी को जानवर के गले मे पहना दिया जाता है । इसके माध्यम से जू या फारेस्ट ऑफिसर जानवर के लोकेशन की ट्रेकिंग आसानी से कर सकते हैं । इस कॉलर आईडी से उन्हें जानकारी होती रहती है कि जानवर इस वक्त कहाँ पर मौजूद हैं साथ ही उस जानवर के स्वास्थ्य की भी जानकारी इस कॉलर आईडी से मिल जाती है ।

घने जंगलों में भी चीतों को खोजा जा सकेगा

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नामीबिया से लाये गए इन चीतों को कालर आईडी पहनाई गयी है जिससे इनकी ट्रेकिंग आसानी से हो सकेगी । अगर ये चीते मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के घने जंगलों में भी होंगे तो इनकी लोकेशन इस कॉलर आईडी की मदद से आसानी से पता लगाई जा सकेगी ।

हेल्थ अपडेट भी मिलेगी

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इस कॉलर की आईडी की एक विशेषता ये भी है कि इसकी मदद से चीतों की हेल्थ की अपडेट भी मिलती रहेगी । इस कॉलर आईडी में लगे सेंसर्स से लोकेशन और एक्टिविटी के साथ साथ हेल्थ अपडेट भी मिलता रहेगा । बता दें कि जानवरों की इस तरह की ट्रेकिंग को एनिमल माइग्रेशन ट्रेकिंग कहा जाता है । इससे बहुत ही बारीकी से चीतों पर नजर रखी जा सकेगी जिसमें सैटेलाइट कॉलर आईडी मुख्य भूमिका निभाएगी ।

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ऐसे काम करता है कॉलर आईडी

बता दें कि सैटेलाइट कॉलर आईडी किसी भी जीपीएस डिवाइस जैसा ही काम करता है । इस कॉलर आईडी में एक जीपीएस चिप लगी होती है जिससे हम सटीक लोकेशन की ट्रेकिंग कर सकते हैं । वहीं कॉलर आईडी जिस जानवर के लगी होगी उसकी लोकेशन सहित अन्य जानकारी जू या फारेस्ट अधिकारी मोबाइल या टेबलेट से ट्रैक कर सकते हैं ।

बता दें कि यह कालर आईडी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स को ट्रांसमिट करते हैं जिसे सैटेलाइट के माध्यम से पता लगाया जा सकता है । वहीं हेल्थ अपडेट के लिए भी इस कॉलर आईडी में सेंसर लगाए गए हैं जिससे उस जानवर की हेल्थ के बारे में जानकारी मिलती रहती है । बता दें कि यह कॉलर आईडी काफी मजबूत और वाटर रेसिस्टेंस भी होती है जिसे जानवर नुकसान भी नहीं पहुंचा पाते ।

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