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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में ये बाते किसी को नहीं पता होगी

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज तीसरी पुण्यतिथि है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू तथा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समाधि स्थल पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उनके जैसा नेता पाकर भारतीय राजनीति धन्य हुई।

प्रधानमंत्री मोदी नेपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के बाद ट्विटर पर भी पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लिखा हम उनके व्यक्तित्व को , उनके स्वभाव को, उनकी सूझबूझ को याद करते हैं। देश की प्रगति में उनके योगदान को भी याद करते हैं। मोदी जी ने आगे लिखा, अटल जी सदैव हमारे देशवासियों के दिलों दिमाग में रहते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व

महत्वकांक्षी, साहसी, जुझारू कवि और कार्यक्षमता से भरपूर, बेहद शालीन राजनेता और एक अटल व्यक्तित्व ऐसा ही व्यक्तित्व हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का था। वाकई में यह कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी की ऐसी अद्भुत क्षमता वाले पुरुष विरले ही इस संसार में जन्म लेते हैं।
आगरा के एक छोटे से गांव बटेश्वर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल जी की तार्किक क्षमता और कला का आभास शायद उनके करीबियों को पहले से ही हो चुका था। तभी तो एक बार जवाहरलाल नेहरू ने इनके बारे में ये कहां की ये नौजवान एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा और आर्य सभा के साप्ताहिक सत्संग में बोलने से शुरू हुआ। उनका यह सफर एक साहित्यकार, एक सांसद और पत्रकार से होता हुआ भारत देश के प्रधानमंत्री तक पहुंच गया। पहले “राष्ट्रधर्म”पत्रिका के संपादक और साहित्यकार फिर पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए 10 बार लोकसभा के सदस्य और फिर चार राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात, दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हुए, लखनऊ से पांच बार सांसद भी रहे। सिर्फ इतना ही नहीं वह एक नहीं बल्कि तीन तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर चुने गए।
भारत के प्रधानमंत्री, संसद, विदेश मंत्री स्थाई समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेशी नीति को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाई।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। भारत में इस दिन को बढ़ा दिया जाता है। बाजपेई 1942 में राजनीति में उस समय आए। जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए थे। 1951 में आर एस एस के सहयोग से भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटल बिहारी बाजपेयी की अहम भूमिका रही।
पहली बार अटल बिहारी बाजपेयी ने 1952 में लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर असफल रहे। हालांकि 1957 में वाजपेयी जी को पहली बार सफलता मिली थी। 1957 में जनसंघ नितिन लोकसभा सीट लखनऊ, बलरामपुर और मथुरा से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे।
अटल बिहारी बाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार प्रधानमंत्री बने।1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और बाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। चूंकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई। फिलहाल 1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिली और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से बाजपेयी एनडीए का गठन किया और वो एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली। लेकिन बीच में ही चल नरगिस की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया, जिसकी वजह से सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से सत्ता में आई और इस बार बाजपेयी जी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। शालीनता और संयम की प्रतिमूर्ति अटल जी और उनकी राष्ट्र सेवा के बारे में जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा।

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अटल बिहारी वाजपेयी जी की कुछ कविताएं

कदम मिलाकर चलना होगा

 
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा। मैं न चुप हूँ न गाता हूँ 
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता

स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,

बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ 
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा। मैं न चुप हूँ न गाता हूँ 
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता

स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,

बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ 

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