15 अक्टूबर सन 2008 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया था। जिसके बाद से हर साल राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य कृषि विकास, ग्रामीण विकास खाद सुरक्षा तथा ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में महिलाओं की महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना है। ग्रामीण महिलाएं ही विकसित तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की चालक हैं वह न केवल परिवार व समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बल्कि सक्रिय रुप से ऑन-फॉर्म व ऑफ-फॉर्म गतिविधियों में शामिल होती हैं। फिलहाल संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि ग्रामीण महिला देश की खाद्य प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। क्योंकि वह भोजन प्रोसेसिंग में काफी मात्रा में शामिल होती हैं। मतलब कि समुदाय पोषण पर उनका सीधा प्रभाव पड़ता है। उनकी इतनी अमूल्य योगदान के बावजूद भी उन्हें अपने घर तथा समाज में समानता, भेदभाव व हिंसा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
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इस साल ग्रामीण महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय दिवस की थीम है। सभी के लिए अच्छे भोजन की खेती करने वाली ग्रामीण महिलाएं जो कि दुनिया की खाद प्रणालियों में ग्रामीण महिलाओं के आवश्यक भूमिका पर प्रकाश डालती हैं।
इन महिलाओं को लिंग आधारित रूढ़िवादिता और उनके संसाधनों, अवसरों या फिर सामाजिक जीवन के अधिकार से वंचित करते हैं। उनके पास भूमि, सड़क, आधारभूत संरचना, संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ्य और संपर्क तक पहुंचे का अभाव है। जो कि मानव विकास तथा आर्थिक सशक्तिकरण को असमान रूप से प्रभावित करता है। ग्रामीण महिलाओं को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनकी कमजोरियां क्षेत्र या फिर जातीयता के संदर्भ में अलग-अलग सकती है। हिमालय के दूरदराज के इलाकों में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति कठिन इलाके तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की वजह से एक अलग तस्वीर पेश करती हैं। पहाड़ों में महिलाएं अस्थानी समुदाय में अपनी भूमिका के बारे में जानकर स्वतंत्र और तो और पूरी तरह से जागरूक हैं। घरेलू खाद व पोषण सुरक्षा के लिए जलवायु के अनुकूल कृषि उनके लिए एक आर्थिक बाधा बन जाती है। इससे उनका आर्थिक संकट तथा तनाव और बढ़ जाता है। जिससे कि उनका मानसिक स्वास्थ्य सीधे प्रभावित होता है।
यह सभी मुद्दे इस पर निर्भर है कि एकलिंग उत्तरदाई दृष्टिकोण का संस्थानगतकरण आवश्यक है। ये सुनिश्चित करने की जरूरत है कि ग्रामीण महिलाओं के लिए राष्ट्रीय योजनाओं तथा नीतियों को लागू करने के लिए पर्याप्त निवेश किया गया है। अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करें। जरूरत इसकी है कि लैंगिक समानता पर कानूनी व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।